मुंबई में हो रहे इंडिया टुडे कॉनक्लेव में देश के अर्थजगत को प्रभावित करने वाली दो बड़ी हस्तियां मौजूद थीं. महिंद्रा एंड महिंद्रा के आनंद महिंद्रा और नीति आयोग के उपाध्यक्ष्ा अमिताभ कांत. मीडिया और कारोबारी जगत में फिलहाल जिस विषय पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, वह है मेक इन इंडिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऐसा सपना, जिसमें वे भारत को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ निर्माता देशों में शामिल देखना चाहते हैं.
लेकिन, सवाल उठाने वाले यही कहते हैं कि मेक इन इंडिया प्रधानमंत्री का एक जुमला भर है. हकीकत में इस पर कोई काम नहीं हो रहा है. इससे मिलता जुलता सवाल इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई ने आनंद महिंद्रा से किया, तो उनका एक सधा हुआ और सीधा जवाब था.
राजदीप ने कहा कि वे जब भी महिंद्रा ग्रुप के बारे में वीकीपीडिया पर पढ़ते हैं तो यही पाते हैं कि यह ग्रुप विदेशी कंपनियों का अधिग्रहण तेजी से करता जा रहा है. तो भारतीय उद्योगपतियों के लिए मेक इन इंडिया का मतलब मेक इन इजीप्ट या मेक इन साउथ अफ्रीका होकर रह गया है ? क्या यह अजीब विसंगति है या गलत मूल्यांकन ?
मुंबई में हो रहे इंडिया टुडे कॉनक्लेव में देश के अर्थजगत को प्रभावित करने वाली दो बड़ी हस्तियां मौजूद थीं. महिंद्रा एंड महिंद्रा के आनंद महिंद्रा और नीति आयोग के उपाध्यक्ष्ा अमिताभ कांत. मीडिया और कारोबारी जगत में फिलहाल जिस विषय पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, वह है मेक इन इंडिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऐसा सपना, जिसमें वे भारत को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ निर्माता देशों में शामिल देखना चाहते हैं.
लेकिन, सवाल उठाने वाले यही कहते हैं कि मेक इन इंडिया प्रधानमंत्री का एक जुमला भर है. हकीकत में इस पर कोई काम नहीं हो रहा है. इससे मिलता जुलता सवाल इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई ने आनंद महिंद्रा से किया, तो उनका एक सधा हुआ और सीधा जवाब था.
राजदीप ने कहा कि वे जब भी महिंद्रा ग्रुप के बारे में वीकीपीडिया पर पढ़ते हैं तो यही पाते हैं कि यह ग्रुप विदेशी कंपनियों का अधिग्रहण तेजी से करता जा रहा है. तो भारतीय उद्योगपतियों के लिए मेक इन इंडिया का मतलब मेक इन इजीप्ट या मेक इन साउथ अफ्रीका होकर रह गया है ? क्या यह अजीब विसंगति है या गलत मूल्यांकन ?
ऐसा इसलिए क्योंकि मैन्यूफेक्चरिंग के लिए भारत सबसे बेहतर जगह है. क्योंकि कई दशक तक चीन दुनिया की फैक्टरी बनकर रहा. फिर साउथ कोरिया में निर्माण हुए. लेकिन इन दोनों ही देशों में धीरे-धीरे वेतन और निर्माण लागत बढ़ती गईं. और अब यह फायदे का सौदा नहीं है. साउथ कोरिया में मैन्यूफैक्चरिंग कॉस्ट तो अमेरिका से भी ज्यादा हो गई है. भारत में दुनिया के देशों को इसलिए भी निर्माण शुरू करना चाहिए, क्योंकि हमारे देश में स्थिर सरकारें हैं. वेतन और युवाओं की संख्या तो हमारे पक्ष में है ही. थोड़ा प्रयास इज़ ऑफ डूइंग बिजनेस (कारोबार करने में आसानी) के मोर्चे पर रह गया है. वह काम भी जारी है.
इस वीडियो में देखिए और सुनिए आनंद महिंद्रा और अमिताभ कांत की दो टूक बातें -
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.