बॉर्डर पर पाकिस्तान के खिलाफ डटकर मुकाबला होता है. उत्तर प्रदेश के जवान प्रेम सागर को आतंकी मार देते हैं और उनके शरीर को क्षत-विक्षत करके वापस बॉर्डर पर छोड़ देते हैं. एक जवान शहीद होता है. उसके घर वाले अभी तक गमज़दा हैं. उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव टीकम्पार के रहने वाले प्रेम सागर राज्य के सबसे पिछड़े जिलों में से एक देओरा डिस्ट्रिक्ट से सीमा पर लड़ने आए थे.
जवान के शहीद होने के बाद उत्तर प्रदेश के सीएम उनके घर आने की बात करते हैं. पूरा मामला सेट किया जाता है. रातों-रात गांव को चमका दिया जाता है. कच्ची पगडंडी जो जवान के घर जाती थी उसे चकाचक कर दिया जाता है. गटर के ढक्कन बंद कर दिए जाते हैं. स्वास्थ केंद्र जो बंद पड़ा था उसे अचानक खोल दिया जाता है.
खैर, मुख्यमंत्री जी आते हैं.. शहीद के परिवार के घर लगभग 15 मिनट रहते हैं. उन्हें 6 लाख रुपए मुआवजा दिया जाता है. वो चले जाते हैं. अब जो होता है वो थोड़ा अजीब है. जैसे रातों-रात सारी सुविधाएं जवान के घर में आई थीं वैसे ही वो हटा ली जाती हैं. जाने के एक घंटे के अंदर ही हटा ली जाती हैं. एसी, पर्दे, कालीन सब निकाल लिया जाता है.
घर वाले चौंके हुए हैं कि ये आखिर हो क्या रहा है. शहीद जवान का बड़ा बेटा कहता है कि उन्होंने कुछ मांगा नहीं था फिर ये सब क्यों किया गया? हम वैसे ही दुख में हैं और अब इससे क्या होगा.
योगी आदित्यनाथ के बारे में मश्हूर है कि वो सारी लग्जरी से दूर रहते हैं. कहा तो ये...
बॉर्डर पर पाकिस्तान के खिलाफ डटकर मुकाबला होता है. उत्तर प्रदेश के जवान प्रेम सागर को आतंकी मार देते हैं और उनके शरीर को क्षत-विक्षत करके वापस बॉर्डर पर छोड़ देते हैं. एक जवान शहीद होता है. उसके घर वाले अभी तक गमज़दा हैं. उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव टीकम्पार के रहने वाले प्रेम सागर राज्य के सबसे पिछड़े जिलों में से एक देओरा डिस्ट्रिक्ट से सीमा पर लड़ने आए थे.
जवान के शहीद होने के बाद उत्तर प्रदेश के सीएम उनके घर आने की बात करते हैं. पूरा मामला सेट किया जाता है. रातों-रात गांव को चमका दिया जाता है. कच्ची पगडंडी जो जवान के घर जाती थी उसे चकाचक कर दिया जाता है. गटर के ढक्कन बंद कर दिए जाते हैं. स्वास्थ केंद्र जो बंद पड़ा था उसे अचानक खोल दिया जाता है.
खैर, मुख्यमंत्री जी आते हैं.. शहीद के परिवार के घर लगभग 15 मिनट रहते हैं. उन्हें 6 लाख रुपए मुआवजा दिया जाता है. वो चले जाते हैं. अब जो होता है वो थोड़ा अजीब है. जैसे रातों-रात सारी सुविधाएं जवान के घर में आई थीं वैसे ही वो हटा ली जाती हैं. जाने के एक घंटे के अंदर ही हटा ली जाती हैं. एसी, पर्दे, कालीन सब निकाल लिया जाता है.
घर वाले चौंके हुए हैं कि ये आखिर हो क्या रहा है. शहीद जवान का बड़ा बेटा कहता है कि उन्होंने कुछ मांगा नहीं था फिर ये सब क्यों किया गया? हम वैसे ही दुख में हैं और अब इससे क्या होगा.
योगी आदित्यनाथ के बारे में मश्हूर है कि वो सारी लग्जरी से दूर रहते हैं. कहा तो ये भी जाता है कि वो एसी में नहीं सोते, लकड़ी के तख्त का इस्तेमाल करते हैं. वगैराह-वगैराह.. हालांकि, इनमें कितना सच है ये किसी को नहीं पता क्योंकि जिस सेक्रेटेरिएट में वो काम करते हैं वो भी सेंट्रली एयरकंडीशन है. अब जरा गौर कीजिए एक योगी जो मुख्यमंत्री बन गया है, जिसे सभी सुख-सुविधाओं की आदत नहीं है वो आखिर 15 मिनट के लिए भी क्या बिना एसी के नहीं रह सकता जो इस तरह की सुविधाएं उनके लिए जुगाड़ी गईं.
लखनऊ से 400 किलोमीटर दूर इस गांव में रातों-रात सड़कों को सुधार दिया गया. मुख्यमंत्री के काफिले के आने से चलिए ये तो अच्छा हुआ. गनीमत है कि सड़कों को उखाड़ कर वापस पहले जैसा नहीं किया गया. इस बारे में जब PWD से पूछा गया तो उनके पास कोई जवाब नहीं था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ये जरूर कहा गया है कि ये सब कुछ मुख्यमंत्री के पर्सनल स्टाफ के कहने पर किया गया था.
घर वाले परेशान थे क्योंकि अगले दिन शहीद जवान का श्राद्ध था और इस सबके कारण उनके काम में दख्ल पड़ा. बहुत परेशानी हुई.
महज 15 मिनट के दौरे के लिए एक बार हम गांव की सफाई और सकड़ों का सुधारीकरण जरूर मान सकते हैं, लेकिन घर पर एसी और कार्पेट बिछाना क्या उस शहीद जवान का अपमान नहीं था. ये तो फिर भी ठीक है, लेकिन मुख्यमंत्री के चले जाने के बाद सबकुछ वापस ले जाना क्या यही था? एक परिवार जो खुद दुख में है उनके साथ ऐसा व्यवहार कहां सही था.
अगर इस बारे में योगी आदित्यनाथ को पता था तो इस काम को सही नहीं माना जाएगा और अगर नहीं भी पता था तो भी ये किसी हालत में सही नहीं था.
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