विंटर सेशन में पूरे वक्त असहिष्णुता पर बहस, बवाल और बयानबाजी होती रही - आगे के लिए आशंका अभी खत्म नहीं हुई है. लगता है मोदी सरकार अब खुद भी कुछ कुछ भयाक्रांत है - इसलिए काउंटर करने के लिए कुछ सरकारी इंतजामों पर विचार किया जा रहा है.
सेंटर फॉर काउंटर एंड...
केंद्र की मोदी सरकार फिलहाल एक ऐसे इंटरफेथ डायलॉग कमीशन की राह तलाश रही है जिसकी ऐसे मामलों में संवैधानिक या उससे मिलती जुलती भूमिका हो. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसके लिए राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भाव प्रतिष्ठान को अपग्रेड किया जा सकता है या फिर नैशनल इंटिग्रेशन काउंसिल की भूमिका बढ़ाई जा सकती है.
इंटिग्रेशन काउंसिल की स्थापना 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने की थी. ये काउंसिल राष्ट्रीय एकता से जुड़े मसलों की समीक्षा करता है और उस पर अपनी सलाह देता है. इसी तरह 1992 में सांप्रदायिक सद्भाव प्रतिष्ठान बनाया गया जिसका मकसद राष्ट्रीय एकता, भाईचारा और सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने के साथ साथ पीड़ितों के पुनर्वास का इंतजाम करना भी है. अब सरकार इन्हीं दोनों में से किसी को अपग्रेड कर या कोई नया आयोग बनाने का विचार कर रही है जो असहिष्णुता जैसे मुद्दों पर मचे बवाल में प्रभावी भूमिका निभा सके.
ऐसे संभावित कमीशन के आइडिया पर विचार के लिए एक मीटिंग रखी गई थी जिसमें गृह मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल के अलावा मुस्लिम विद्वानों और धर्मगुरुओं को भी शामिल किया गया.
इस मीटिंग में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारुकी को भी बुलाया गया था. ईटी से बातचीत में फारूकी कहते हैं, 'आज जब भी बीजेपी में कोई राम मंदिर या दूसरे सांप्रदायिक मुद्दों पर बोलता है तो हमारी चिंता सुनने वाला कोई नहीं होता. आयोग से हमें ऐसी समस्याओं के हल में आसानी होगी.' फारूकी को लगता है कि ऐसा आयोग बनने से अल्पसंख्यकों का विश्वास बढ़ेगा और उनकी चिंताओं का हल निकल सकेगा.
ये तस्वीर का फ्रंट साइड है - अब दूसरा पहलू...
विंटर सेशन में पूरे वक्त असहिष्णुता पर बहस, बवाल और बयानबाजी होती रही - आगे के लिए आशंका अभी खत्म नहीं हुई है. लगता है मोदी सरकार अब खुद भी कुछ कुछ भयाक्रांत है - इसलिए काउंटर करने के लिए कुछ सरकारी इंतजामों पर विचार किया जा रहा है.
सेंटर फॉर काउंटर एंड...
केंद्र की मोदी सरकार फिलहाल एक ऐसे इंटरफेथ डायलॉग कमीशन की राह तलाश रही है जिसकी ऐसे मामलों में संवैधानिक या उससे मिलती जुलती भूमिका हो. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसके लिए राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भाव प्रतिष्ठान को अपग्रेड किया जा सकता है या फिर नैशनल इंटिग्रेशन काउंसिल की भूमिका बढ़ाई जा सकती है.
इंटिग्रेशन काउंसिल की स्थापना 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने की थी. ये काउंसिल राष्ट्रीय एकता से जुड़े मसलों की समीक्षा करता है और उस पर अपनी सलाह देता है. इसी तरह 1992 में सांप्रदायिक सद्भाव प्रतिष्ठान बनाया गया जिसका मकसद राष्ट्रीय एकता, भाईचारा और सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने के साथ साथ पीड़ितों के पुनर्वास का इंतजाम करना भी है. अब सरकार इन्हीं दोनों में से किसी को अपग्रेड कर या कोई नया आयोग बनाने का विचार कर रही है जो असहिष्णुता जैसे मुद्दों पर मचे बवाल में प्रभावी भूमिका निभा सके.
ऐसे संभावित कमीशन के आइडिया पर विचार के लिए एक मीटिंग रखी गई थी जिसमें गृह मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल के अलावा मुस्लिम विद्वानों और धर्मगुरुओं को भी शामिल किया गया.
इस मीटिंग में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारुकी को भी बुलाया गया था. ईटी से बातचीत में फारूकी कहते हैं, 'आज जब भी बीजेपी में कोई राम मंदिर या दूसरे सांप्रदायिक मुद्दों पर बोलता है तो हमारी चिंता सुनने वाला कोई नहीं होता. आयोग से हमें ऐसी समस्याओं के हल में आसानी होगी.' फारूकी को लगता है कि ऐसा आयोग बनने से अल्पसंख्यकों का विश्वास बढ़ेगा और उनकी चिंताओं का हल निकल सकेगा.
ये तस्वीर का फ्रंट साइड है - अब दूसरा पहलू देखिये.
चिराग तले चिंगारी...
मुजफ्फरनगर की सदर सीट पर 13 फरवरी को उपचुनाव है. यूपी की तीन विधानसभा सीटों के लिए होने जा रहे चुनावों में से एक ये भी है. बाकी को फिलहाल भूल जाइए. मुजफ्फरनगर में बीजेपी के चुनाव प्रचार की एक बानगी देखिए.
"लोक सभा के चुनाव में मुजफ्फरनगर से उठी चिंगारी प्रदेश में गई, प्रदेश से पूरे देश में गई. आप लोगों के द्वारा बनाये गये देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपको द्वारा चिंगारी के कारण बने थे."
ये हैं बीजेपी की उत्तर प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य उमेश मल्लिक. मंच पर स्थानीय सांसद और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान भी मौजूद हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इसके साथ ही मल्लिक 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों की भी विस्तार से चर्चा करते हैं. मल्लिक दावा करते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने बालियान को मंत्री बनाया और अब आपके पास भेजा है - आपके सम्मान की रक्षा के लिए.
फिर बालियान समझाते हैं, "ये चुनाव है तो बहुत छोटा लेकिन इसका असर बहुत बड़ा होगा. अगर आपको जरा भी डाउट हुआ तो समस्याएं खड़ी हो सकती हैं. मुझे मालूम है बाद में आपको पछतावा बी होगा, लेकिन फिर कोई फायदा नहीं होने वाला."
इस किताब में ममता ने दादरी की घटना और बीफ का जिक्र किया है. किताब में ममता ने लिखा है कि भारत में असहिष्णुता चरम पर है. बंगाल के चुनावी माहौल को देखते हुए तृणमूल कांग्रेस ममता की किताब को खूब प्रचारित कर रही है.
जब भी किसी घटना पर बवाल मचता है तो किसी न किसी जांच आयोग की घोषणा कर दी जाती है. कुछ को छोड़ दें तो ऐसे जांच आयोगों का हश्र तकरीबन एक जैसा ही होता रहा है. हश्र जो भी हो पीड़ित पक्ष की हालत में इससे शायद ही कभी बदलाव आता हो - हां, बच कर निकलने या तात्कालिक विरोध से निजात पाने में सरकार के लिए ये प्रभावी एस्कॉर्ट की तरह काम करते हैं.
अब असहिष्णुता के मसले पर भी ऐसे ही, लेकिन पक्के इंतजाम की तैयारी दिख रही है. मोदी सरकार ने योजना आयोग को खत्म कर उसकी जगह नीति आयोग बना दिया है. प्रस्तावित आयोग भी फिलहाल वैसा ही प्रयोग नजर आता है.
प्रस्तावित आयोग अगर कोई ठोस पहल के साथ आता है, फिर तो ठीक है. वरना वो भी मौजूदा आयोगों की कतार में खड़ा नजर आएगा जिसकी भूमिका असहिष्णुता पर अब सरकारी राशन की दुकान से ज्यादा नहीं लगती.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.