बीजेपी अब एमसीडी की सिर्फ 266 सीटों पर ही चुनाव लड़ पाएगी - क्योंकि उसके छह उम्मीदवारों के नामांकन रद्द हो गये हैं. दिलचस्प बात ये है कि सिर्फ छह घंटे के भीतर ये सारे नामांकन रद्द हो गये. जिन सीटों के नामांकन रद्द हुए हैं वे हैं - बापरोला, त्रिलोकपुरी, अबुल फजल एंक्लेव, विनोद नगर, किशनगंज और लाडोसराय.
चुनाव होने से पहले ही बीजेपी के ये छह सीटें गंवा देने के पीछे साजिश का शक जताया जा रहा है.
5 घंटे - और 6 नामांकन रद्द
एमसीडी चुनाव को लेकर बीजेपी इतनी गंभीर है कि अमित शाह खुद सारी गतिविधियों की मॉनिटरिंग कर रहे हैं. यूपी चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही वो इस पर पूरा वक्त दे रहे हैं.
उम्मीदवारों के नामांकन में कोई कमी रह न जाये इसके लिए बीजेपी ने विशेषज्ञों की भारी भरकम टीम तैनात कर रखी है जिसमें 80 वकील और 24 चार्टर्ड एकाउंटेंट भी शामिल हैं.
बताते हैं कि 3 अप्रैल को अमित शाह ने 10:30 बजे सुबह उम्मीदवारों के नाम पर अंतिम मुहर लगा दी थी लेकिन उम्मीदवारों तक उसके पहुंचते पहुंचते शाम के 3:30 बज गये. फिर वक्त इतना कम बचा था कि नामांकन पत्र भरने की औपचारिकताएं पूरी नहीं हो पाईं और नतीजा ये हुआ कि नॉमिनेशन रद्द हो गया.
शक है कि इन्हीं पांच घंटों में इस लिस्ट में हेर फेर की गयी. माना जा रहा है कि लिस्ट की घोषणा में जानबूझ कर देर की गयी और इसीलिए इसमें साजिश का भी शक जताया जा रहा है.
बड़ा सवाल ये है कि आखिर अमित शाह की फाइनल हुई सूची में किसने हेरफेर की?
कौन कर सकता है साजिश
बीजेपी नेतृत्व ने दिल्ली बीजेपी से इस मामले में पूरी रिपोर्ट मांगी है - और सख्त कार्रवाई के संकेत भी मिल रहे हैं. वैसे भी जिम्मेदारी तो दिल्ली बीजेपी...
बीजेपी अब एमसीडी की सिर्फ 266 सीटों पर ही चुनाव लड़ पाएगी - क्योंकि उसके छह उम्मीदवारों के नामांकन रद्द हो गये हैं. दिलचस्प बात ये है कि सिर्फ छह घंटे के भीतर ये सारे नामांकन रद्द हो गये. जिन सीटों के नामांकन रद्द हुए हैं वे हैं - बापरोला, त्रिलोकपुरी, अबुल फजल एंक्लेव, विनोद नगर, किशनगंज और लाडोसराय.
चुनाव होने से पहले ही बीजेपी के ये छह सीटें गंवा देने के पीछे साजिश का शक जताया जा रहा है.
5 घंटे - और 6 नामांकन रद्द
एमसीडी चुनाव को लेकर बीजेपी इतनी गंभीर है कि अमित शाह खुद सारी गतिविधियों की मॉनिटरिंग कर रहे हैं. यूपी चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही वो इस पर पूरा वक्त दे रहे हैं.
उम्मीदवारों के नामांकन में कोई कमी रह न जाये इसके लिए बीजेपी ने विशेषज्ञों की भारी भरकम टीम तैनात कर रखी है जिसमें 80 वकील और 24 चार्टर्ड एकाउंटेंट भी शामिल हैं.
बताते हैं कि 3 अप्रैल को अमित शाह ने 10:30 बजे सुबह उम्मीदवारों के नाम पर अंतिम मुहर लगा दी थी लेकिन उम्मीदवारों तक उसके पहुंचते पहुंचते शाम के 3:30 बज गये. फिर वक्त इतना कम बचा था कि नामांकन पत्र भरने की औपचारिकताएं पूरी नहीं हो पाईं और नतीजा ये हुआ कि नॉमिनेशन रद्द हो गया.
शक है कि इन्हीं पांच घंटों में इस लिस्ट में हेर फेर की गयी. माना जा रहा है कि लिस्ट की घोषणा में जानबूझ कर देर की गयी और इसीलिए इसमें साजिश का भी शक जताया जा रहा है.
बड़ा सवाल ये है कि आखिर अमित शाह की फाइनल हुई सूची में किसने हेरफेर की?
कौन कर सकता है साजिश
बीजेपी नेतृत्व ने दिल्ली बीजेपी से इस मामले में पूरी रिपोर्ट मांगी है - और सख्त कार्रवाई के संकेत भी मिल रहे हैं. वैसे भी जिम्मेदारी तो दिल्ली बीजेपी प्रमुख की ही बनती है. बीजेपी सांसद मनोज तिवारी इस वक्त दिल्ली यूनिट के अध्यक्ष हैं.
साजिश की बात और है लेकिन लिस्ट आखिरी वक्त में ही क्यों रिलीज करनी पड़ी. वैसे भी चुनाव की पूरी प्रक्रिया होती है. चुनाव लड़ने की तारीखें कोई आनन फानन में तो मिलती नहीं.
यूपी चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन जरूर उम्दा रहा लेकिन सूबे की कई सीटों पर उम्मीदवारों को नामांकन के आखिरी दिन या एक दिन पहले मालूम हुआ कि उसे ही चुनाव लड़ना है. मऊ की सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कटप्पा चर्चित जरूर रहे लेकिन उस सीट पर भी बीजेपी उम्मीदवार नामांकन नहीं दाखिल कर पाया. लखनऊ में डेरा डाले उस उम्मीदवार को अथॉरिटी लेटर ऐसे वक्त मिला कि नामांकन के लिए अधिकारी के दफ्तर पहुंचने से पहले ही वक्त खत्म हो चुका था. फिर उस सीट बीजेपी की सहयोगी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का उम्मीदवार बीएसपी कैंडिडेट मुख्तार अंसारी के खिलाफ मैदान में खड़ा हुआ.
अब दिल्ली में उम्मीदवारों की लिस्ट में हुई गड़बड़ी के पीछे बीजेपी के ही किसी नेता का हाथ होने की संभावना जतायी जा रही है. निश्चित तौर पर बीजेपी के लिए ये बहुत ही गंभीर बात है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के लिए पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी को जिम्मेदार माना गया था. गुटबाजी के साथ साथ कार्यकर्ताओं की नाराजगी तब और भी बढ़ गयी जब बीजेपी ने किरण बेदी को ऊपर से लाकर सीएम कैंडिडेट घोषित कर दिया. नतीजा तो बीजेपी शायद ही कभी भूल पाये. दिल्ली विधान सभा चुनाव हुए दो साल से ज्यादा हो चले हैं लेकिन लगता नहीं कि बीजेपी की हालत में कोई तब्दीली आई है.
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