सुबह हो रही है शाम हो रही है मेरी जिंदगी यूँ ही तमाम हो रही है. यूँ समझ लीजिये कि मैं चाहे मेट्रो, कैब, टेम्पो, ऑटो, विक्रम, टिर्री, गणेश रिक्शे, ई रिक्शे किसी भी चीज़ से दफ्तर जाऊं मैं लेट हो जाता हूँ. या यूँ भी कहा जा सकता है कि, मैं देर करता नहीं देर हो जाती है. मैं कभी - कभी ये सोचकर गमगीन हो जाता हूँ कि अवश्य ही मैंने पिछले जन्म में कोई बड़ा भयंकर पाप किया होगा जिसके चलते ब्रह्मा ने मेरे भाग्य में देर से दफ्तर पहुंचना लिख दिया है.
प्रायः आपने भी देखा होगा आदमी जाड़े में डव और नीविआ साबुन और गर्मी में ठन्डे वाले लाइफ बॉय से नहाकर, डियो वियो लगाकर दफ्तर के लिए निकलता है और जब वो दफ्तर की पार्किंग या लिफ्ट के पास पहुँचता है तो मौसम कोई भी हो, आर्म से लेकर अंडर आर्म और कफ से लेके कॉलर तक पसीना और उस पसीने से लगे दाग़ होते हैं.
टीवी में बताते हैं कि दाग अच्छे हैं, मगर टीवी वाले हमारा हाल क्या जानें. शक्ल से लेके जेब तक दोनों ही स्थितियों में, मैं बेहद गरीब आदमी हूँ. मेरी जिंदगी या तो परिवहन के अलग - अलग साधनों में यात्रा करते बीत रही है या फिर ट्राफिक जाम में जाम को कोसते हुए. जाम भी ऐसा कि ना पूछिए. मेरे जैसा हटा कट्टा पूरे 100 किलो का आदमी अच्छे से खा - पीकर घर से निकलता है और जब वो पूरे 2 घंटे बाद दफ्तर पहुँचता है तो उसे कमजोरी सताने लगती है. दोबारा भूख लग जाती है.
आप भी याद करके देखिये किसी ऐसे मौके को कि जब आप किसी अत्यंत आवश्यक काम से कहीं जा रहे हों और रास्ते में जाम मिल जाए तो कितनी तकलीफ होती है. कितना गुस्सा आता है. ये गुस्सा तब विकराल रूप ले लेता है जब, हमारे साथ कोई मरीज हो. इस बात को पढ़कर आप सिर्फ कल्पना के सागर में गोते लगाकर देखें, आपको मेरी बात समझ में आ...
सुबह हो रही है शाम हो रही है मेरी जिंदगी यूँ ही तमाम हो रही है. यूँ समझ लीजिये कि मैं चाहे मेट्रो, कैब, टेम्पो, ऑटो, विक्रम, टिर्री, गणेश रिक्शे, ई रिक्शे किसी भी चीज़ से दफ्तर जाऊं मैं लेट हो जाता हूँ. या यूँ भी कहा जा सकता है कि, मैं देर करता नहीं देर हो जाती है. मैं कभी - कभी ये सोचकर गमगीन हो जाता हूँ कि अवश्य ही मैंने पिछले जन्म में कोई बड़ा भयंकर पाप किया होगा जिसके चलते ब्रह्मा ने मेरे भाग्य में देर से दफ्तर पहुंचना लिख दिया है.
प्रायः आपने भी देखा होगा आदमी जाड़े में डव और नीविआ साबुन और गर्मी में ठन्डे वाले लाइफ बॉय से नहाकर, डियो वियो लगाकर दफ्तर के लिए निकलता है और जब वो दफ्तर की पार्किंग या लिफ्ट के पास पहुँचता है तो मौसम कोई भी हो, आर्म से लेकर अंडर आर्म और कफ से लेके कॉलर तक पसीना और उस पसीने से लगे दाग़ होते हैं.
टीवी में बताते हैं कि दाग अच्छे हैं, मगर टीवी वाले हमारा हाल क्या जानें. शक्ल से लेके जेब तक दोनों ही स्थितियों में, मैं बेहद गरीब आदमी हूँ. मेरी जिंदगी या तो परिवहन के अलग - अलग साधनों में यात्रा करते बीत रही है या फिर ट्राफिक जाम में जाम को कोसते हुए. जाम भी ऐसा कि ना पूछिए. मेरे जैसा हटा कट्टा पूरे 100 किलो का आदमी अच्छे से खा - पीकर घर से निकलता है और जब वो पूरे 2 घंटे बाद दफ्तर पहुँचता है तो उसे कमजोरी सताने लगती है. दोबारा भूख लग जाती है.
आप भी याद करके देखिये किसी ऐसे मौके को कि जब आप किसी अत्यंत आवश्यक काम से कहीं जा रहे हों और रास्ते में जाम मिल जाए तो कितनी तकलीफ होती है. कितना गुस्सा आता है. ये गुस्सा तब विकराल रूप ले लेता है जब, हमारे साथ कोई मरीज हो. इस बात को पढ़कर आप सिर्फ कल्पना के सागर में गोते लगाकर देखें, आपको मेरी बात समझ में आ जायगी.
आप खुद महसूस करेंगे कि आपके पास हालिया रिलीज फिल्म बाहुबली में भल्लालदेव के पास मौजूद रथ और गदा होता जिससे आप उन लोगों की गाड़ियों को गाजर मूली की तरह काटते चलते जो आपकी राह का रोड़ा बने हुए हैं. या फिर भारी वाहनों को हटाने के लिए आप उसी भल्लालदेव के गदे का इस्तेमाल कर उन वाहनों को धाराशाही कर देते.
ईश्वर न करे कभी ऐसा हो कि आप किसी गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति के तीमारदार बनकर उसे भर्ती कराने अस्पताल ले जा रहे हों और वो सड़क पर लगने वाले जाम के चलते उसकी मौके पर मौत हो जाए. जी हाँ ये बात किसी भी व्यक्ति के माथे पर चिंता के बल और पसीने की बूँदें लाने के लिए काफी हैं. अब हम जो आपको बताने जा रहे हैं वो अवश्य ही आपको परेशान कर देगा. दिल्ली - एनसीआर में एक 7 साल के बच्चे की मौत हो गयी है. बच्चे को बचाया जा सकता था मगर जाम ने उस मासूम की जान लील ली.
मामला नॉएडा का है जहाँ एक गंभीर रूप से बीमार और फिरोजाबाद के मूल निवासी 7 साल के बच्चे को एम्बुलेंस द्वारा भर्ती कराने एम्स ले जाया जा रहा था. बच्चे को ले जाने वाली एम्बुलेंस दिल्ली में, जाम में फँस गयी और सही समय पर इलाज न मिलने के चलते बच्चे की मौके पर ही मौत हो गयी. बताया जा रहा है कि ये जाम तब लगा जब मकान खरीदने वाले खरीदारों की एक बड़ी संख्या ने समय पर मकान ना मिलने के चलते सड़क जाम कर दी.
पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कानून अपने हाथ में लेकर घर की मांग करते इन प्रदर्शनकरियों की संख्या 300 के आस पास थी. पुलिस ने मामला अपने संज्ञान में ले लिया है और इस पर उचित कार्यवाही करी जा रही है.
अंत में उपरोक्त इंगित बातों से हटकर इतना ही कि यदि आप किसी व्यक्ति को जाम में फंसा देखें या फिर कोई एम्बुलेंस आपको जाम में फँसी हुई दिखे तो उसे रास्ता दें. आपकी ज़रा सी सावधानी एक बड़ी दुर्घटना को टाल सकती है. आप रोज़ लेट होते हैं जाहिर है उस दिन भी होंगे मगर जिस वक़्त आप किसी का भला कर रहे होंगे उस वक्त आपको जो सुख मिलेगा उसकी कल्पना को शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता. जाते - जाते इतना ही कि आप स्वस्थ रहें, जागरूक रहें.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.