भारत का शुमार उन देशों में है जो अपनी अद्भुत सांस्कृतिक विरासत के लिए सम्पूर्ण विश्व में विशेष मुकाम रखता है. भारत में ऐसा बहुत कुछ है जिसके चलते विश्व मानचित्र पर किसी भी भारतीय को गर्व की अनुभूति हो सकती है. बात अगर भारत और भारतीय सांस्कृतिक धरोहरों की हो और ऐसे में हम ताजमहल को नकार दें तो बात एक हद तक लगभग अधूरी रह जाती है. कहा जा सकता है कि विश्व के तमाम आश्चर्यों में शुमार ताजमहल, विश्व पटल पर भारत की पहचान का प्रमुख बिंदु है.
ताज महल हमारे गर्व का कारण है, हो सकता है इस बात से हम और आप सहमत हों मगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उसे 'हमारा' नहीं मानते. योगी की नजरों में आज भी ताजमहल 'सौतेला' है. जी हां, बिल्कुल सही सुना आपने जिस ताजमहल पर हमें गर्व है और जिसकी बदौलत हमारी सरकार को टूरिज्म के नाम पर भारी राजस्व प्राप्त हो रहा है उसे योगी न तो अपना और न ही अपने देश का मानते हैं. योगी की नजर में ताजमहल एक आम इमारत के सिवा कुछ नहीं है जिसका बेवजह इतना प्रचार और प्रसार किया जा रहा है. साथ ही ये भी मानते हैं कि ताजमहल हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन साल की उपलब्धियों को जनता के समक्ष लाने के उद्देश्य से उत्तरी बिहार के दरभंगा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए योगी ने कहा कि, पूर्व में, अन्य सरकारों द्वारा देश में आने वाले विदेशी गणमान्य व्यक्तियों को ताजमहल और अन्य मीनारों की प्रतिकृतियां भेंट की जाती थीं जो कहीं से भी भारतीय संस्कृति को प्रतिबिंबित नहीं करती हैं.
लेकिन अब यानी मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से विदेशी गणमान्य व्यक्ति जब भारत आते हैं तो उन्हें नई सरकार द्वारा भगवद गीता और रामायण की प्रति भेंट की जाती हैं उनके समक्ष हमारी संस्कृति को प्रदर्शित करती हैं.
भारत का शुमार उन देशों में है जो अपनी अद्भुत सांस्कृतिक विरासत के लिए सम्पूर्ण विश्व में विशेष मुकाम रखता है. भारत में ऐसा बहुत कुछ है जिसके चलते विश्व मानचित्र पर किसी भी भारतीय को गर्व की अनुभूति हो सकती है. बात अगर भारत और भारतीय सांस्कृतिक धरोहरों की हो और ऐसे में हम ताजमहल को नकार दें तो बात एक हद तक लगभग अधूरी रह जाती है. कहा जा सकता है कि विश्व के तमाम आश्चर्यों में शुमार ताजमहल, विश्व पटल पर भारत की पहचान का प्रमुख बिंदु है.
ताज महल हमारे गर्व का कारण है, हो सकता है इस बात से हम और आप सहमत हों मगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उसे 'हमारा' नहीं मानते. योगी की नजरों में आज भी ताजमहल 'सौतेला' है. जी हां, बिल्कुल सही सुना आपने जिस ताजमहल पर हमें गर्व है और जिसकी बदौलत हमारी सरकार को टूरिज्म के नाम पर भारी राजस्व प्राप्त हो रहा है उसे योगी न तो अपना और न ही अपने देश का मानते हैं. योगी की नजर में ताजमहल एक आम इमारत के सिवा कुछ नहीं है जिसका बेवजह इतना प्रचार और प्रसार किया जा रहा है. साथ ही ये भी मानते हैं कि ताजमहल हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन साल की उपलब्धियों को जनता के समक्ष लाने के उद्देश्य से उत्तरी बिहार के दरभंगा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए योगी ने कहा कि, पूर्व में, अन्य सरकारों द्वारा देश में आने वाले विदेशी गणमान्य व्यक्तियों को ताजमहल और अन्य मीनारों की प्रतिकृतियां भेंट की जाती थीं जो कहीं से भी भारतीय संस्कृति को प्रतिबिंबित नहीं करती हैं.
लेकिन अब यानी मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से विदेशी गणमान्य व्यक्ति जब भारत आते हैं तो उन्हें नई सरकार द्वारा भगवद गीता और रामायण की प्रति भेंट की जाती हैं उनके समक्ष हमारी संस्कृति को प्रदर्शित करती हैं.
गौरतलब है कि समाज के एक वर्ग के बीच ये विचार बड़ी तेजी के साथ प्रसारित हो चुका है कि ताजमहल जैसी इमारतें विदेशी आक्रांता द्वारा निर्मित करी गयी हैं जिस वजह से ये हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है. ताजमहल और शाहजहाँ को लेकर समाज के लोगों की एक बड़ी संख्या का मत है कि चूँकि इनके पूर्वज विदेशी लुटेरे और आक्रांता थे तो कैसे ये हमारी संस्कृति का हिस्सा बन गयी.
तर्क की दृष्टि से इस बात को देखें तो मिलता है कि भले ही शाहजहाँ के पूर्वज विदेशी रहे हों मगर इनका जन्म यहीं हुआ था तो इस प्रकार ये भारतीय हुए. अब अगर एक भारतीय, भारत में किसी चीज का निर्माण कराता है तो वो कैसे भारतीय नहीं है ये एक अलग बहस का विषय है.
हां ये संभव है कि ताजमहल का प्रमुख वास्तुकार एक फ़ारसी था और इसकी वास्तुकला का भी एक बड़ा भाग फ़ारस से प्रेरित है तो इसे आज कुछ लोग अपनी संस्कृति का हिस्सा न मानें. ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे लोगों को लगता है कि इस इमारत के निर्माण के लिए एक भारतीय के तौर पर शाहजहां ने विदेशियों की मदद ली थी.
खैर यदि इन बातों को आज के परिपेक्ष में देखा जाये तो मिलता है कि हम आज सुई से लेकर तलवार तक हम देश में जिस भी चीज का निर्माण कर रहे हैं वो कहीं न कहीं बाहर वालों की मदद से तैयार हो रही हैं और उनके निर्माण में विदेशियों का बहुत बड़ा हाथ है. आज हमारे प्रधानमंत्री एफडीआई की बात कर रहे हैं वो लगातार दूसरें देशों और वहां के लोगों से हमारी मदद करने को कह रहे हैं. ऐसे में हमारे राजनेताओं द्वारा एक भारतीय वस्तु को अपना न मानना इस पूरी प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न लगाता है.
ज्ञात हो कि आज मोबाइल फोन, इंटरनेट, ऑटोमोबाइल, कंस्ट्रक्शन, विज्ञान और तकनीक से लेकर मंगल मिशन तक हर जगह विदेशी और उनसे प्राप्त मदद शामिल है. अतः इन्हें नकारना अपने आप में एक बड़ी चूक है जो ये साफ दर्शाता है कि हम विकास की राह पर तो नहीं हां मगर पिछड़ेपन और रूढ़िवादी सोच के मार्ग पर तो जरूर हैं.
अंत में हम अपनी बात समाप्त करते हुए बस इतना ही कहेंगे कि इतिहास को कुरेदने जैसी बेकार की बातों से बेहतर है कि हमारे देश की सरकार और उस सरकार के अधीन नेता उन बातों पर गौर करें, जिससे इस विशाल देश की जानता को फर्क पड़ता है. साथ ही नेताओं के इन बयानों से एक बात और साफ है कि इनके पास कोई ऐसा बड़ा मुद्दा नहीं है जिसपर ये बात कर सकें तो बेहतर है इनके द्वारा उन मुद्दों पर बात करी जाए जिससे लोगों के बीच ये अपनी राजनीति चमका सकें.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.