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ये तो होश उड़ाने वाला रेप सीन था ! हमारी फिल्म इंडस्‍ट्री कब सुधरेगी...

    • रिम्मी कुमारी
    • Updated: 01 फरवरी, 2017 04:03 PM
  • 01 फरवरी, 2017 04:03 PM
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ऋतिक रोशन की फिल्म काबिल 25 जनवरी को रिलीज हुई. एक तरफ फिल्म को जहां दमदार एक्टिंग और स्टोरी के लिए सराहा जा रहा है तो दूसरी तरफ उसकी आलोचना भी हो रही है. आलोचना का कारण क्या है?

ऋतिक रोशन की फिल्म काबिल 25 जनवरी को रीलीज हुई. एक तरफ फिल्म को जहां दमदार एक्टिंग और स्टोरी के लिए सराहा जा रहा है तो दूसरी तरफ उसकी आलोचना भी हो रही है. आलोचना का कारण क्या है?

फिल्म में हिरोईन यामी गौतम का रेप होता है. वो ऋतिक की पत्नी के किरदार में हैं. पूरी फिल्म इसी प्लॉट बनी है. ऋतिक अपनी पत्नी के रेपिस्टों से बदला लेते हैं. लेकिन साथ-साथ वो अपनी पत्नी को हर पल इस बात का एहसास कराना नहीं भूलते कि अब वो 'पवित्र' नहीं रही. ऋतिक अपनी पत्नी को इस घटना के बाद स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. वो खाना नहीं खाते, पत्नी से बात नहीं करते, हमेशा उदास रहते हैं. इससे यामी को विश्वास हो जाता है कि वो 'पीड़िता नहीं बल्कि खुद अपराधी' है! और जैसा कि हर 'रेप पीड़ित अपराधी' को करना चाहिए वो भी आत्महत्या कर लेती है! इसके बाद भी कभी हीरो को एक बार भी ये एहसास नहीं होता कि उसकी पत्नी के आत्महत्या का कारण रेप नहीं बल्कि वो है.

काबिलहालांकि बॉलीवुड में रेप और उसके बाद पीड़िता के साथ अन्याय को इतने घिनौने ढंग से दिखाना कोई नई बात नहीं है. दशकों से हिंदी फिल्मों में रेप की घटनाओं को बड़े ही संवेदनहीन तरीके से पेश किया जाता रहा है. 80-90 के दशक में तो अक्सर फिल्में इसी प्लॉट पर बनती थीं. इस दौर में फिल्म आगे बढ़ाने के लिए हीरो की बहन या प्रेमिका के साथ रेप होना जरुरी होता था! यहां तक की फिल्मों में हीरो की बहन का रोल बनाया ही जाता था रेप पीड़िता होने के लिए!

इंसाफ का तराजू1980 में एक फिल्म आई थी इंसाफ का तराजू. फिल्म में राजबब्बर दो बहनों ज़ीनत अमान और पद्मिनी...

ऋतिक रोशन की फिल्म काबिल 25 जनवरी को रीलीज हुई. एक तरफ फिल्म को जहां दमदार एक्टिंग और स्टोरी के लिए सराहा जा रहा है तो दूसरी तरफ उसकी आलोचना भी हो रही है. आलोचना का कारण क्या है?

फिल्म में हिरोईन यामी गौतम का रेप होता है. वो ऋतिक की पत्नी के किरदार में हैं. पूरी फिल्म इसी प्लॉट बनी है. ऋतिक अपनी पत्नी के रेपिस्टों से बदला लेते हैं. लेकिन साथ-साथ वो अपनी पत्नी को हर पल इस बात का एहसास कराना नहीं भूलते कि अब वो 'पवित्र' नहीं रही. ऋतिक अपनी पत्नी को इस घटना के बाद स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. वो खाना नहीं खाते, पत्नी से बात नहीं करते, हमेशा उदास रहते हैं. इससे यामी को विश्वास हो जाता है कि वो 'पीड़िता नहीं बल्कि खुद अपराधी' है! और जैसा कि हर 'रेप पीड़ित अपराधी' को करना चाहिए वो भी आत्महत्या कर लेती है! इसके बाद भी कभी हीरो को एक बार भी ये एहसास नहीं होता कि उसकी पत्नी के आत्महत्या का कारण रेप नहीं बल्कि वो है.

काबिलहालांकि बॉलीवुड में रेप और उसके बाद पीड़िता के साथ अन्याय को इतने घिनौने ढंग से दिखाना कोई नई बात नहीं है. दशकों से हिंदी फिल्मों में रेप की घटनाओं को बड़े ही संवेदनहीन तरीके से पेश किया जाता रहा है. 80-90 के दशक में तो अक्सर फिल्में इसी प्लॉट पर बनती थीं. इस दौर में फिल्म आगे बढ़ाने के लिए हीरो की बहन या प्रेमिका के साथ रेप होना जरुरी होता था! यहां तक की फिल्मों में हीरो की बहन का रोल बनाया ही जाता था रेप पीड़िता होने के लिए!

इंसाफ का तराजू1980 में एक फिल्म आई थी इंसाफ का तराजू. फिल्म में राजबब्बर दो बहनों ज़ीनत अमान और पद्मिनी कोल्हापुरे का रेप करता है. फिल्म के प्रोमोशन के लिए रेप सीन फिल्म के पोस्टर में लगाया गया था. इसे देखकर ये समझना मुश्किल है कि आखिर ये फिल्म क्या मैसेज देना चाहती थी. क्या वो ये दिखाना चाहते थे कि समाज में यौन उत्पीड़न पीड़ित महिलाओं को कैसे ट्रीट किया जाता है या फिर ये फिल्म सिर्फ महिलाओं को एक वस्तु की तरह पेश करना चाहती थी.

इंसाफ का तराजूइसके बाद 1991 में आई जूही चावला और अनिल कपूर स्टारर बेनाम बादशाह. इस फिल्म में गली का गुंडा अनिल कपूर हिरोइन जूही चावला की शादी के दिन ही उसका रेप करता है. इसके बाद फिल्म की पूरी कहानी इसी प्लॉट पर घूमती है कि कैसे जूही चावला अपने रेपिस्ट को शादी के लिए मनाती है! चाहे उसे इसके लिए प्रेग्नेंट होने का नाटक ही क्यों ना पड़ना हो! जैसे कि अपराधी रेपिस्ट नहीं खुद पीड़िता है और उसे ही अपने पाप धोने होंगे!

इसके बाद 1993 में मीनाक्षी शेषाद्री की कल्ट फिल्म दामिनी आई. इस फिल्म में भले ही मीनाक्षी ने अपने घर में काम करने वाली लड़की के इंसाफ की लड़ाई लड़ी. पर सच्चाई यहां भी वही रही. फिल्म में मीनाक्षी के पति का रोल करने वाले ऋषि कपूर को इस बात से दिक्कत थी कि उसकी बीवी आखिर घर की नौकरानी के लिए क्यों अपना परिवार बर्बाद कर रही है!

दामिनीवैसे इस फिल्म को मीनाक्षी की वजह से नहीं बल्कि सनी देओल की वजह से जाना जाता है. मीनाक्षी की लड़ाई में वो मसीहा बनकर आते हैं और भाषणों और ढाई किलो के हाथ के दम पर जीत हासिल करते हैं. ठीक वैसे ही जैसे पिछले साल आई फिल्म पिंक में महिला सशक्तिकरण के नाम पर अमिताभ बच्चन को मसीहा बनाकर दिखाया गया था.

पिंक1996 में माधुरी दीक्षित ने प्रेम ग्रंथ में एक ऐसी लड़की का किरदार निभाया जिसका की रेप होता है और वो प्रेग्नेंट हो जाती है. रेप पीड़िता होने की वजह से 'सभ्य-समाज' उसका हुक्का-पानी बंद कर देता है. भूख से तड़प कर बच्चे की मौत हो जाती है. जिसके बाप का नाम भी नहीं मालूम ऐसे बच्चे का दाह-संस्कार कराने से सभ्य-समाज के पंडित जी इंकार कर देते हैं! लेकिन फिल्म के अंत में माधुरी अपना बदला ले लेती है. दशहरा के दिन अपने रेपिस्ट को वो जिंदा जला देती है. लेकिन क्या इससे फिल्मकारों की सारी जिम्मेदारी खत्म हो जाती है? रेप और पीड़िता के प्रति थोड़ा संवेदनशील होकर फिल्म को बनाने की उनकी जवाबदेही इतने भर ही होती है?

1997 में रानी मुखर्जी ने अपने डेब्यू फिल्म राजा की आएगी बारात में जो किरदार निभाया वो अपने रेपिस्ट से ही शादी करती है. इतना ही नहीं अपने रेपिस्ट पति और उसके घरवालों का प्यार और सम्मान पाने के लिए दिन-रात एक भी कर देती है! दूसरी तरफ उसका अपराधी, जो अब उसका पति भी है, उसे मारने के तरीके अपनाता है. फिल्म के अंत में रानी के पति का प्लान उल्टा पड़ जाता है और जिस सांप को रानी को डसने के लिए भेजता है वो उसे ही डस लेता है. तब रानी ही सारा जहर चूस लेती है और अपने पति-परमेश्वर की जान बचाती है. बस फिर क्या था रेपिस्ट पति को एहसास होता है कि मेरी बीवी का जवाब नहीं और उससे प्यार करने लगता है!

राजा की आएगी बारात1998 में आई फिल्म दुश्मन में आशुतोष राणा काजोल का रेप कर उसकी हत्या कर देता है. 2000 में ऐश्वर्या राय की फिल्म आई थी हमारा दिल आपके पास है. इस फिल्म में रेप पीड़िता हैं और इसलिए शादी से इंकार देती हैं क्योंकि वो अब खुद को अपवित्र मानती है! 2001 में महिला प्रधान फिल्म लज्जा आई. इस फिल्म के सबसे दमदार रोल में थी वेटरन एक्टर रेखा. उनका रेप करके ज़िंदा जला दिया जाता है!

लज्जाऐसा नहीं है कि ये घटनाएं असल ज़िंदगी में नहीं होती हैं. बल्कि सच्चाई तो ये है कि इससे घिनौनी और विभत्स घटनाएं हम अपने आस-पास देखते हैं. रेप करने वाला खुला घूमता है और पीड़िता ज़िंदगी भर एक अपराधी की तरह घुटती रहती है. लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं कि बॉलीवुड भी ऐसा ही दिखाए. बल्कि लोग सिनेमा से बहुत कुछ सीखते हैं तो होना तो ये चाहिए कि फिल्में हमारी थोड़ी सेंसिबल हों. ये रेप पीड़िता को एक नॉर्मल ज़िंदगी जीता हुआ दिखाएं. क्या ये जरुरी है कि रेप के बाद लड़की को टूटा हुआ और बर्बाद ही दिखाया जाए. हमारी फिल्में एक नया सिलसिला तो शुरु कर ही सकती हैं. वो दिखाएं कि रेप करने वाला दोषी तो होता ही है लेकिन जिसका रेप हुआ वो गुनहगार नहीं होती.

अगर आज भी हम रेप पीड़िता को एक अछूत की तरह ही दिखाएंगे तो क्या फायदा हमारे टेक्नीकली एडवांस होने का. या इतना पढ़ने का. काबिल की आलोचना भी इसी वजह से हो रही है कि अब लोग थोड़े बदले हैं और इस तरह की घटनाओं पर तीखी प्रतिक्रिया देने से गुरेज नहीं करते.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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