वैसे तो कांग्रेस की 'गोरमिंट' तब ही बिक चुकी थी जब उन्होंने राहुल गांधी को इस देश का पीएम बनाने का सोचा और उसके चलते जगह-जगह हार और फजीहत का सामना किया. मगर अब जिस तरह कांग्रेस ने महिला कार्ड खेला है और राष्ट्रपति पद के लिए मीरा को उतारा वो अपने में खासा अलग अंदाज है. आप चाहे मानिए या न मानिए मगर कांग्रेस इस बात को बखूबी जानती है कि हम भारतीय महिलाओं को लेकर बड़े 'जज्बाती' हैं और अपनी तरफ से सैदेव यही प्रयास करते हैं कि उनके सामने संस्कारी बनकर उनका दिल जीत लें.
हम अपने भोलेपन के बारे में क्या बताएं. हम तो इतने भोले हैं कि कोई भी हमें महिलाओं के कंधे पर बंदूक रखकर पराजित कर सकता है. कहा जा सकता है कि ये कला सिर्फ हम भारतियों के अन्दर है कि हम महिलाओं के दम पर बस और मेट्रो में भी सीट लेना बखूबी जानते हैं. इस बात को आप एक उदाहरण से समझिये बात कुछ दिनों पहले की है, मैं मेट्रो से यात्रा कर रहा था.
भीड़ थी तो मैं खड़ा था तभी दूसरा स्टेशन आया और एक आंटी अंकल की जोड़ी मेट्रो में दाखिल हुई. अंकल को इग्नोर करते हुए और आंटी को खड़ा देखकर पास वाली सीट पर बैठा एक लड़का झट से खड़ा हो गया. लड़का अभी ढंग से खड़ा भी न हो पाया था कि झट से अंकल सीट पर बैठ गए और आंटी वहीं खड़ी की खड़ी रह गयीं.
अब आप इस बात को कांग्रेस के चश्मे और नजरिए से देखिये मिलेगा कि मीरा को लाकर कांग्रेस ने भी कुछ ऐसा ही किया है. कांग्रेस एक महिला की आड़ लेकर राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठना चाहती है.
ज्ञात हो कि राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनज़र बीजेपी ने राम उतारे थे तो कांग्रेस ने मीरा को लाकर खड़ा कर दिया. कोविंद बिहार के गवर्नर हैं, मीरा बिहार की बेटी हैं. यूं तो दोनों के विचारों में मतभेद होना स्वाभाविक है मगर...
वैसे तो कांग्रेस की 'गोरमिंट' तब ही बिक चुकी थी जब उन्होंने राहुल गांधी को इस देश का पीएम बनाने का सोचा और उसके चलते जगह-जगह हार और फजीहत का सामना किया. मगर अब जिस तरह कांग्रेस ने महिला कार्ड खेला है और राष्ट्रपति पद के लिए मीरा को उतारा वो अपने में खासा अलग अंदाज है. आप चाहे मानिए या न मानिए मगर कांग्रेस इस बात को बखूबी जानती है कि हम भारतीय महिलाओं को लेकर बड़े 'जज्बाती' हैं और अपनी तरफ से सैदेव यही प्रयास करते हैं कि उनके सामने संस्कारी बनकर उनका दिल जीत लें.
हम अपने भोलेपन के बारे में क्या बताएं. हम तो इतने भोले हैं कि कोई भी हमें महिलाओं के कंधे पर बंदूक रखकर पराजित कर सकता है. कहा जा सकता है कि ये कला सिर्फ हम भारतियों के अन्दर है कि हम महिलाओं के दम पर बस और मेट्रो में भी सीट लेना बखूबी जानते हैं. इस बात को आप एक उदाहरण से समझिये बात कुछ दिनों पहले की है, मैं मेट्रो से यात्रा कर रहा था.
भीड़ थी तो मैं खड़ा था तभी दूसरा स्टेशन आया और एक आंटी अंकल की जोड़ी मेट्रो में दाखिल हुई. अंकल को इग्नोर करते हुए और आंटी को खड़ा देखकर पास वाली सीट पर बैठा एक लड़का झट से खड़ा हो गया. लड़का अभी ढंग से खड़ा भी न हो पाया था कि झट से अंकल सीट पर बैठ गए और आंटी वहीं खड़ी की खड़ी रह गयीं.
अब आप इस बात को कांग्रेस के चश्मे और नजरिए से देखिये मिलेगा कि मीरा को लाकर कांग्रेस ने भी कुछ ऐसा ही किया है. कांग्रेस एक महिला की आड़ लेकर राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठना चाहती है.
ज्ञात हो कि राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनज़र बीजेपी ने राम उतारे थे तो कांग्रेस ने मीरा को लाकर खड़ा कर दिया. कोविंद बिहार के गवर्नर हैं, मीरा बिहार की बेटी हैं. यूं तो दोनों के विचारों में मतभेद होना स्वाभाविक है मगर दोनों में एक समानता है जो दोनों को एक सूत्र में बांधती है. इन दोनों को ही देश की दोनों बड़ी पार्टियां, भाजपा और कांग्रेस दलितों का नया चेहरा बता रही हैं.
कह सकते हैं वर्तमान समय में दोनों को ही दलित समुदाय के झंडाबरदार के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है. दोनों ही पार्टियों के इस फैसले पर विचार करें तो मिलता है कि जहां एक तरफ बीजेपी ने कोविंद को सोच समझ कर पूरी तसल्ली से उतारा था. वहीं ये देख के कांग्रेस के खेमे में बेचैनी बढ़ गयी उसने आनन फानन में मीरा को आगे करके ऐसा फैसला ले लिया जिसको लेकर उसे लगा कि अब वो आसानी से रण जीत सकती है.
बहरहाल, हम इतना ही कहेंगे कि इस बात से एक आम आदमी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो राष्ट्रपति की कुर्सी पर मीरा को बैठा देखे या कोविंद को, वो पहले भी लाइन में लग कर अपन जीवन गुजार रहा था आगे भी वो वैसे ही जीवन बिताएगा.
हां ये बात राजनीतिक पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण जरूर है कि उनके बिलों पर अब हस्ताक्षर कौन करता है. अंत में इतना ही कि वाकई कांग्रेस तारीफ की हकदार है और वो ये बात भली प्रकार जानती है कि महिलाओं के कंधे पर बंदूक रखकर बस और मेट्रो की सीट से लेकर सदन और राष्ट्रपति की सीट प्राप्त की जा सकती है.
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