'एंग्री इंडियन गॉडेसेज' पिछले दिनों काफी चर्चाओं में रही. कहते हैं जरा सी बोल्ड है ये फिल्म (सेंसर बोर्ड की नजर से) तभी तो इस फिल्म के बहुत सारे सीन्स पर सेंसर बोर्ड ने कैंची चला दी. लेकिन 'एंग्री इंडियन गॉडेसेज' की टीम ने सेंसर बोर्ड की हकीकत सामने ला दी है. फिल्म के सेंसर्ड सीन्स इकट्ठा करके एक वीडियो बनाया गया जिसे फिल्म के फेसबुक पेज पर रिलीज किया गया है. इसे देखकर हम समझ सकते हैं कि ये सेंसर बोर्ड आखिर किस तरह सोचता है.
हमारे संस्कारी सेंसर बोर्ड को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म के टाइटल के अनुसार ही फिल्म में एंग्री, और बोल्ड कंटेंट रखना फिल्म की जरूरत है. अचानक से शरीफ हुए सेंसर बोर्ड को ये याद दिलाना जरूरी है कि जब हम 'भाग भाग डी के बोस' 'इंजन की सीटी मे मारो बम डोले' जैसे गाने सुन सकते हैं... तो Ass भी आराम से सुन सकते हैं और 'I have the indian figure' भी.
जब हम फिल्मों में डबल मीनिंग डायलॉग्स और वल्गर कॉमेडी झेल सकते हैं तो फिर ये तो आम तौर पर बोली जाने वाली भाषा है. पर मोदी सरकार की तारीफों के पुल बनाने वाले मक्खनबाज पहलाज निहलानी भला ये डायलॉग कैसे बर्दाश्त कर सकते थे 'सरकार कौन होती है डिसाइड करने वाली'. अगर सरकार को बुरा लग जाए तो... इस बात का भी खास ख्याल रखा है.
पर देवियों के फोटो से क्या नाराजगी..जब फिल्म में लड़कियों ने खुद को काली का रुप दिखाने की कोशिश की तो भी उसपर कैंची चल गई...यहां तक कि फिल्म के टाइटल के चारों ओर काली मां के शस्त्रों को दिखाया गया था, उसे भी धुंधला कर दिया गया. भला क्यों? क्या हम नहीं जानते कि हिंदू धर्म में काली मां को उनके क्रोध और आक्रामक तेवर की वजह से जाना जाता है.
असल में इतनी अश्लीलता पहले ही परोसी जा चुकी है कि अब वल्गर डायलॉग्स और चीप कंटेंट देखने के बाद भी हमें फर्क नहीं पड़ता. रेप सीन्स भी इतनी दफा दिखाए गए हैं कि अब ऐसे सीन्स को भी सहजता से स्वीकार कर लिया जाता है. आदी हो चुके हैं भई...ऐसे में सेंसर बोर्ड की ये शराफत हजम नहीं होती..
देखिए...
'एंग्री इंडियन गॉडेसेज' पिछले दिनों काफी चर्चाओं में रही. कहते हैं जरा सी बोल्ड है ये फिल्म (सेंसर बोर्ड की नजर से) तभी तो इस फिल्म के बहुत सारे सीन्स पर सेंसर बोर्ड ने कैंची चला दी. लेकिन 'एंग्री इंडियन गॉडेसेज' की टीम ने सेंसर बोर्ड की हकीकत सामने ला दी है. फिल्म के सेंसर्ड सीन्स इकट्ठा करके एक वीडियो बनाया गया जिसे फिल्म के फेसबुक पेज पर रिलीज किया गया है. इसे देखकर हम समझ सकते हैं कि ये सेंसर बोर्ड आखिर किस तरह सोचता है.
हमारे संस्कारी सेंसर बोर्ड को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म के टाइटल के अनुसार ही फिल्म में एंग्री, और बोल्ड कंटेंट रखना फिल्म की जरूरत है. अचानक से शरीफ हुए सेंसर बोर्ड को ये याद दिलाना जरूरी है कि जब हम 'भाग भाग डी के बोस' 'इंजन की सीटी मे मारो बम डोले' जैसे गाने सुन सकते हैं... तो Ass भी आराम से सुन सकते हैं और 'I have the indian figure' भी.
जब हम फिल्मों में डबल मीनिंग डायलॉग्स और वल्गर कॉमेडी झेल सकते हैं तो फिर ये तो आम तौर पर बोली जाने वाली भाषा है. पर मोदी सरकार की तारीफों के पुल बनाने वाले मक्खनबाज पहलाज निहलानी भला ये डायलॉग कैसे बर्दाश्त कर सकते थे 'सरकार कौन होती है डिसाइड करने वाली'. अगर सरकार को बुरा लग जाए तो... इस बात का भी खास ख्याल रखा है.
पर देवियों के फोटो से क्या नाराजगी..जब फिल्म में लड़कियों ने खुद को काली का रुप दिखाने की कोशिश की तो भी उसपर कैंची चल गई...यहां तक कि फिल्म के टाइटल के चारों ओर काली मां के शस्त्रों को दिखाया गया था, उसे भी धुंधला कर दिया गया. भला क्यों? क्या हम नहीं जानते कि हिंदू धर्म में काली मां को उनके क्रोध और आक्रामक तेवर की वजह से जाना जाता है.
असल में इतनी अश्लीलता पहले ही परोसी जा चुकी है कि अब वल्गर डायलॉग्स और चीप कंटेंट देखने के बाद भी हमें फर्क नहीं पड़ता. रेप सीन्स भी इतनी दफा दिखाए गए हैं कि अब ऐसे सीन्स को भी सहजता से स्वीकार कर लिया जाता है. आदी हो चुके हैं भई...ऐसे में सेंसर बोर्ड की ये शराफत हजम नहीं होती..
देखिए वीडियो..
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.