ठीक दो साल बीते हैं. कांग्रेस अब भी खुद को उसी ही स्थिति में पा रही है जहां लोक सभा चुनाव के बाद रही. दिल्ली की हार और बिहार की जीत आपस में जुड़ कर न्यूट्रल हो गये. पुड्डुचेरी के सांत्वना पुरस्कार को कोई अहमियत नहीं मिल रही. जिक्र हो रहा है तो सिर्फ असम सहित चार राज्यों में हार का.
कांग्रेस की ओर से उछाली गई चार राज्यों के बीजेपी मुक्त होने की आवाज केंद्र में सत्तारुढ़ बीजेपी के 'कांग्रेस मुक्त भारत' के शोर में गुम जा रही है. बाकी जो बचा है उसमें कांग्रेस नेता या तो एक दूसरे की टांग खींचने में जुटे हैं या फिर अपने हित साधने में.
प्रोपेगैंडा तो प्रैक्टिस में है
एक प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी समझाते हैं कि कांग्रेस मुक्त भारत का प्रोपेगैंडा खड़ा किया जा रहा है, लेकिन असम छोड़ बाकी राज्य तो भाजपा मुक्त हुए ही हैं. है कि नहीं? बात में दम तो है.
सिंघवी ये भी समझाते हैं कि असम में कांग्रेस की हार हुई, केरल में गठबंधन हारा - लेकिन पुड्डुचेरी में? बीजेपी 30 सीटों पर लड़ी पर एक भी सीट जीत नहीं पाई.
सिंघवी कहते हैं, "हम प्रोपेगैंडा करने में इतने सक्षम नहीं हैं. कई बार ऐसा होता है कि जो प्रतीत होता है, वैसा होता नहीं है. जो लगातर बेबुनियाद प्रचार हो रहा है वो गलत है - तथ्यों के आधार पर नहीं है."
इसे भी पढ़ें: राहुल गांधी खुद ही कांग्रेस मुक्त भारत का क्रेडिट क्यों लेना चाहते हैं
सिंघवी कांग्रेस प्रवक्ता हैं और पेशे से वकील. लोग कन्वींस हों या न हों वो अपना काम बखूबी कर रहे हैं. वैसे प्रोपेगैंडा तो सियासत का शाश्वत हिस्सा है जिसके हाथ लग जाए वो इसका पूरा इस्तेमाल करता है. आखिर कांग्रेस पर भी तो ऐसे तोहमत लगते रहे हैं. है कि नहीं?
किस मर्ज की सर्जरी?
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ठीक दो साल बीते हैं. कांग्रेस अब भी खुद को उसी ही स्थिति में पा रही है जहां लोक सभा चुनाव के बाद रही. दिल्ली की हार और बिहार की जीत आपस में जुड़ कर न्यूट्रल हो गये. पुड्डुचेरी के सांत्वना पुरस्कार को कोई अहमियत नहीं मिल रही. जिक्र हो रहा है तो सिर्फ असम सहित चार राज्यों में हार का.
कांग्रेस की ओर से उछाली गई चार राज्यों के बीजेपी मुक्त होने की आवाज केंद्र में सत्तारुढ़ बीजेपी के 'कांग्रेस मुक्त भारत' के शोर में गुम जा रही है. बाकी जो बचा है उसमें कांग्रेस नेता या तो एक दूसरे की टांग खींचने में जुटे हैं या फिर अपने हित साधने में.
प्रोपेगैंडा तो प्रैक्टिस में है
एक प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी समझाते हैं कि कांग्रेस मुक्त भारत का प्रोपेगैंडा खड़ा किया जा रहा है, लेकिन असम छोड़ बाकी राज्य तो भाजपा मुक्त हुए ही हैं. है कि नहीं? बात में दम तो है.
सिंघवी ये भी समझाते हैं कि असम में कांग्रेस की हार हुई, केरल में गठबंधन हारा - लेकिन पुड्डुचेरी में? बीजेपी 30 सीटों पर लड़ी पर एक भी सीट जीत नहीं पाई.
सिंघवी कहते हैं, "हम प्रोपेगैंडा करने में इतने सक्षम नहीं हैं. कई बार ऐसा होता है कि जो प्रतीत होता है, वैसा होता नहीं है. जो लगातर बेबुनियाद प्रचार हो रहा है वो गलत है - तथ्यों के आधार पर नहीं है."
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सिंघवी कांग्रेस प्रवक्ता हैं और पेशे से वकील. लोग कन्वींस हों या न हों वो अपना काम बखूबी कर रहे हैं. वैसे प्रोपेगैंडा तो सियासत का शाश्वत हिस्सा है जिसके हाथ लग जाए वो इसका पूरा इस्तेमाल करता है. आखिर कांग्रेस पर भी तो ऐसे तोहमत लगते रहे हैं. है कि नहीं?
किस मर्ज की सर्जरी?
19 मई को विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस में सर्जरी की जरूरत बताई थी. इस पर सत्यव्रत चतुर्वेदी का कहना है कि पार्टी को ‘दिल के ऑपरेशन’ की जरूरत है, क्योंकि अब ‘कॉस्मेटिक सर्जरी’ से काम नहीं चलने वाला.
दिग्विजय और चतुर्वेदी दोनों मध्य प्रदेश से आते हैं और एक दूसरे को कभी पसंद नहीं करते. चतुर्वेदी की नजर में दिग्विजय सिंह जैसे नेता ही कांग्रेस की मौजूदा हालत के लिए जिम्मेदार हैं. कहते हैं, "जो लोग सर्जरी की जरूरत की बात कर रहे हैं उन्हें आत्मचिंतन करना चाहिए क्योंकि उन्हीं लोगों के कारण पार्टी ऐसे मोड़ पर पहुंची है."
सर्जरी या डायग्नोसिस... |
दिग्विजय और चतुर्वेदी की किसी खास वजह से अपनी अपनी दलील हो सकती है. दोनों ही किसी की नजर में सही और किसी के हिसाब से गलत हो सकते हैं.
लेकिन क्या कांग्रेस की समस्या सिर्फ इतनी ही है कि कुछ नेता पार्टी को डुबाने में लगे हैं? या असल वजह कुछ और है जो किसी के भी समझ में नहीं आ रहा.
कांग्रेस की स्थिति तो ये है कि सर्जरी तो बाद की बात है, सबसे पहले उसकी डायग्नोसिस जरूरी है - ये तो पता चले असली बीमारी क्या और कहां है?
डायग्नोसिस भी तो हो
कांग्रेस की स्थिति को लेकर बहस चल ही रही है कि पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह का भी बयान आ गया है, ''सोनिया गांधी को पार्टी अध्यक्ष बने रहना चाहिए, भले ही पांच राज्यों में चुनाव परिणाम कुछ भी आए."
अमरिंदर सिंह का ये बयान भी कांग्रेस के लिए खास अहमियत रखता है. ये बयान कांग्रेस के भीतर उन नेताओं की आवाज है जो न तो हिमंत बिस्वा सरमा, कलिखो पुल और विजय बहुगुणा बन पाते हैं न ही अमरिंदर की तरह अपनी लड़ाई खुद लड़ते भी हैं और जीतते भी हैं.
अमरिंदर सिंह और शीला दीक्षित ने तब भी ऐसे बयान दिये थे जब पिछले साल राहुल गांधी की ताजपोशी की बात चल रही थी. कांग्रेस से बाहर भी यूपीए के सहयोगी दलों के नेताओं ने भी ऐसी ही राय जाहिर की थी. राहुल गांधी कांग्रेस के अवतरित नेता हैं, ऐसे कांग्रेसियों की तादाद शायद ज्यादा होगी जो इस स्वाभाविक धारणा के कायल होंगे. उन्हें इन बातों पर चर्चा निश्चित रूप से समय और ऊर्जा की बर्बादी लगती होगी.
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हिमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस की इसी हकीकत की उपज हैं. असम में बीजेपी की जीत के आर्किटेक्ट सरमा ने ये बता कर सबको चौंका दिया था कि किस तरह जब तरुण गोगोई के खिलाफ अपनी फरियाद लेकर साथियों के साथ वो राहुल गांधी से मिलने पहुंचे तो वो उन नेताओं से ज्यादा अपने कुत्तों में इंटरेस्ट ले रहे थे.
कांग्रेस से बगावत कर अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने कलिखो पुल की कहानी भी वैसी ही है. कलिखो पुल की भी शिकायत रही कि तमाम कोशिशों के बावजूद राहुल गांधी ने उन्हें मुलाकात का वक्त ही नहीं दिया. उत्तराखंड के विजय बहुगुणा ने ऐसा कोई खुलासा नहीं किया है, लेकिन उनके सामने भी परिस्थितियां वैसी ही रही होंगी. केस अलग अलग हो सकते हैं, लेकिन ये इतना इशारा तो कर ही रहे हैं कि हालात में कोई तब्दीली नहीं आई है.
नतीजों के बाद सोनिया गांधी ने कांग्रेस नेताओं की हौसला अफजाई की - 'कोई भी असफलता स्थायी नहीं होती, सिद्धांतों पर बने रहें.'
इंदिरा गांधी पर एक किताब के विमोचन के मौके पर सोनिया पहुंचीं और करीब घंटे भर वहां रहीं. इंदिरा गांधी के डॉक्टर रहे केपी माथुर, जिन्होंने किताब लिखी है, के परिवार के साथ सोनिया ने फोटो भी खिंचवाये - लोगों से बातचीत भी कीं.
जब मीडिया ने कांग्रेस पार्टी के लिए आगे का रास्ता पूछा तो दार्शनिक अंदाज में टाल गईं.
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के हॉल में लगे शीशे से नजर आ रहे सीन की तरफ इशारा करते हुए बोलीं, "अभी मैं यह नजारा देख रही हूं. खूबसूरत बारिश, पेड़, अमलतास - मैं राजनीति की बात नहीं कर रही."
सोनिया ने बिलकुल ठीक कहा. कांग्रेस के आगे का रास्ता मीडिया में डिस्कस करने की चीज नहीं है. लेकिन बहुत देर तक न तो ऐसे नजारे देखे जा सकते हैं - और न ही हर मीटिंग में राहुल गांधी कांग्रेस नेताओं से ज्यादा अपने डॉगी में बिजी रह सकते हैं. अगर वक्त रहते कांग्रेस की बीमारी डायग्नोज नहीं हो पाई तो एक वक्त ऐसा भी आता है जब सर्जरी की जरूरत भी नहीं रह जाती.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.