उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अंदर मचे घमासान ने अगर किसी को इस वक़्त सबसे ज़्यादा परेशान किया है तो वो है बीजेपी. पार्टी जो एक दशक बाद राज्य में मज़बूत दावेदार के तौर पर चुनाव लड़ रही है अब इस मुश्किल में है कि मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के बीच की दरार से उपजने वाले वोटों के ध्रुवीकरण को वो कैसे रोके. और इन्हीं मुश्किलों ने पिछले चार दिन में पार्टी की चुनावी रणनीति को पलट कर रख दिया है.
बीजेपी का फायदा इसी में हैं कि दोनों 'दुश्मन' बराबरी पर रहें. |
दिलचस्प ये है कि बीजेपी के दिग्गज इन दिनों इस माथपच्ची में जुटे हैं कि कैसे समाजवादी पार्टी के गिरते ग्राफ को रोका जाए. और इसके लिए कई अहम मुद्दों पर काम किया जा रहा है. पार्टी सूत्रों की मानें तो रणनीति इस बात पर ज्यादा है कि अल्पसंख्यक मतों का ध्रुवीकरण एक पक्ष में न हो पाए. पार्टी का मानना है कि सपा के टूटने या मुलायम के कमजोर होने का लाभ बसपा को मिल सकता है, क्योंकि तब बेहतर विकल्प के तौर पर अल्पसंख्यक मतों का ध्रुवीकरण बसपा की तरफ संभव है.
वोटों का ध्रुवीकरण कैसे रोका जाए
बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय का ये ट्वीट -
सिर्फ एक जुमला नहीं है बल्कि बीजेपी की बदली हुई चुनावी रणनीति की तरफ इशारा करता है जिसमें मुलायम सिंह को मुसलमानों के साथ जोड़ते हुए ये बताने की कोशिश होगी कि मुस्लिमों के करीब अगर कोई है तो वो है समाजवादी पार्टी. पार्टी चाहती है कि किसी तरह मुस्लिम वोटों के छिटकने का फायदा बसपा को ना मिले और...
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अंदर मचे घमासान ने अगर किसी को इस वक़्त सबसे ज़्यादा परेशान किया है तो वो है बीजेपी. पार्टी जो एक दशक बाद राज्य में मज़बूत दावेदार के तौर पर चुनाव लड़ रही है अब इस मुश्किल में है कि मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के बीच की दरार से उपजने वाले वोटों के ध्रुवीकरण को वो कैसे रोके. और इन्हीं मुश्किलों ने पिछले चार दिन में पार्टी की चुनावी रणनीति को पलट कर रख दिया है.
बीजेपी का फायदा इसी में हैं कि दोनों 'दुश्मन' बराबरी पर रहें. |
दिलचस्प ये है कि बीजेपी के दिग्गज इन दिनों इस माथपच्ची में जुटे हैं कि कैसे समाजवादी पार्टी के गिरते ग्राफ को रोका जाए. और इसके लिए कई अहम मुद्दों पर काम किया जा रहा है. पार्टी सूत्रों की मानें तो रणनीति इस बात पर ज्यादा है कि अल्पसंख्यक मतों का ध्रुवीकरण एक पक्ष में न हो पाए. पार्टी का मानना है कि सपा के टूटने या मुलायम के कमजोर होने का लाभ बसपा को मिल सकता है, क्योंकि तब बेहतर विकल्प के तौर पर अल्पसंख्यक मतों का ध्रुवीकरण बसपा की तरफ संभव है.
वोटों का ध्रुवीकरण कैसे रोका जाए
बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय का ये ट्वीट -
सिर्फ एक जुमला नहीं है बल्कि बीजेपी की बदली हुई चुनावी रणनीति की तरफ इशारा करता है जिसमें मुलायम सिंह को मुसलमानों के साथ जोड़ते हुए ये बताने की कोशिश होगी कि मुस्लिमों के करीब अगर कोई है तो वो है समाजवादी पार्टी. पार्टी चाहती है कि किसी तरह मुस्लिम वोटों के छिटकने का फायदा बसपा को ना मिले और इसके लिए आने वाले दिनों में बीजेपी का ये जुमला और ज़्यादा सुनाई देगा.
नज़र एम-वाई फैक्टर को तोड़ने पर सपा के झगड़े ने बीजेपी के टिकट बंटवारे के प्लान को पलट कर रख दिया है. पार्टी इस बार दो दर्जन से ज़्यादा यादव उम्मीदवार मैदान में उतार सकती है. इतना ही नहीं मुलायम के वोटर समझे जाने वाले यादव वोटबैंक में सेंध लगाने के लिए उन इलाकों में यादव उम्मीदवार उतारने की योजना है जहाँ मुस्लिम यादव वोटर हैं. प्रधानमंत्री का उत्तर प्रदेश से होना ओबीसी कार्ड को मज़बूत करेगा
ये स्थिति अर्से बाद आई है जब ना सिर्फ बीजेपी के इतने ज़्यादा सांसद उत्तर प्रदेश से हैं बल्कि खुद प्रधानमंत्री भी राज्य से चुनाव जीते हैं. मोदी के नाम पर पार्टी की योजना ओबीसी को लुभाने की भी है. हर रैली और प्रचार के दौरान पार्टी का ज़ोर ये बताने पर् होगा की इस वर्ग के इतने मंत्री कैबिनेट में होना ये संकेत है कि पार्टी सिर्फ ब्राह्मणों के लिए नहीं, बल्कि ओबीसी के लिये कितना सोचती है.
अब निशाने पर बसपा का भ्रष्टाचार भी होगा
प्रचार के दौरान हर बार बीजेपी लगातार दोहराती रही कि उसका मुकाबला सीधे सीधे सपा से है और बसपा नंबर दो पर है लेकिन आज पार्टी का हर नेता इस सवाल पर् सोचने को मजबूर हो जाता है कि निशाना किसपर साधे. पार्टी ने रणनीति बदली है और अब सपा के दंगल के ऊपर बसपा का भ्रष्टाचार हावी है जो आने वाले दिनों में प्रचार का बड़ा हिस्सा है.
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