पुराने ज़माने में एक राजा था. नाम था पारस. राजा जिस भी चीज़ को हाथ लगाता वो सोने की हो जाती. इसके उलट आज एक राजा पुत्र है. राजकुमार राहुल गांधी. राहुल गांधी अगर सोने को भी हाथ लगा दें तो वो पत्थर में बदला जाता है. अब तो ये स्पष्ट हो गया है कि राहुल एक पनौती हैं और कांग्रेस को जल्द से जल्द उनसे छुटकारा पा ही लेना चाहिए. ना सिर्फ अपनी पार्टी के लिए बल्कि राजकुमार अपनी पार्टी के साथ हुए हर गठबंधन के लिए भी ताबूत की आखिरी कील ही साबित हुए हैं.
अखिलेश ने राहुल गांधी के साथ हाथ ही नहीं मिलाया बल्कि हर रैली में भी उन्हें अपने साथ भी रखा. साफ-साफ कहूं तो यही कदम अखिलेश के लिए आत्मघाती साबित हुआ. सोचने की बात ये है कि आखिर क्यों अखिलेश ने अपने कार्यों और उनकी उपलब्धियों पर भरोसा करने के बजाय कांग्रेस से हाथ मिलाना जरूरी समझा? क्या ये फैसला नरेन्द्र मोदी की लहर के डर से लिया था या फिर यूपी के मुसलमानों का वोट पाने के लालच में कुल्हाड़ी पर पैर मारा? अखिलेश यादव ने RaGa के साथ गठबंधन किया तो किया, खुले सांड की तरह RaGa को 5 साल से उगाई गई अपनी फसल को तबाह करने का भी भरपूर मौका दिया. काम के बजाय अखिलेश ने RaGa को बोलने दिया और नतीजा औंधे मुंह जमीन पर गिरे. विनाश काले विपरीत बुद्धि.
राहुल गांधी ने ना सिर्फ अखिलेश के वोट बैंक को हिला दिया बल्कि यूपी की जनता के बीच जो उनका स्टारडम और पहचान को भी धक्का दे दिया. नतीजतन जिस समाजवादी पार्टी ने 2012 के विधानसभा चुनावों में 206 सीटों के पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई थी. वही इस बार दो अंकों के साथ 60 के नीचे आ गई. जब-जब राहुल गांधी ने रैली की तो हमेशा मोदी के ही खिलाफ थे. या फिर वो कहते रहे कि एसपी-कांग्रेस गठबंधन यूपी को मोदी की तानाशाही और उनके चंगुल से कैसे बचाएंगे. अखिलेश ने अपनी हर उपलब्धि को दरकिनार कर राहुल को ऐसा करने से रोका भी नहीं. बस RaGa ने अखिलेश के सारे किए-कराए पर वॉटर कैनन चलाने में कोई देरी नहीं की.
राहुल ने सबकी नईया डूबोई
ये RaGa और उनका करिश्मा है. RaGa जहां भी जाते हैं हार उनसे पहले पहुंच कर कांग्रेस और उनकी साथी पार्टी के कत्लेआम की जमीन तैयार कर देती है. राहुल गांधी एकलौते पीस हैं. एकदम यूनिक. वो विकलांग नहीं हैं, बल्कि उनको विकलांग कहना अपने-आप में विकलांग शब्द की बेइज्जती होगी. लेकिन राहुल इकलौते पीस हैं जो जिस पार्टी के साथ गठबंधन करता है उसका वोट बैंक भी खा जाता है. 2016 में, जब RaGa ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ, मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के साथ गठबंधन किया. नतीजा- 2011 के विधानसभा चुनावों में 62 सीटें पाने वाली वाम दल 2016 में 27 पर सिमट गई. इसी को 'राहुल-टच' कहते हैं!
पंजाब के चुनाव अभियान और रैलियों से राहुल गांधी की गैरमौजूदगी की पार्टी के लिए वरदान साबित हुई. अगर राहुल बाबा पंजाब चुनावों में भी पार्टी के 'उद्धार' की सोचते तो बंटाधार तय था. पंजाब में पार्टी के कार्यकर्ता कैप्टन अमरिंदर सिंह और भगवान को लड्डू जीतना चुनाव जीतने के लिए नहीं चढ़ा रहे होंगे उससे ज्यादा RaGa को 'कुबुद्धि' देने और पंजाब से दूर रखने के लिए भोग लगा रहे होंगे.
क्योंकि राहुल जब कुछ नहीं करते तभी सबसे अच्छा काम करते हैं! 13 साल से सांसद राहुल के हिस्से एक भी जीत नहीं है. आजतक किसी भी चुनाव में वो पार्टी को जीताने में नाकामयाब ही साबित हुए. RaGa ने कांग्रेस पार्टी ही नहीं बल्कि उन पार्टियों की नैया को भी फुरसत से डुबोया जिन्होंने इनके साथ गठबंधन करने का 'ऐतिहासिक फैसला' (क्योंकि चुनाव के बाद वो पार्टी ही इतिहास बन जाती है) लिया. जनता के साथ तालमेल ना बिठा पाना और एक नेता के रूप में लगातार असफल होना तो सिर्फ शुरुआत है.
आज के यूपी चुनावों की इस करारी हार के बाद इस बात में कोई शक नहीं रह गया कि भारतीय राजनीति का भस्मासुर कोई है तो वो सिर्फ और सिर्फ RaGa ही है. कांग्रेस के हाथ ने कईयों के राजनीतिक सपनों को खाक में मिला दिया. हां ये जानना बाकी है कि भगवान शंकर कौन है!
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