जीएसटी को लेकर काफी कुछ कहा सुना जा चुका है. ये भारत का अब तक का सबसे बड़ा टैक्स रिफॉर्म है और इसे लागू करने के बाद पूरे भारत में एक ही टैक्स होगा. जीएसटी को समझने और समझाने में ही 1 जुलाई लगभग आ ही गई और अब जरूरी है उन लोगों के बारे में भी बात करना जहां जीएसटी की मार सबसे ज्यादा पड़ेगी. मैं बात कर रही हूं उन चीजों की जो बेहद जरूरी हैं और जीएसटी लगाया गया है.
1. ब्रेल पेपर और व्हीलचेयर....
जीएसटी का सबसे बड़ा असर उन लोगों पर पड़ेगा जो किसी ना किसी कारण अपना आम जीवन नहीं जी सकती हैं. कारण? कारण ये है कि ब्रेल टाइपराइटर, ब्रेल पेपर, व्हीलचेर और ऐसे ही अन्य असिस्टिव डिवाइसेस पर जीएसटी 5 से 18% के बीच लगाया गया है.
मोबिलिटी और असिस्टिव डिवाइसेस पर जीएसटी लगाना एक कठिन फैसला है उन लोगों के लिए जो वैसे भी अपनी जिंदगी इन सभी चीजों के बिना नहीं जी सकते हैं. 2016 बजट में अरुण जेटली ने ब्रेल पेपर को किसी भी तरह के टैक्स से मुक्त किया था और अब इसपर 5% टैक्स लगेगा. इसी तरह विकलांगो द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली घड़ियां, सुनने वाली मशीन और बाकी अप्लायंस भी 5% टैक्स स्लैब में हैं.
भारत में गाहे-बगाहे ये बात होती रहती है कि जिन भी लोगों को डिसएबिलिटी है उनके लिए और सुविधाएं दी जाएं. एक्सेसिबल इंडिया कैम्पेन भी इस मामले में लॉन्च किया गया है.
अब खुद ही बताइए ऐसे में व्हीलचेयर और ब्रेल पेपर में टैक्स लगाने का मतलब है कि आपने देखने और चलने पर टैक्स लगा दिया. भारत में 2011 सेंसर के मुताबिक 2.21% विकलांग लोग हैं और अगर गणना की जाए तो ये संख्या इससे कही ज्यादा होगी. ऐसे में उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली चीजों पर टैक्स क्यों?
2. सैनेट्री...
जीएसटी को लेकर काफी कुछ कहा सुना जा चुका है. ये भारत का अब तक का सबसे बड़ा टैक्स रिफॉर्म है और इसे लागू करने के बाद पूरे भारत में एक ही टैक्स होगा. जीएसटी को समझने और समझाने में ही 1 जुलाई लगभग आ ही गई और अब जरूरी है उन लोगों के बारे में भी बात करना जहां जीएसटी की मार सबसे ज्यादा पड़ेगी. मैं बात कर रही हूं उन चीजों की जो बेहद जरूरी हैं और जीएसटी लगाया गया है.
1. ब्रेल पेपर और व्हीलचेयर....
जीएसटी का सबसे बड़ा असर उन लोगों पर पड़ेगा जो किसी ना किसी कारण अपना आम जीवन नहीं जी सकती हैं. कारण? कारण ये है कि ब्रेल टाइपराइटर, ब्रेल पेपर, व्हीलचेर और ऐसे ही अन्य असिस्टिव डिवाइसेस पर जीएसटी 5 से 18% के बीच लगाया गया है.
मोबिलिटी और असिस्टिव डिवाइसेस पर जीएसटी लगाना एक कठिन फैसला है उन लोगों के लिए जो वैसे भी अपनी जिंदगी इन सभी चीजों के बिना नहीं जी सकते हैं. 2016 बजट में अरुण जेटली ने ब्रेल पेपर को किसी भी तरह के टैक्स से मुक्त किया था और अब इसपर 5% टैक्स लगेगा. इसी तरह विकलांगो द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली घड़ियां, सुनने वाली मशीन और बाकी अप्लायंस भी 5% टैक्स स्लैब में हैं.
भारत में गाहे-बगाहे ये बात होती रहती है कि जिन भी लोगों को डिसएबिलिटी है उनके लिए और सुविधाएं दी जाएं. एक्सेसिबल इंडिया कैम्पेन भी इस मामले में लॉन्च किया गया है.
अब खुद ही बताइए ऐसे में व्हीलचेयर और ब्रेल पेपर में टैक्स लगाने का मतलब है कि आपने देखने और चलने पर टैक्स लगा दिया. भारत में 2011 सेंसर के मुताबिक 2.21% विकलांग लोग हैं और अगर गणना की जाए तो ये संख्या इससे कही ज्यादा होगी. ऐसे में उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली चीजों पर टैक्स क्यों?
2. सैनेट्री पैड्स...
सिंदूर और चूड़ियां ज्यादा जरूरी है या सैनेट्री पैड? अगर आप किसी लड़की से पूछेंगे तो वो सैनेट्री पैड ही कहेगी. जहां तक लड़कियों और औरतों का सवाल है सिंदूर ना लगाएं तो चल सकता है, चूड़ियां ना पहने तो भी काम चल सकता है, लेकिन बिना सैनेट्री पैड तो काम नहीं चल सकता. अरे जनाब पान के पत्ते भी टैक्स स्लैब से बाहर हैं.
सैनेट्री पैड का इस्तेमाल करना ना सिर्फ सेहत के लिए जरूरी है बल्कि ये महिलाओं की सुविधा की बात भी है. सैनेट्री नैपकिन का रेट 14.5 % से कम करके 12% कर दिया है और अगर टैम्पून का इस्तेमाल किया जाता है तो 18%, लेकिन क्या ये 5% टैक्स स्लैब में नहीं होना चाहिए?
अगर गिनती की जाए तो एक महिला एवरेज हर 6-8 घंटों में एक पैड बदलती है. ऐसे में 3-4 पैड्स हर दिन, यानि लगभग 18 से 20 पैड्स हर साइकल. चलिए 18 मान लीजिए. अब एक पैकेट पैड अगर 200 रुपए का आता है तो हर महीने ये 200 रुपए का खर्च, साल का 200*12 मतलब 2400 रुपए और 39 लगभग 39 साल एक महिला के जीवन में पीरियड होते हैं तो 2400*39= 93,600 रुपए. ये तो आम गणना है अगर कोई महिला अलग-अलग ब्रैंड के पैड्स का इस्तेमाल करती है तो ये और महंगा हो जाएगा.
अब आप खुद ही बताइए क्या ये खर्च खत्म किया जा सकता है? इस मामले में तो #LahuKaLagaan कैम्पेन भी चलाई गई जिसमें लाखों सिग्नेचर किए गए. ना जाने कितनी बार ये बात हुई, लेकिन लगता है जेटली जी का इस टैक्स को कम करने का कोई इरादा नहीं है. ये महंगाई उन औरतों को सबसे ज्यादा असर करेगी जो वैसे भी पैड्स का इस्तेमाल कर पाने में असमर्थ हैं और कपड़े, पत्तों का इस्तेमाल करने को मजबूर हैं. ये उनकी सेहत के साथ खिलवाड़ ही होगा.
3. किसानों का कर्ज माफ लेकिन टैक्स का क्या?
किसानों की कर्ज माफी के बारे में तो आपने सुन ही लिया होगा. हर जगह किसान प्रदर्शन, कर्ज माफी और किसान आत्महत्या का घमासान मचा हुआ है. ऐसे में खुद ही बताइए कि फर्टिलाइजर और पेस्टिसाइड पर जीएसटी लगाने का क्या मतलब है?
एक तरफ कर्ज माफी कर दी जाए और दूसरी तरफ खेती ही महंगी कर दी जाए.. क्या ये चीजें 5% टैक्स स्लैब में नहीं हो सकती थीं जिन्हें अब 12 से 18% टैक्स स्लैब में कर दिया गया है.
फर्टिलाइजर्स जो अभी 5-7% टैक्स स्लैब में हैं वो जीएसटी के बाद 12% में आ जाएंगे. 3 साल पहले जो खाद का 50 किलो का बैग 250 रुपए में आता था वो अब वैसे भी 750 रुपए का है और आने वाले समय में ये और बढ़ जाएगा. अब खुद ही बताइए ऐसे में कितने और किसान कर्ज लेंगे? खेती में कितने खाद के बोरे लगेंगे और कितना खर्च बढ़ जाएगा? अब एक तरफ आप सामान महंगा कर रहे हैं और दूसरी तरफ फर्टिलाइजर्स पर सब्सिडी देते हैं. ऐसे में क्या सरकार सिर्फ नंबर के साथ खेल रही है? मतलब एक तरफ से पैसा कमा लिया जाए और दूसरी तरफ ये बताया जाए कि जनाब हम तो किसानों को सब्सिडी दे रहे हैं.
इसी तरह से खरपतवार को खत्म करने के लिए जो पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल किया जाता है वो भी हैं. पेस्टिसाइड्स पर अभी 12-15% तक टैक्स लगता है और जीएसटी के बाद वो 18% टैक्स स्लैब में आ जाएगा.
अब अगर खेती-खलिहानी करने वाले टूल्स, ट्रैक्टर आदि की बात की जाए तो एग्रो इंडस्ट्री में इन सब के लिए छूट है, पाइप आदि के लिए तो इनपुट टैक्स क्रेडिट भी नहीं है. अब इन सब को बनाने वाले किसानों से टैक्स नहीं ले सकते क्योंकि ये गैरकानूनी हो जाएगा तो बहुत हद तक ये मुमकिन है कि ये टैक्स प्रोडक्ट की कीमत में जोड़ दिया जाए. मतलब ट्रैक्टर आदि और महंगे हो सकते हैं. ऐसे में किसानों की हालत का तो अंदाजा लगाया ही जा सकता है.
ऐसा नहीं है कि जीएसटी लगने से कुछ भी फायदा नहीं होगा. होगा फायदा, लेकिन ऐसा नहीं है कि किसी खास तब्के को इससे फर्क नहीं पड़ेगा. पूजा की सामग्री, पान के पत्ते यहां तक की कॉन्डोम भी जीएसटी के टैक्स स्लैब से बाहर है. इन मामलों में भी अगर गौर कर लिया जाए तो शायद जीएसटी का विरोध थोड़ा कम हो जाए.
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