'खामोशी : द पॉलिटिकल'. न तो ये 'खामोशी: द म्युजिकल' का सिक्वल है, न ही इसका उससे कोई रिश्ता है. ये सुनील बोहरा की नई फिल्म का नाम हो सकता है. सुनील बोहरा? अरे, वही 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' वाले.
थीम
बोहरा को उम्मीद है कि उनकी नई फिल्म भी 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' की तरह ही चर्चित होगी. बल्कि, उससे कहीं ज्यादा चर्चित होगी.
बोहरा की बड़ी उम्मीद की खास वजह भी है. असल में, ये फिल्म उस किताब पर आधारित है जिसने बाजार में उतरने से पहले ही तलहका मचा दिया था. 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' : द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह'.
फिल्म के बारे में बोहरा का कहना है, "मेरी फिल्म में कोई पॉलिटिकल एजेंडा नहीं होगा, कोई राजनीतिक तेवर नहीं होगा".
सही बात है. वैसे भी रियल लाइफ कैरेक्टर का कोई राजनीतिक एजेंडा तो रहा नहीं, फिर रील लाइफ में राजनीतिक तेवर की उम्मीद करना तो बेमानी ही होगी.
एक्टर और कैरेक्टर
चर्चा है कि बोहरा लीड रोल के लिए 'मिस्टर बीन' का कैरेक्टर निभाने वाले एक्टर को लेने की योजना बना रहे हैं. हालांकि, बोहरा ने, फिलहाल, इसे महज कयास बताया है.
कहानी का तानाबाना ऐसा होगा कि सिनेमा का आम दर्शक खुद को जुड़ा हुआ महसूस करे. संभव है कहानी फिल्म बाहुबली की तरह डेवलप हो जिसकी शुरुआत नायक के बचपन या छात्र जीवन से जुड़ी हो सकती है. स्टोरीलाइन पर काम जोर शोर से चल रहा है, हालांकि, अभी कुछ भी फाइनल शेप नहीं ले सका है.
स्टोरी लाइन
बचपन में वो बहुत बोलता था. इतना बोलता था कि मां के लिए किसी से बात तक करना दूभर हो जाता. ऐसे में उसकी मां - बच्चे के मुंह में 'लेमनचूस' डाल दिया करती थी. शुरू शुरू में तो बच्चा चबा कर घोंट जाता और फिर शुरू हो जाता था. फिर मां ने समझाया कि देर तक चूसने से फायदा होता है. बच्चा मान गया. हमेशा के लिए. बाद के दिनों में तो 'लेमनचूस' की भी जरूरत नहीं पड़ती.
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वो एक अति-मेधावी छात्र था. बड़े सपने उसने...
'खामोशी : द पॉलिटिकल'. न तो ये 'खामोशी: द म्युजिकल' का सिक्वल है, न ही इसका उससे कोई रिश्ता है. ये सुनील बोहरा की नई फिल्म का नाम हो सकता है. सुनील बोहरा? अरे, वही 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' वाले.
थीम
बोहरा को उम्मीद है कि उनकी नई फिल्म भी 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' की तरह ही चर्चित होगी. बल्कि, उससे कहीं ज्यादा चर्चित होगी.
बोहरा की बड़ी उम्मीद की खास वजह भी है. असल में, ये फिल्म उस किताब पर आधारित है जिसने बाजार में उतरने से पहले ही तलहका मचा दिया था. 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' : द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह'.
फिल्म के बारे में बोहरा का कहना है, "मेरी फिल्म में कोई पॉलिटिकल एजेंडा नहीं होगा, कोई राजनीतिक तेवर नहीं होगा".
सही बात है. वैसे भी रियल लाइफ कैरेक्टर का कोई राजनीतिक एजेंडा तो रहा नहीं, फिर रील लाइफ में राजनीतिक तेवर की उम्मीद करना तो बेमानी ही होगी.
एक्टर और कैरेक्टर
चर्चा है कि बोहरा लीड रोल के लिए 'मिस्टर बीन' का कैरेक्टर निभाने वाले एक्टर को लेने की योजना बना रहे हैं. हालांकि, बोहरा ने, फिलहाल, इसे महज कयास बताया है.
कहानी का तानाबाना ऐसा होगा कि सिनेमा का आम दर्शक खुद को जुड़ा हुआ महसूस करे. संभव है कहानी फिल्म बाहुबली की तरह डेवलप हो जिसकी शुरुआत नायक के बचपन या छात्र जीवन से जुड़ी हो सकती है. स्टोरीलाइन पर काम जोर शोर से चल रहा है, हालांकि, अभी कुछ भी फाइनल शेप नहीं ले सका है.
स्टोरी लाइन
बचपन में वो बहुत बोलता था. इतना बोलता था कि मां के लिए किसी से बात तक करना दूभर हो जाता. ऐसे में उसकी मां - बच्चे के मुंह में 'लेमनचूस' डाल दिया करती थी. शुरू शुरू में तो बच्चा चबा कर घोंट जाता और फिर शुरू हो जाता था. फिर मां ने समझाया कि देर तक चूसने से फायदा होता है. बच्चा मान गया. हमेशा के लिए. बाद के दिनों में तो 'लेमनचूस' की भी जरूरत नहीं पड़ती.
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वो एक अति-मेधावी छात्र था. बड़े सपने उसने अपने मन से कभी नहीं देखे. मां का भी बस इतना सा ख्वाब था - पढ़ लिख कर नौकरी मिल जाए.
अब इसे कोई मिडल क्लास समझे या कैटल क्लास...
उसने खूब मेहनत से पढ़ाई की. एक एक करके ढेर सारी डिग्रियां जुटाईं. खूब तैयारी की इंटरव्यू दिया. फिर उसे एक बहुत बड़े निजी बैंक में नौकरी मिली. मगर उसे तो सरकारी नौकरी चाहिए थी. वो पूरे लगन से लगा रहा. फिर सरकारी बैंक में नौकरी मिल गई. फिर एक के बाद एक बहुत प्रमोशन होते गए...
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मां के कहने पर ही वो बचपन से चिट्ठियां लिखता रहा. धीरे धीरे वो शौक बन गया, और आगे चल कर न छूटने वाला शगल बन गया.
फिर देश में मोबाइल क्रांति आई. तब किसी ने दुनिया को मुट्ठी में करने की नहीं सोची थी.
सोच तो दूरगामी थी, है. चिट्ठियां गीतों का हिस्सा रह जाएंगी. नई इकोनॉमी मोबाइल से ही रेग्युलेट होगी, इस बात का अंदाजा उसे काफी पहले से था. उसने में एक मोबाइल खरीदा.
मेहनत की कमाई से उस दौर में खरीदा गया वो देश का पहला मोबाइल फोन था.
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अचानक एक दिन उसके पास एक परी का फोन आया. कुछ सेकंड की बातचीत से परी खासी प्रभावित हुई. परी ने उसे अपने महल में बुलाया. बहुत देर तक दोनों बातचीत करते रहे. परी को वो लड़का बड़े काम का लगा. उसने उसे काम पर रख लिया...
गेटकीपर का गुरु मंत्र
इंटरव्यू से ठीक पहले गेट पर चौकीदार मिला. उसने उसका हाल चाल पूछा. फिर संजय दत्त की तरह एक जादू की झप्पी दी. चौकीदार इतना खुश हुआ कि उसने कुछ सलाह देने की इजाजत मांगी. फिर सलाह भी दी. एक बेशकीमती सलाह.
"कुछ भी हो जाए, बाबू. कम से कम बोलना. बगैर बोले काम चल जाए तो पूरे वक्त चुप ही रहना. मेरी नौकरी अब तक इसीलिए चल रही है. मेरे से पहले यहां 16 लोग मिल कर छह महीने भी नहीं टिक पाए."
मन मोह लिया
कुछ दिन बाद परी के दरबार में एक मंत्री को किसी बात पर बहुत तेज गुस्सा आ गया. संयोगवश उसी मंत्री ने उस लड़के को सरकारी बैंक में रखा था. हालांकि, मंत्री ने उसकी डिग्रियां देख कर नौकरी दी.
मंत्री ने गुस्से में पूछा, "आखिर क्या देख कर आपने उसे इतना बड़ा काम दे दिया? उसमें ऐसी कौन सी खासियत है कि आपको और कोई नहीं मिला?"
परी ने दरबार में मौजूद सभी लोगों से बारी बारी से पूछा. सभी ने अपने अपने तरीके से गुस्से का इजहार किया. फिर परी ने वजह बताई.
परी बोली. वो लड़का पूरे दिन हमारे साथ रहा. मेरी हर बात पर वो या तो मुस्कुरा देता या चुप रह जाता. दिन भर की बातचीत में उसने एक ही शब्द बोला.
अब हर किसी के दिमाग में घूमने लगा कि आखिर उसने कौन सा शब्द बोला होगा? परी को ये बात भी समझ में आ गई कि दरबार में बैठे लोगों के दिमाग में क्या चल रहा है?
फिर परी ने सभी से वो खास शब्द गेस करने को कहा. इतना कहने के बाद परी डिनर के लिए चली गई.
सिर्फ एक शब्द
डिनर के बाद भी दरबार लगा. सभी ने अपने अपने अनुमान से वो शब्द बताए. सभी मिस-मैच साबित हुए.
खुद परी को ही उसका खुलासा करना पड़ा. परी ने बताया कि उस लड़के ने पूरे दिन में वही एक शब्द तीन बार बोले थे.
और वो खास शब्द था, "जी".
ये सुनते ही हर किसी का सिर गर्व से झुक गया.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.