सेंसर बोर्ड एक बार फिर चर्चा में है. लेकिन किसी फिल्म पर कैंची चलाने को लेकर नहीं, बल्कि कुछ नए बदलाव की सुगबुगाहट के कारण. कोई दो राय नहीं कि पहलाज निहलानी का अब तक का कार्यकाल बेहद विवादित रहा है और संभवत: सरकार अब उन पर कैंची चलाने की तैयारी कर रही है. सरकार ने सेंसर बोर्ड की सूरत बदलने के लिए एक कमेटी का गठन किया है. फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल इस कमेटी के मुखिया होंगे. कहा जा रहा है कि ये कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर उठाया गया है. बेनेगल के नेतृत्व वाली ये कमेटी अगले दो महीनों में अपनी रिपोर्ट देगी.
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जिन नए बदलाव की बात हो रही है, वो क्या होंगे इसे लेकर कोई साफ तस्वीर हमारे सामने नहीं है. लेकिन क्या बेनेगल वाकई कुछ ठोस सुझाव के साथ सामने आएंगे? यह सवाल इसलिए कि पैरलल और लीक से हटकर फिल्में बनाने के लिए मशहूर बेनेगल खुद शुरू से मानते रहे हैं कि हमें सेंसर बोर्ड की कोई जरूरत नहीं है. यह फैसला लोगों पर छोड़ना चाहिए कि उन्हें क्या देखना है और क्या नहीं. ऐसे में क्या बेनेगल 'प्रधानमंत्री के विजन' के अनुसार बात रख पाएंगे?
सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से जो प्रेस रिलीज जारी हुई है उसमें प्रधानमंत्री के विजन की बात कही गई है. लेकिन यह विजन क्या है, इसे लेकर कोई बात नहीं की गई है. नरेंद्र मोदी भविष्य की ओर देखने और ग्लोबल होने की बात करते हैं. तो क्या आने वाले वर्षों में भारतीय फिल्में कलात्मक और रचनात्मक तौर पर ज्यादा 'स्वतंत्र' नजर आएंगी?
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सेंसर बोर्ड एक बार फिर चर्चा में है. लेकिन किसी फिल्म पर कैंची चलाने को लेकर नहीं, बल्कि कुछ नए बदलाव की सुगबुगाहट के कारण. कोई दो राय नहीं कि पहलाज निहलानी का अब तक का कार्यकाल बेहद विवादित रहा है और संभवत: सरकार अब उन पर कैंची चलाने की तैयारी कर रही है. सरकार ने सेंसर बोर्ड की सूरत बदलने के लिए एक कमेटी का गठन किया है. फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल इस कमेटी के मुखिया होंगे. कहा जा रहा है कि ये कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर उठाया गया है. बेनेगल के नेतृत्व वाली ये कमेटी अगले दो महीनों में अपनी रिपोर्ट देगी.
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जिन नए बदलाव की बात हो रही है, वो क्या होंगे इसे लेकर कोई साफ तस्वीर हमारे सामने नहीं है. लेकिन क्या बेनेगल वाकई कुछ ठोस सुझाव के साथ सामने आएंगे? यह सवाल इसलिए कि पैरलल और लीक से हटकर फिल्में बनाने के लिए मशहूर बेनेगल खुद शुरू से मानते रहे हैं कि हमें सेंसर बोर्ड की कोई जरूरत नहीं है. यह फैसला लोगों पर छोड़ना चाहिए कि उन्हें क्या देखना है और क्या नहीं. ऐसे में क्या बेनेगल 'प्रधानमंत्री के विजन' के अनुसार बात रख पाएंगे?
सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से जो प्रेस रिलीज जारी हुई है उसमें प्रधानमंत्री के विजन की बात कही गई है. लेकिन यह विजन क्या है, इसे लेकर कोई बात नहीं की गई है. नरेंद्र मोदी भविष्य की ओर देखने और ग्लोबल होने की बात करते हैं. तो क्या आने वाले वर्षों में भारतीय फिल्में कलात्मक और रचनात्मक तौर पर ज्यादा 'स्वतंत्र' नजर आएंगी?
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जवाब मुश्किल लगता है कि क्योंकि फिर गौर इस बात पर भी होना चाहिए कि हर फिल्म से पहले थियेटरों के बाहर विरोध करने कौन लोग पहुंच जाते हैं. वे कौन लोग हैं, जो भारतीय संस्कृति की दुहाई देते हुए पोस्टर फाड़ने और तोड़फोड़ से भी नहीं हिचकते. यह सच है कि पूर्व में सेंसर बोर्ड पर मनमाने तरीके से सीन काटने और कई दफा आपत्तिजनक सीन को मंजूरी देने संबंधी आरोप लगते रहे हैं. हाल में हॉलीवुड फिल्म स्पेक्टर के चुंबन दृश्यों को काटने को लेकर बोर्ड की खूब किरकिरी भी हुई थी. फिर यही सेंसर बोर्ड मस्तीजादे और क्या कूल हैं हम-3 जैसे फिल्मों को हरी झंडी भी दिखा देता है.
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इसलिए बेनेगल और सरकार मिल कर सेंसर बोर्ड को किस राह की ओर ले जाने की बात करते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा. क्योंकि बेनेगल का विजन सेंसर बोर्ड से मुक्ति है जबकि सरकार का रूख प्रधानमंत्री के विजन की बात करता है.
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