फारूक अहमद दार ऊर्फ बिट्टा कराटे, नईम खान, अल्ताफ फनटूश और चार अन्य अलगाववादी और हुर्रियत नेताओं की आतंक, पत्थर फेंकने वालों, स्कूल जलाने वालों, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोपों में गिरफ्तारी कश्मीर में आतंकवाद के खात्मे की तरफ उठाया गया पहला कदम है.
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) का दावा है कि सीमा पार और और नियंत्रण रेखा (एलओसी) से घाटी में पत्थरबाजी करने वालों को पैसे भेजे जाते हैं और इनका एक-दूसरे से सीधा संपर्क है. पत्थरबाजों को ये पैसे हवाला के जरिए भेजे जाते हैं. इंडिया टुडे के स्टिंग ऑपरेशन ने घाटी में अशांति और स्कूलों को जलाने के लिए पाकिस्तान से पैसे पाने वाले लोगों को उजागर भी किया था.
हुर्रियत द्वारा बुलाए गए बंद का कश्मीर की जनता द्वारा सहयोग न करना इस सच्चाई को उजागर करता है कि अब जनता को हुर्रियत के दोहगलेपन का पता चल गया है.
एनआईए ने कहा- "एनआईए ने 30 मई 2017 को ही हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेताओं और लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया था. ये लोग आतंकवादी संगठनों के सक्रिय सदस्यों और आतंकवादियों के साथ मिलकर काम कर रहे थे. और हिज्बुल मुजाहिदिन, दुख्तारन-ए-मिलात, लश्कर-ए-तैयबा और इसी तरह के कई आतंकी संगठनों के लिए हवाला के जरिए पैसों का इंतजाम करते थे. ये अलगाववादी और आतंकवादी कश्मीर घाटी में पत्थरबाजों, स्कूलों को आग लगाने और सार्वजनिक संपत्तियों को बढ़ावा देकर अशांति और आतंकी घटनाओं को बढ़ाना चाहते थे."
एनआईए ने जम्मू और कश्मीर, दिल्ली और हरियाणा में संदिग्धों की खोज के लिए कई सर्च ऑपरेशन चलाए थे और उन्होंने लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिदिन के लेटरहेड पर लिखे कई पत्रों के साथ बहुत सारे जरूरी दस्तावेज के साथ-साथ करोड़ों...
फारूक अहमद दार ऊर्फ बिट्टा कराटे, नईम खान, अल्ताफ फनटूश और चार अन्य अलगाववादी और हुर्रियत नेताओं की आतंक, पत्थर फेंकने वालों, स्कूल जलाने वालों, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोपों में गिरफ्तारी कश्मीर में आतंकवाद के खात्मे की तरफ उठाया गया पहला कदम है.
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) का दावा है कि सीमा पार और और नियंत्रण रेखा (एलओसी) से घाटी में पत्थरबाजी करने वालों को पैसे भेजे जाते हैं और इनका एक-दूसरे से सीधा संपर्क है. पत्थरबाजों को ये पैसे हवाला के जरिए भेजे जाते हैं. इंडिया टुडे के स्टिंग ऑपरेशन ने घाटी में अशांति और स्कूलों को जलाने के लिए पाकिस्तान से पैसे पाने वाले लोगों को उजागर भी किया था.
हुर्रियत द्वारा बुलाए गए बंद का कश्मीर की जनता द्वारा सहयोग न करना इस सच्चाई को उजागर करता है कि अब जनता को हुर्रियत के दोहगलेपन का पता चल गया है.
एनआईए ने कहा- "एनआईए ने 30 मई 2017 को ही हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेताओं और लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया था. ये लोग आतंकवादी संगठनों के सक्रिय सदस्यों और आतंकवादियों के साथ मिलकर काम कर रहे थे. और हिज्बुल मुजाहिदिन, दुख्तारन-ए-मिलात, लश्कर-ए-तैयबा और इसी तरह के कई आतंकी संगठनों के लिए हवाला के जरिए पैसों का इंतजाम करते थे. ये अलगाववादी और आतंकवादी कश्मीर घाटी में पत्थरबाजों, स्कूलों को आग लगाने और सार्वजनिक संपत्तियों को बढ़ावा देकर अशांति और आतंकी घटनाओं को बढ़ाना चाहते थे."
एनआईए ने जम्मू और कश्मीर, दिल्ली और हरियाणा में संदिग्धों की खोज के लिए कई सर्च ऑपरेशन चलाए थे और उन्होंने लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिदिन के लेटरहेड पर लिखे कई पत्रों के साथ बहुत सारे जरूरी दस्तावेज के साथ-साथ करोड़ों रूपए की कैश और मूल्यवान वस्तुएं बरामद की. गिरफ्तार अलगाववादियों को कई सवालों के जवाब देने हैं.
लेकिन ये सिर्फ पहला कदम है और देखना ये होगा कि क्या एनआईए पूछताछ के लिए हुर्रियत के सैयद अली शाह गिलानी और मिरवाइज उमर फारूख समेत शीर्ष नेतृत्व को भी सवालों के जवाब के लिए बुलाएगा या नहीं. लंबे समय से इन अलगाववादियों ने कश्मीर पर पाकिस्तानी रट ही लगाई है. पुलिस सूत्रों के अनुसार श्रीनगर में जामिया मस्जिद के बाहर रमजान के दौरान डीएसपी मोहम्मद आयुब पंडित की मौत के लिए जवाब देना होगा.
इसके पहले भी हुर्रियत नेताओं और दुखतारन-ए-मिल्लत के आसिया अंदारबी ने पाकिस्तान-कब्जे वाले कश्मीर में टेलीफोन पर लश्कर-ए-तैयबा की रैलियों को संबोधित किया है. उन्होंने नियमित रूप से भारत के खिलाफ जहर उगला है. सरकार उन पर नरम क्यों है? यह धारणा है कि सरकार दबाव में है और हुर्रियत को अपने साथ मिलाने के लालच में ही उनके आगे नरम पड़ जाती है.
जैसे ही वे लाइन पर आ जाते हैं सरकार कदम वापस खींच लेती है. हुर्रियत नेता दावा भी करते हैं कि सरकार ने समय-समय पर स्थिति को नियंत्रित करने के लिए उनका इस्तेमाल किया है. पाकिस्तान हुर्रियत को कश्मीर के लोगों का प्रतिनिधि मानता है क्योंकि ये नेता पाकिस्तान के एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं.
इंडिया टुडे ने खुलासा किया है कि कैसे हुर्रियत नेताओं ने लश्कर और हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों के लिए पैसे और मोबाइल फोन का इंतजाम किया है. रिपोर्ट इस बात की भी है कि अलगाववादियों ने आतंकवादियों के लिए सुरक्षित घरों का भी इंतजाम किया है.
हुर्रियत नेताओं की गिरफ्तारी के बाद भी घाटी में शांति कायम रहने का मतलब है कि सड़कों पर आम आदमी और महिलाओं को इनसे कोई मतलब नहीं है. जम्मू और कश्मीर के डीजीपी एसपी वैद ने पुष्टि की है कि हुर्रियत बंद का प्रभाव लगभग न के बराबर था.
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जब जनता के बीच सरकार आगे बढ़ती है तो अलगाववादी और आतंकवादी पीछे हटते हैं. सरकार को यह सुनिश्चित करना है कि शासन में किसी तरह की कोई कमी ना आए. पाकिस्तान तभी अपना प्रभाव बनाने में सफल होता है जब सरकार अपना काम करने में असफल रहती है. इस बार राज्य और केंद्र दोनों की एजेंसियों को हुर्रियत नेताओं की भूमिका की जांच करनी चाहिए.
दोषी को बिना किसी पक्षपात या डर के सजा जरुर मिलनी चाहिए. यही नहीं आतंक मुक्त वातावरण बनाने की दिशा में अब काम करना भी शुरु कर देना चाहिए. आतंकवादी को मिलने वाले पैसे और हवाला ऑपरेशनों की जांच हो रही है, हुर्रियत के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है और पैसे लेकर सेना पर पत्थरबाजी करने वाले गिरोहों पर शिकंजे कसे जा रहे हैं, तो क्या ये अब भारत में पाकिस्तान की हार की शुरुआत है? उम्मीद तो ऐसी ही है!
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