प्यारी हनीप्रीत,
सबसे पहले तुमको बता दूँ वहां जेल में बेचारे बाबा तुम्हारी बिरह में सूख के छुआरा और हम पुलिसवाले ऐंठ के अंगूर से किशमिश हो गए हैं. बाकी बात बस इतनी है कि, तुमको गायब हुए अब पूरा एक महीना होने को है. और हां अब क्या बताएं मगर तुम तो ऐसे गायब हो गयी हो जैसे गधे के सिर से सींग. अब जब तुम गायब हो, तो तुम्हारे गायब होने से न सिर्फ बाबा और सवा सौ करोड़ भारतीय प्रभावित हुए हैं बल्कि हमारे ऊपर भी संकट के बादल गहराने लगे हैं.
बाबा को तुम्हें याद करने के अपने अलग कारण हैं. तुम्हारे गायब होने से हम लोग चिंता में बस इसलिए हैं कि, तुम्हारे इस तरह चले जाने के बाद अब लोग हमारी कुशलता पर सवालिया निशान लगाने लग गए हैं.
बारिश हो रही थी तो दुकान पर भीड़ का होना लाजमी था. अभी मैं दुकान पर पहुंच के स्टूल पर बैठा ही था कि पीछे से कोई कहने लगा 'देखो इन्हें, एक हनीप्रीत तो इनसे पकड़ी नहीं जा रही और कैसे बेशर्मी से ये यहां चाय पी रहे हैं'. अब तुम ही बताओ अब जब तुम मिलने का नाम नहीं ले रही हो तो क्या हम लोग खाना पीना और बच्चों के साथ घूमना फिरना छोड़ दें.
नहीं, ये बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं है. ये कुछ वैसा ही है कि 'करे कोई और भरे कोई' करा तुमने हैं और भर हम लोग रहे हैं. ऐसा...
प्यारी हनीप्रीत,
सबसे पहले तुमको बता दूँ वहां जेल में बेचारे बाबा तुम्हारी बिरह में सूख के छुआरा और हम पुलिसवाले ऐंठ के अंगूर से किशमिश हो गए हैं. बाकी बात बस इतनी है कि, तुमको गायब हुए अब पूरा एक महीना होने को है. और हां अब क्या बताएं मगर तुम तो ऐसे गायब हो गयी हो जैसे गधे के सिर से सींग. अब जब तुम गायब हो, तो तुम्हारे गायब होने से न सिर्फ बाबा और सवा सौ करोड़ भारतीय प्रभावित हुए हैं बल्कि हमारे ऊपर भी संकट के बादल गहराने लगे हैं.
बाबा को तुम्हें याद करने के अपने अलग कारण हैं. तुम्हारे गायब होने से हम लोग चिंता में बस इसलिए हैं कि, तुम्हारे इस तरह चले जाने के बाद अब लोग हमारी कुशलता पर सवालिया निशान लगाने लग गए हैं.
बारिश हो रही थी तो दुकान पर भीड़ का होना लाजमी था. अभी मैं दुकान पर पहुंच के स्टूल पर बैठा ही था कि पीछे से कोई कहने लगा 'देखो इन्हें, एक हनीप्रीत तो इनसे पकड़ी नहीं जा रही और कैसे बेशर्मी से ये यहां चाय पी रहे हैं'. अब तुम ही बताओ अब जब तुम मिलने का नाम नहीं ले रही हो तो क्या हम लोग खाना पीना और बच्चों के साथ घूमना फिरना छोड़ दें.
नहीं, ये बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं है. ये कुछ वैसा ही है कि 'करे कोई और भरे कोई' करा तुमने हैं और भर हम लोग रहे हैं. ऐसा इसलिए कि अब घर से लेकर दफ्तर और बाहर सब जगह हम लोगों की थू-थू हो रही है. जो भी हमें देखता है नाकारा, निकम्मा, रिश्वतखोर, आलसी न जाने कैसे-कैसे विशेषण दे देता है. संविधान ने हमें मजबूर कर रखा है वरना सच में हम लोग लाठी मार-मार के सभी को सुजा देते और इस तरह उनका मुंह बंद हो जाता.
मैं कल रात खाना खाने के बाद टीवी देख रहा था तो न्यूज वालों ने बताया कि, तुम नेपाल के रास्ते चीन जा चुकी हो. मैं तुमसे अनुरोध करता हूं कि तुम अपने रब से मेरे चीन आने की दुआ करो. हालांकि मुझे कहते हुए शर्म आ रही है मगर अब तुमसे न कहूंगा तो किस्से कहूंगा ये सुनकर कि तुम चीन में हो और हम तुम्हें खोजने चीन जा सकते हैं घर से लेकर सुसराल तक सबके अपनी-अपनी डिमांड का पुलिंदा मेरे इन्हीं हाथों में, जिससे मैं तुम्हें खत लिख रहा हूं पकड़ा दिया है. साले को बड़े से लेंस वाला कैमरा चाहिए तो साली को अच्छी सेल्फी लेने वाला मोबाइल.
खैर अब पत्र लंबा हो रहा है और दशहरा और दिवाली जैसे खर्चे वाले त्योहार भी सिर पर हैं बेहतर है तुम खुद-ब-खुद वापस आ जाओ और अपने आपको हमारे हवाले कर, हमारे ऊपर लग रहे कलंक को धो दो. विश्वास रखो तुम्हें कोई कुछ भी नहीं कहेगा और साथ ही तुम्हें सरकारी गवाह बना के तुम्हारा पूरा ख्याल रखा जाएगा.
रही बात चीन जाने की तो तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. मेरी ईश्वर पर अटूट आस्था है ये मुझे फिर विदेश भेजेगा ठीक वैसे जैसे अभी कुछ दिनों पूर्व उसने मुझे नेपाल भेजा था. वाकई में बड़ा अच्छा लगता है जब कोई यार दोस्त या सहकर्मी मुझसे पूछता है कि कभी विदेश गए हो और मैं जवाब में ये कहता हूं कि हां अभी कुछ दिन पूर्व ही मैं हनीप्रीत को खोजने के सिलसिले में नेपाल में था.
तुम्हारा,
हरियाणा पुलिस का एक हेड कांस्टेबल
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