दलित वोट बैंक पर सबसे ज्यादा हक बीएसपी नेता मायावती जताती रही हैं. यूपी में 22 फीसदी दलित वोटर हैं, लेकिन जब इसके फुल प्रूफ होने में शक हुआ तो मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग जैसे प्रयोग किए. वैसे इस बार वो दलित मुस्लिम गठजोड़ बनाने की कोशिश कर रही हैं.
बिहार में फेल होने के बावजूद बीजेपी अपने दलित एजेंडे पर लगातार आगे बढ़ रही है. अगुवाई खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं तो पीछे से आरएसएस भी मजबूती से सपोर्ट कर रहा है.
क्या बीजेपी सीधे सीधे मायावती के सपोर्ट बेस में उन्हीं की चाल से सेंध लगाने की तैयारी कर रही है?
अपनी अपनी सोशल इंजीनियरिंग
1990 के बाद से यूपी में दलितों पर सबसे ज्यादा बीएसपी का ही प्रभाव रहा है. बीजेपी भी वही फॉर्मूला अपनाती प्रतीत हो रही है जिसे मायावती कामयाबी का नुस्खा साबित कर चुकी हैं.
बीएसपी नेता ने दलितों के साथ सवर्णों खास तौर पर ब्राह्मणों को जोड़ा था. ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी मानी जाती रही बीजेपी करीब साल भर से दलितों को जोड़ने में जुटी है.
बीजेपी मान कर चल रही है कि सवर्ण वोट बैंक तो उसका है ही, दलितों का साथ मिल जाए तो बात बन जाए. आरएसएस भी दलितों को खुश रखने की भरपूर कोशिश कर रहा है. कभी आरक्षण की समीक्षा की बात करने वाले मोहन भागवत भी अब इसे तब तक बरकरार रखने की बात कर रहे हैं जब तक समता मूलक समाज की स्थापना नहीं हो जाती.
दलितों का सपोर्ट हासिल करने के लिए बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को सियासी टूल के तौर पर पहले भी इस्तेमाल किया जाता रहा है, पिछले साल इसमें तेजी आ गई है.
किसके हैं अंबेडकर
अंबेडकर की विरासत पर दावेदारी की होड़ पर गौर करें तो रेस में आगे बीजेपी और कांग्रेस दिखेंगे. बीएसपी की गतिविधियां बयानों तक ही सीमित नजर आती है.
22 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी लखनऊ में बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में शामिल हो रहे हैं. इस यूनिवर्सिटी से 40 फीसदी से ज्यादा दलित...
दलित वोट बैंक पर सबसे ज्यादा हक बीएसपी नेता मायावती जताती रही हैं. यूपी में 22 फीसदी दलित वोटर हैं, लेकिन जब इसके फुल प्रूफ होने में शक हुआ तो मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग जैसे प्रयोग किए. वैसे इस बार वो दलित मुस्लिम गठजोड़ बनाने की कोशिश कर रही हैं.
बिहार में फेल होने के बावजूद बीजेपी अपने दलित एजेंडे पर लगातार आगे बढ़ रही है. अगुवाई खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं तो पीछे से आरएसएस भी मजबूती से सपोर्ट कर रहा है.
क्या बीजेपी सीधे सीधे मायावती के सपोर्ट बेस में उन्हीं की चाल से सेंध लगाने की तैयारी कर रही है?
अपनी अपनी सोशल इंजीनियरिंग
1990 के बाद से यूपी में दलितों पर सबसे ज्यादा बीएसपी का ही प्रभाव रहा है. बीजेपी भी वही फॉर्मूला अपनाती प्रतीत हो रही है जिसे मायावती कामयाबी का नुस्खा साबित कर चुकी हैं.
बीएसपी नेता ने दलितों के साथ सवर्णों खास तौर पर ब्राह्मणों को जोड़ा था. ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी मानी जाती रही बीजेपी करीब साल भर से दलितों को जोड़ने में जुटी है.
बीजेपी मान कर चल रही है कि सवर्ण वोट बैंक तो उसका है ही, दलितों का साथ मिल जाए तो बात बन जाए. आरएसएस भी दलितों को खुश रखने की भरपूर कोशिश कर रहा है. कभी आरक्षण की समीक्षा की बात करने वाले मोहन भागवत भी अब इसे तब तक बरकरार रखने की बात कर रहे हैं जब तक समता मूलक समाज की स्थापना नहीं हो जाती.
दलितों का सपोर्ट हासिल करने के लिए बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को सियासी टूल के तौर पर पहले भी इस्तेमाल किया जाता रहा है, पिछले साल इसमें तेजी आ गई है.
किसके हैं अंबेडकर
अंबेडकर की विरासत पर दावेदारी की होड़ पर गौर करें तो रेस में आगे बीजेपी और कांग्रेस दिखेंगे. बीएसपी की गतिविधियां बयानों तक ही सीमित नजर आती है.
22 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी लखनऊ में बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में शामिल हो रहे हैं. इस यूनिवर्सिटी से 40 फीसदी से ज्यादा दलित और पिछड़े जुड़े हुए हैं.
असली वारिस कौन? |
अंबेडकर से जुड़े बीजेपी के किसी भी कार्यक्रम को बीएसपी नेता नौटंकी बता रहे हैं. कभी राहुल गांधी के दलितों के घर जाने पर मायावती ने भी ऐसी ही टिप्पणी की थी. तब मायावती ने कहा था कि कांग्रेस के राजकुमार दलितों के घर पर रुकने के बाद दिल्ली में जाकर विशेष साबुन से नहाते हैं.
दलितों का असली हमदर्द कौन? |
बीएसपी नेता स्वामी प्रसाद मौर्या का कहना है कि दलितों के लिए घड़ियाली आंसू बहाने के बजाए प्रधानमंत्री प्रमोशन में आरक्षण वाले बिल को अगर लोकसभा से पास कराएं तो पता चले कि वाकई वो दलितों के हितैषी हैं.
लेकिन मोदी सरकार बीएसपी के ऐसे आरोपों से बेपरवाह लगातार अपने एजेंडे पर काम कर रही है. इस प्रोजेक्ट के तहत केंद्रीय मंत्रियों राजनाथ सिंह और थावर चंद गहलोत सहित 20 विभागों को विशेष रूप से काम करने की खबर है. इसके नतीजे 14 अप्रैल को अंबेडकर की 125वीं जयंती से पहले ही दिखने लगेंगे, ऐसी अपेक्षा जताई जा रही है.
इस मौके पर अनुसूचित जाति और जनजाति के अफसरों को सरकारी बैंकों के चेयरपर्सन और मैनेजिंग डायरेक्टर बनाए जाने की घोषणा की जाएगी. औद्योगीकरण पर अंबेडकर के विचारों पर चर्चा के लिए उद्यमियों का एक नेशनल कॉफ्रेंस आयोजित किया जाएगा. डिजिटल म्युजियम बनाये जाने के साथ ही अंबेडकर के नाम पर एक ऐप भी लांच किये जाने की चर्चा है. सिक्के और स्टांप पहले ही जारी किये जा चुके हैं.
केरल और कर्नाटक में दलित समुदायों के कार्यक्रमों में शिरकत कर चुके प्रधानमंत्री मोदी बीजेपी से उन्हें जोड़ने खातिर खुद मोर्चा संभाले हुए हैं. इसीलिए इन दिनों आरक्षण से लेकर दलित उद्यमियों को प्रमोट करने की कवायद चल रही है.
ये डिक्की-फिक्की क्या है?
हाल ही में दलित उद्यमियों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने बड़ा भरोसा दिलाया. इस सम्मेलन में करीब एक हजार दलित उद्यमी शामिल हुए. इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा कि 10 लाख रुपये तक का लोन देने वाली प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के जरिये वो दलित उद्यमियों की तादाद दोगुना करना चाहते हैं.
ये सम्मेलन दलित इंडस्ट्रियल चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ए इंडस्ट्री के बैनर तले आयोजित हुआ था, जिसे संक्षेप में डिक्की कहा जा रहा है. डिक्की को फिक्की के पैरलल स्थापित करने की कोशिश चल रही है. फिक्की यानी फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री तो कारोबारियों का बड़ा प्लेटफॉर्म है ही. इसी के मंच से एक बार कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी सक्रियता बढ़ाने के संकेत भी दिए थे. डिक्की के सदस्यों की तादाद अब तक चार हजार पहुंच चुकी है.
यूपी के राज्यपाल राम नाईक ने अंबेडकर महासभा के एक कार्यक्रम में कहा था कि अगर प्रधानमंत्री को भी वहां बुलाया जाए तो अच्छा होता. अब प्रधानमंत्री 22 जनवरी को अंबेडकर महासभा के कार्यक्रम में भी शामिल हो रहे हैं. संस्था के अध्यक्ष लालजी प्रसाद निर्मल इस बात से बेहद खुश हैं कि पहली बार कोई प्रधानमंत्री आंबेडकर महासभा के कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंच रहा है. इसमें राम नाईक की ही बड़ी भूमिका मानी जा रही है.
जाहिर है मायावती की इन सारे कार्यक्रमों पर नजर जरूर होगी. कांग्रेस भी अंबेडकर की 125वीं जयंती वर्ष मना रही है, लेकिन फिक्की की तरह राहुल गांधी की डिक्की में दिलचस्पी अभी देखने को नहीं मिली है. प्रधानमंत्री मोदी को इसकी अहमियत समझ में आ गई है - और इसीलिए वो इतने तत्पर हैं.
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