2014 में प्रधानमंत्री पद की दौड़ में लगे नरेन्द्र मोदी को भले लगा हो कि विदेशी बैंकों में जमा अरबों-खरबों की दौलत को वह सत्ता संभालने के 100 दिनों के भीतर भारत ले आएंगे, लेकिन ऐसा हो न सका. मोदी सरकार के सौ दिन पूरे हुए कि विपक्ष के साथ-साथ चारों तरफ से उस 100 दिन के वादे पर हमला होना शुरू हो गया. बचाव में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने 100 दिन के चुनावी वादे को जुमला करार दिया गया. इसलिए नहीं कि सत्ता मिलने के 100 दिन बाद मोदी सरकार ने विदेशों में दबे कालेधन को लाने का इरादा छोड़ दिया. बल्कि इसलिए कि प्रधानमंत्री को सत्ता संभालने के बाद यह पता चला कि दशकों से विदेशी बैंकों में जमा हो रहे कालेधन को वापस लाने में दोहरी चुनौती है. पहला इसके लिए देश में कानून बनाने की जरूरत है जो देश में पैदा हो रहे कालेधन को काला कह सकेगा और दूसरा उन देशों में भी नए कानून की जरूरत है जो उस पुराने कानून को हटा सके जो इस पैसे को भारत लाने की राह में रोड़ा बना हुआ है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्विस राष्ट्रपति जोहान स्नेडर |
जहां तक सवाल देश में कानून का है तो केन्द्र सरकार द्वारा गठित एसआईटी फिलहाल कालेधन के आंकलन के साथ-साथ इसकी खोज में लगी हुई है और एक बार इन मुद्दों पर एसआईटी किसी निष्कर्ष पर पहुंचेगी तो सरकार कानून बनाने का काम शुरू कर सकती है. लेकिन मोदी सरकार के लिए ज्यादा बड़ी चुनौती उन टैक्स हैवन देशों में नए कानून की है जो फिलहाल देश के पैसे को वहां सुरक्षित कर रही है. इस दिशा में प्रधानमंत्री 7 जून को अपनी अमेरिका यात्रा से पहले एक दिन दुनिया के सबसे अहम टैक्स हैवन देश स्विटजरलैंड में बिता सकते हैं, ऐसा मीडिया में सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है.
2014 में प्रधानमंत्री पद की दौड़ में लगे नरेन्द्र मोदी को भले लगा हो कि विदेशी बैंकों में जमा अरबों-खरबों की दौलत को वह सत्ता संभालने के 100 दिनों के भीतर भारत ले आएंगे, लेकिन ऐसा हो न सका. मोदी सरकार के सौ दिन पूरे हुए कि विपक्ष के साथ-साथ चारों तरफ से उस 100 दिन के वादे पर हमला होना शुरू हो गया. बचाव में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने 100 दिन के चुनावी वादे को जुमला करार दिया गया. इसलिए नहीं कि सत्ता मिलने के 100 दिन बाद मोदी सरकार ने विदेशों में दबे कालेधन को लाने का इरादा छोड़ दिया. बल्कि इसलिए कि प्रधानमंत्री को सत्ता संभालने के बाद यह पता चला कि दशकों से विदेशी बैंकों में जमा हो रहे कालेधन को वापस लाने में दोहरी चुनौती है. पहला इसके लिए देश में कानून बनाने की जरूरत है जो देश में पैदा हो रहे कालेधन को काला कह सकेगा और दूसरा उन देशों में भी नए कानून की जरूरत है जो उस पुराने कानून को हटा सके जो इस पैसे को भारत लाने की राह में रोड़ा बना हुआ है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्विस राष्ट्रपति जोहान स्नेडर |
जहां तक सवाल देश में कानून का है तो केन्द्र सरकार द्वारा गठित एसआईटी फिलहाल कालेधन के आंकलन के साथ-साथ इसकी खोज में लगी हुई है और एक बार इन मुद्दों पर एसआईटी किसी निष्कर्ष पर पहुंचेगी तो सरकार कानून बनाने का काम शुरू कर सकती है. लेकिन मोदी सरकार के लिए ज्यादा बड़ी चुनौती उन टैक्स हैवन देशों में नए कानून की है जो फिलहाल देश के पैसे को वहां सुरक्षित कर रही है. इस दिशा में प्रधानमंत्री 7 जून को अपनी अमेरिका यात्रा से पहले एक दिन दुनिया के सबसे अहम टैक्स हैवन देश स्विटजरलैंड में बिता सकते हैं, ऐसा मीडिया में सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है.
माना जा रहा है कि यह यात्रा हुई तो स्विटजरलैंड की राजधानी बर्न में राष्ट्रपति जोहान स्नेडर से कुछ घंटों की अहम मुलाकात करेंगे. इस मुलाकात में दोनों देशों के बीच एक ऐसे समझौते पर सहमति बनाने की कोशिश की जाएगी जिसके तहत स्विटजरलैंड की सरकार वहां भारतीयों द्वारा बैंक में जमा कराए जा रहे रकम की त्वरित सूचना देगी. गौरतलब है फिलहाल स्विटजरलैंड में मौजूदा कानून वहां की सरकार को बैंकों की सूचना किसी अन्य देश को मुहैया कराने से प्रतिबंधित करती है. लेकिन बीते कुछ महीनों में स्विस सरकार ने कनाडा, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया समेत यूरोपीय देशों को इस कानून से अलग करने पर द्विपक्षीय समझौता किया है और इन देशों को टैक्स संबंधित जानकारी त्वरित रूप से मुहैया कराई जाती है. प्रधानमंत्री मोदी ने इससे पहले अपने अमेरिका दौरे पर स्विस के राष्ट्रपति से मुलाकात कर ऐसी ही डील भारत के साथ करने के लिए राजी किया था जिसके बाद दोनों देशों को संबंधित मंत्रालय इसे कारगर करने के काम में लगे हैं.
ऐसे में एक बार फिर अमेरिका दौरे पर जाते वक्त यदि प्रधानमंत्री मोदी स्विटजरलैंड में रुकने का कार्यक्रम बना रहे हैं तो जाहिर है कि कालेधन को वापस लाने के अपने वादे को निभाने के लिए वह कोई बड़ा समझौता कर सकते हैं. गौरतलब है कि अगले कुछ महीनों में उत्तरप्रदेश और पंजाब जैसे अहम राज्यों में चुनाव है और यदि स्विस सरकार के साथ यह सहमति बनाने में प्रधानमंत्री सफल होते हैं तो इन चुनावों में अमित शाह के जुमलों वाले बयान पर विपक्ष के प्रहार को निष्क्रिय करने का एक बड़ा शगूफा मोदी सरकार के हाथ लग सकता है जो कि इन राज्यों के संभावित नतीजों में बड़ा फेरबदल कर सकता है.
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