योगी आदित्यनाथ बीजेपी की तरफ से उत्तर प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री होंगे. उनकी मदद करने के लिए पार्टी ने उन्हें दो उप-मुख्यमंत्री भी दिए हैं. उत्तर प्रदेश की सत्ता के इन तीन शीर्ष नेताओं की जातियां देखें तो हमें पता लगता है कि बीजेपी ने कैसे इनको चुनकर जातिगत समीकरणों को साधा है.
गोरखपुर से लोकसभा सांसद योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री होंगे. वो क्षत्रिय हैं. एक उप-मुख्यमंत्री केशव मौर्या, जो पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष भी हैं, ओबीसी हैं जबकि दूसरे उप-मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, जो लखनऊ के महापौर हैं, ब्राह्मण हैं.
सवर्ण बीजेपी के परंपरागत वोटर माने जाते हैं. बीजेपी ने इस बार के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में यादवों के आलावा और दूसरे ओबीसी जातियों पर और जाटवों के आलावा और दूसरी पिछड़ी जातियों पर अपना ध्यान केंद्रित किया था. सवर्ण और ओबीसी उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या के लगभग 65 फ़ीसदी हैं और ये जातीय समीकरण साधना पार्टी के लिए महत्वपूर्ण था. पिछड़ों को, जो राज्य की कुल जनसँख्या के 20% हैं, को भी राज्य के नव-निर्वाचित मंत्रिमंडल में उचित प्रतिनिधित्व मिलने के आसार है क्योंकि बीजेपी मायावती का दलितों का रहनुमा होने का दावा गलत साबित करना चाहती है.
और योगी आदित्यनाथ को चुनकर, जोकि एक फायरब्रांड हिंदुत्व लीडर माने जाते हैं, बीजेपी ने ये सन्देश भी दिया है कि हिंदुत्व और विकास को अलग-अलग नहीं देखा जाना चाहिए और बीजेपी इसी रास्ते पर आगे बढ़ती रहेगी. बीजेपी पर ध्रुवीकरण के आरोप लगते रहे हैं, 2014 के लोक सभा चुनावों में मुज़फ्फरनगर दंगों को भुनाने का, और 2017 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में कब्रिस्तान-श्मशान का मुद्दा उठाने का. लेकिन बीजेपी हमेशा से विकास की राजनीति करने का दावा करती रही है. राजनीति इसी का नाम है और पक्ष और विपक्ष के तर्क...
योगी आदित्यनाथ बीजेपी की तरफ से उत्तर प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री होंगे. उनकी मदद करने के लिए पार्टी ने उन्हें दो उप-मुख्यमंत्री भी दिए हैं. उत्तर प्रदेश की सत्ता के इन तीन शीर्ष नेताओं की जातियां देखें तो हमें पता लगता है कि बीजेपी ने कैसे इनको चुनकर जातिगत समीकरणों को साधा है.
गोरखपुर से लोकसभा सांसद योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री होंगे. वो क्षत्रिय हैं. एक उप-मुख्यमंत्री केशव मौर्या, जो पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष भी हैं, ओबीसी हैं जबकि दूसरे उप-मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, जो लखनऊ के महापौर हैं, ब्राह्मण हैं.
सवर्ण बीजेपी के परंपरागत वोटर माने जाते हैं. बीजेपी ने इस बार के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में यादवों के आलावा और दूसरे ओबीसी जातियों पर और जाटवों के आलावा और दूसरी पिछड़ी जातियों पर अपना ध्यान केंद्रित किया था. सवर्ण और ओबीसी उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या के लगभग 65 फ़ीसदी हैं और ये जातीय समीकरण साधना पार्टी के लिए महत्वपूर्ण था. पिछड़ों को, जो राज्य की कुल जनसँख्या के 20% हैं, को भी राज्य के नव-निर्वाचित मंत्रिमंडल में उचित प्रतिनिधित्व मिलने के आसार है क्योंकि बीजेपी मायावती का दलितों का रहनुमा होने का दावा गलत साबित करना चाहती है.
और योगी आदित्यनाथ को चुनकर, जोकि एक फायरब्रांड हिंदुत्व लीडर माने जाते हैं, बीजेपी ने ये सन्देश भी दिया है कि हिंदुत्व और विकास को अलग-अलग नहीं देखा जाना चाहिए और बीजेपी इसी रास्ते पर आगे बढ़ती रहेगी. बीजेपी पर ध्रुवीकरण के आरोप लगते रहे हैं, 2014 के लोक सभा चुनावों में मुज़फ्फरनगर दंगों को भुनाने का, और 2017 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में कब्रिस्तान-श्मशान का मुद्दा उठाने का. लेकिन बीजेपी हमेशा से विकास की राजनीति करने का दावा करती रही है. राजनीति इसी का नाम है और पक्ष और विपक्ष के तर्क चलते ही रहते हैं.
पर बीजेपी की ये रणनीति विपक्षियों के लिए खतरे की घंटे साबित होगी अगर पार्टी जातीय समीकरण, हिंदुत्व और विकास का एक ऐसा मध्य मार्ग खोज पाती है जो समाज के हर तबके को स्वीकार्य होगा क्योंकि जैसे राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता है, वैसे ही आम जान-मानस की धारणा में भी कुछ भी स्थाई नहीं होता. बीजेपी को उत्तर प्रदेश में जैसा प्रचंड बहुमत मिला है, उत्तर प्रदेश विधान सभा की 403 में 325 सीटों पर जीत से, उससे ये साफ हो जाता है कि जनता पार्टी के जातीय समीकरण, हिंदुत्व और विकास के फॉर्मुले पर विश्वास करने को तैयार है. अब आगे का रास्ता कैसा होगा ये इसपर निर्भर करता है कि योगी आदित्यनाथ बीजेपी के इस फॉर्मुले पर कितना खरा उतरते हैं और 2019 तक उत्तर प्रदेश की जनता का कितना विश्वास जीत पाते हैं.
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