यूपी में समाजवादी-कांग्रेस गठबंधन बीजेपी को पटखनी देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बाहरी साबित करने की तैयारी में है. बीजेपी इससे तो मुकाबला कर भी लेगी, लेकिन क्या वो पार्टी के भीतर कार्यकर्ताओं के असंतोष को खत्म कर पाएगी? हाल फिलहाल जिस तरह केशव मौर्य और ओम माथुर को विरोध और गुस्सा झेलना पड़ा है, क्या बीजेपी आलाकमान कार्यकर्ताओं के मन की बात सुनने की कोशिश कर रहा है?
मतदाताओं के मन की बात
प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में लगा एक पोस्टर देखते देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. ये पोस्टर गुलाब बाग में बीजेपी दफ्तर के पास लगा था, जिसे बाद में हटा दिया गया.
पोस्टर के शुरू में बताया गया - 'माननीय नरेंद्र मोदी जी के लिए...' और आगे लिखा - 'वाराणसी की जनता एवं कार्यकर्ताओं के मन की बात' इस पोस्टर के जरिये बताया गया कि इलाके का वोटर किस तरह बेबस और लाचार है. पोस्टर पर लिखी बातें आप भी पढ़ें -
"मैं कैंट विधानसभा का मतदाता हूं. मैं निरीह और बेबस हूं.
27 वर्षों से माननीया ज्योत्सना श्रीवास्तव एवं स्व. हरीशचन्द्र श्रीवास्तव को झेल रहा हूं.
आगे इनके पुत्र सौरभ श्रीवास्तव को झेलना है... जब तक कि ये वृद्ध न हो जाएं.
क्या फिर सौरभ के पुत्रों को भी झेलना पड़ेगा?
क्या एक भू माफिया, व्याभिचारी, अहंकारी विभिन्न मुकदमों में झेल रहे व्यक्ति को झेलना हमारी नियति बन गयी है?
जो व्यक्ति कार्यकर्ताओं से अशिष्ट भाषा में बात करता हो, उसको झेलना हमारी लाचारी बन गयी...
यूपी में समाजवादी-कांग्रेस गठबंधन बीजेपी को पटखनी देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बाहरी साबित करने की तैयारी में है. बीजेपी इससे तो मुकाबला कर भी लेगी, लेकिन क्या वो पार्टी के भीतर कार्यकर्ताओं के असंतोष को खत्म कर पाएगी? हाल फिलहाल जिस तरह केशव मौर्य और ओम माथुर को विरोध और गुस्सा झेलना पड़ा है, क्या बीजेपी आलाकमान कार्यकर्ताओं के मन की बात सुनने की कोशिश कर रहा है?
मतदाताओं के मन की बात
प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में लगा एक पोस्टर देखते देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. ये पोस्टर गुलाब बाग में बीजेपी दफ्तर के पास लगा था, जिसे बाद में हटा दिया गया.
पोस्टर के शुरू में बताया गया - 'माननीय नरेंद्र मोदी जी के लिए...' और आगे लिखा - 'वाराणसी की जनता एवं कार्यकर्ताओं के मन की बात' इस पोस्टर के जरिये बताया गया कि इलाके का वोटर किस तरह बेबस और लाचार है. पोस्टर पर लिखी बातें आप भी पढ़ें -
"मैं कैंट विधानसभा का मतदाता हूं. मैं निरीह और बेबस हूं.
27 वर्षों से माननीया ज्योत्सना श्रीवास्तव एवं स्व. हरीशचन्द्र श्रीवास्तव को झेल रहा हूं.
आगे इनके पुत्र सौरभ श्रीवास्तव को झेलना है... जब तक कि ये वृद्ध न हो जाएं.
क्या फिर सौरभ के पुत्रों को भी झेलना पड़ेगा?
क्या एक भू माफिया, व्याभिचारी, अहंकारी विभिन्न मुकदमों में झेल रहे व्यक्ति को झेलना हमारी नियति बन गयी है?
जो व्यक्ति कार्यकर्ताओं से अशिष्ट भाषा में बात करता हो, उसको झेलना हमारी लाचारी बन गयी है.
27 वर्षों से शासन कर रहा ये परिवार कैंट विधानसभा में अपनी एक भी उपलब्धि बता सकता है क्या?
क्या सचमुच इस परिवार को झेलना भाजपा के मतदाताओं एवं कार्यकर्ताओं की बेबसी है?"
पोस्टर का अंत 'भारत माता की जय' के साथ किया गया. बीजेपी उम्मीदवार सौरभ श्रीवास्तव से इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने इसे विरोधियों की हरकत बताया.
पोस्टर को सौरभ श्रीवास्तव भले ही विरोधियों की हरकत कह कर पीछा छुड़ाने की कोशिश करें, लेकिन बनारस एयरपोर्ट पर जिन्होंने केशव मौर्या और ओम माथुर की घेरेबंदी की वे भला कौन थे? क्या सौरभ श्रीवास्तव और दूसरे बीजेपी नेता उन्हें भी बाहरी बता कर बच सकते हैं?
बनारस में बवाल
मौर्या और माथुर काशी प्रांत से जुड़े 14 जिलों के पदाधिकारियों की मीटिंग में हिस्सा लेने बनारस पहुंचे थे. काशी प्रांत कार्यालय में तो कार्यकर्तांओं ने दोनों को घुसने से रोक दिया. नारेबाजी और धक्का मुक्की के बीच जैसे तैसे कुछ नेताओं ने मौर्य और माथुर को दफ्तर में दाखिल कराया.
टिकट बंटवारे को लेकर श्यामदेव रॉय चौधरी 'दादा' के समर्थकों ने भी प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय कार्यालय पर प्रदर्शन किया. बनारस की शहर दक्षिणी सीट से सात बार विधायक रह चुके चौधरी का टिकट काट कर बीजेपी ने इस बार नीलकंठ तिवारी को उम्मीदवार बनाया है.
चौधरी जमीन से जुड़े नेता रहे हैं और लोगों की समस्याओं को लेकर शुरू से उन्हें संघर्ष करते देखा गया है. खुद चौधरी को भी बीजेपी आलाकमान के फैसले से आश्चर्य हुआ है और उन्होंने चुनाव प्रचार से दूर रहने का फैसला किया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में चौधरी कहते हैं, "कोई ये कैसे अपेक्षा कर सकता है कि मैं उस प्रत्याशी के लिए घर घर जाकर वोट मांगू जिसे मुझे जलील करते हुए बगैर किसी वजह के टिकट दे दिया गया."
विरोध प्रदर्शन का ये सिलसिला चंदौली, हमीरपुर, सुल्तानपुर और बस्ती से लेकर लखनऊ तक देखने को मिला है. कहीं पुतले फूंके गये तो कहीं बुद्धि-शुद्धि के लिए हनुमान चालीसा का पाठ तो कहीं कार्यकर्ता मुंडन करा रहे हैं.
टिकट बंटवारे को लेकर बीजेपी में विरोध का स्वर धीमा पड़ता नहीं दिख रहा - और कार्यकर्ताओं की नाराजगी पूरे सूबे में देखने को मिल रही है. इस कड़ी में योगी आदित्यनाथ के समर्थकों का नाम भी जुड़ चुका है.
और ये प्रेशर पॉलिटिक्स
योगी गोरखपुर से बीजेपी सांसद हैं तो उनका अपना भी एक संगठन है - हिंदू युवा वाहिनी, जिस्की स्थापना उन्होंने 2002 में की थी. इसका पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में बीजेपी के समानंतर कार्यक्रम चलते हैं और कई बार ये बीजेपी को शिवसेना की तरह चुनौती देता लगता है.
हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं का आरोप है कि योग को बीजेपी में तवज्जो नहीं मिल रहा. उनकी नाराजगी इस कदर आगे बढ़ चुकी है कि वो छह विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवार घोषित कर चुके हैं - और बाकी कई जगह से ऐसा करने की घोषणा कर चुके हैं.
बीबीसी से बातचीत में हिंदू युवा वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील सिंह कहते हैं, “हम और उम्मीदवारों की लिस्ट भी जारी करेंगे. वाहिनी के कार्यकर्ता नाराज हैं क्योंकि बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ जी का अपमान किया है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग आदित्यनाथ जी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में देखना चाहते हैं, लेकिन बीजेपी ने ऐसा नहीं किया. पार्टी ने उन्हें इलेक्शन मैनेजमेंट कमेटी में भी शामिल नहीं किया.”
ये तो साफ है कि संगठन अपने बूते शायद ही कोई सीट जीत पाये, लेकिन एक सच ये भी है कि जहां कहीं भी विरोध में उतरा बीजेपी का खेल तो बिगड़ ही सकता है. योगी सीधे तौर पर संगठन की बात तो नहीं कर रहे, लेकिन माना जा रहा है कि ये सब उनकी दबाव की राजनीति का हिस्सा है. सुनील सिंह आगे कहते हैं, "योगी आदित्यनाथ की वजह से बीजेपी को पूर्वांचल में इतनी सीटें मिलीं, लेकिन न तो उन्हें मंत्रिमंडल में जगह मिली और न ही मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया. परिवर्तन यात्रा में भी उनको महत्व नहीं दिया गया."
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