वेबसाइट www.bosefiles.info ने दस्तावेजों के आधार पर बताया था कि नेताजी 18 अगस्त, 1945 के प्लेन क्रैश से पहले कहां थे. उन्होंने रात कहां गुजारी और कहां जाने की तैयारी कर रहे थे. शनिवार को इस वेबसाइट ने उस सबसे रहस्यमयी दिन के बारे में तथ्य पेश किए हैं. ये तथ्य उन दस्तावेजों पर आधारित हैं, जो नेताजी के पोते और ब्रिटेन में एक स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर काम कर रहे आशिष रे ने जारी किए हैं.
विमान दुर्घटना वाले दिन पूरा विवरण-
18 अगस्त 1945 की उस सुबह, एक जापानी एयर फोर्स बमवर्षक विमान ने वियतनाम के टोरेन से उड़ान भरी. इसमें सुभाष चंद्र बोस सहित 12 या 13 यात्री और क्रू-मेंबर सवार थे. साथ ही जापानी आर्मी के लेफ्टिनेंट जनरल सुनाम्शा शिदेई भी उसमें थे. इस उड़ान को ताइवान के हितो से होते हुए ताइपे, डेरेन और फिर टोक्यो जाना था.
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भारत सरकार द्वारा 1956 में गठित तीन सदस्यीय नेताजी जांच समिति को बताया गया कि मौसम ठीक था और एयरक्राफ्ट का इंजन भी सही तरीके से काम कर रहा था. इसलिए पायलट ने हितो के ऊपर से होते हुए सीधे ताइपे जाने का फैसला किया. कोशिश यह थी वहां दोपहर से पहले-पहले पहुंचा जा सके.
जापानी एयर स्टाफ ऑफिसर मेजर टारो कोनो जो विमान में सवार यात्रियों में से एक थे, जांच समिति के सामने आए और बताया, 'मुझे ऐसा लगा कि प्लेन के बाईं ओर का इंजन ठीक से काम नहीं कर रहा है. इसलिए मैं प्लेन के भीतर गया और इंजन की जांच के बाद पता चला कि वह ठीक काम कर रहा था.' उन्होंने बताया कि एक इंजीनियर ने भी उनके साथ इंजन की जांच की और सहमति जताई कि विमान उड़ान भर सकता है.
हालांकि...
वेबसाइट www.bosefiles.info ने दस्तावेजों के आधार पर बताया था कि नेताजी 18 अगस्त, 1945 के प्लेन क्रैश से पहले कहां थे. उन्होंने रात कहां गुजारी और कहां जाने की तैयारी कर रहे थे. शनिवार को इस वेबसाइट ने उस सबसे रहस्यमयी दिन के बारे में तथ्य पेश किए हैं. ये तथ्य उन दस्तावेजों पर आधारित हैं, जो नेताजी के पोते और ब्रिटेन में एक स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर काम कर रहे आशिष रे ने जारी किए हैं.
विमान दुर्घटना वाले दिन पूरा विवरण-
18 अगस्त 1945 की उस सुबह, एक जापानी एयर फोर्स बमवर्षक विमान ने वियतनाम के टोरेन से उड़ान भरी. इसमें सुभाष चंद्र बोस सहित 12 या 13 यात्री और क्रू-मेंबर सवार थे. साथ ही जापानी आर्मी के लेफ्टिनेंट जनरल सुनाम्शा शिदेई भी उसमें थे. इस उड़ान को ताइवान के हितो से होते हुए ताइपे, डेरेन और फिर टोक्यो जाना था.
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भारत सरकार द्वारा 1956 में गठित तीन सदस्यीय नेताजी जांच समिति को बताया गया कि मौसम ठीक था और एयरक्राफ्ट का इंजन भी सही तरीके से काम कर रहा था. इसलिए पायलट ने हितो के ऊपर से होते हुए सीधे ताइपे जाने का फैसला किया. कोशिश यह थी वहां दोपहर से पहले-पहले पहुंचा जा सके.
जापानी एयर स्टाफ ऑफिसर मेजर टारो कोनो जो विमान में सवार यात्रियों में से एक थे, जांच समिति के सामने आए और बताया, 'मुझे ऐसा लगा कि प्लेन के बाईं ओर का इंजन ठीक से काम नहीं कर रहा है. इसलिए मैं प्लेन के भीतर गया और इंजन की जांच के बाद पता चला कि वह ठीक काम कर रहा था.' उन्होंने बताया कि एक इंजीनियर ने भी उनके साथ इंजन की जांच की और सहमति जताई कि विमान उड़ान भर सकता है.
हालांकि उस एयरपोर्ट पर तब ग्राउंड इंजीनियर के रूप में मौजूद कैप्टन नाकामुरा एलियास यामामोटो ने इससे सहमत नहीं थे. उनका मानना था कि इंजन का बायां हिस्सा ठीक से काम नहीं कर रहा है. मेजर टारो कोनो के अनुसार पायलट ने तब बताया था इंजन नया है. टारो कोनो ने बताया, 'इंजन की स्पीड धीमी करने के बाद, पायलट ने करीब पांच मिनट तक उस पर काम किया. इंजन की जांच दो बार मेजर ताकिजावा (पायलट) द्वारा की गई. इसके बाद मैं भी संतुष्ट हो गया. मेजर ताकिजावा भी इसे लेकर सहमत दिखे कि इंजन के साथ अब कोई समस्या नहीं है.'
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हालांकि, इसके थोड़ी देर बाद उड़ान भरते ही एयरक्राफ्ट में विस्फोट हुआ. सुभाष चंद्र बोस के एडीसी कर्नल हबीब उर रहमान और एक अन्य सहयात्री के अनुसार वह विस्फोट काफी तेज था. रहमान के अनुसार यह किसी तोप के चलने जैसी आवाज थी.
कैप्टन नाकामुरा उस समय ग्राउंड पर ही मौजूद थे और उन्होंने सबकुछ देखा. उन्होंने बताया, 'उड़ान भरने के साथ ही प्लेन बाईं ओर झुका और मैंने उससे कुछ गिरते हुए देखा. बाद में मुझे पता चला कि ये प्रोपेलर है.' नाकामुरा ने यह भी बताया कि विस्फोट के समय एयरक्राफ्ट 30-40 मीटर की ऊचाई पर रहा होगा.
कैप्टन नाकामुरा के अनुसार, 'प्लेन कंक्रीट के बने रनवे से करीब 100 मीटर आगे गिरा था और गिरने के साथ ही इसके आगे के हिस्से में आग लग गई थी.'
कर्नल रहमान के अनुसार, 'नेताजी मेरी ओर मुड़े. मैंने उनसे कहा कि आगे से निकलिए..पीछे से रास्ता नहीं है. हम मुख्य दरवाजे की ओर नहीं जा सके क्योंकि वह दूसरी चीजों और सामानों से जाम हो गया था. इसलिए नेताजी आग से होते हुए बाहर निकल गए. मैं भी उन्हीं लपटों से होते हुए बाहर आया.'
रहमान ने आगे बताया, 'बाहर आते ही मैंने देखा कि वह मुझसे 10 यार्ड आगे खड़े हैं और मुझसे ठीक उलट पश्चिम की ओर देख रहे हैं. उनके कपड़ों में अभी भी आग लगी थी. मैं उनकी ओर तेजी से दौड़ा और उनके शर्ट बेल्ट को उनसे अलग करने में मुझे काफी दिक्कत हुई. उनके पैंट में आग नहीं लगी थी, इसलिए उसे उतारना बहुत जरूरी नहीं था. (कर्नल रहमान ऊनी यूनिफॉर्म में थे जबकि बोस खाकी रंग के सूती कपड़े पहने हुए थे. यह हालांकि केवल एक अनुमान है. इस आधार पर कि उनके कपड़ो में जल्दी आग लग गई थी).' कर्नल रहमान ने आगे बताया, 'मैंने उन्हें जमीन पर लिटा दिया. तभी मैंने देखा कि उनके सिर पर गहरी चोट लगी थी. संभवत: उनके सिर के बाएं ओर. उनका चेहरा झुलस गया था. बालों में भी आग लगी थी और वे भी झुलस गए थे.'
उन्होंने आगे बताया, 'नेताजी ने हिंदुस्तानी भाषा में मुझसे पूछा- आपको ज्यादा तो नहीं लगी? मैंने कहा, मुझे लगता है कि मैं जल्द ही अच्छा महसूस करने लगूंगा. अपने बारे में उन्होंने तब कहा कि उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है कि अब वे नहीं बचेंगे.'
बोस ने आगे कहा, 'जब अपने मुल्क वापस जाएं तो मुल्की भाईयों को बताना कि मैं आखिरी दम तक मुल्क की आजादी के लिए लड़ता रहा हूं. वो जंगे आजादी को जारी रखें. हिंदुस्तान जरूर आजाद होगा. उसे कोई गुलाम नहीं रख सकता.'
लेफ्टिनेंट कर्नल शिरो नोनोगाकी भी उस फ्लाइट में थे. उन्होंने बताया, 'प्लेन क्रैश के बाद जब मैंने पहली बार नेताजी को देखा तो वह प्लेन के बाएं विंग के बाएं छोर के आसपास कहीं खड़े थे. उनके कपड़ों में आग लगी थी और उनका कोई सहायक उस कोट को उनसे अलग करने की कोशिश कर रहा था.'
कर्नल शिरो ने अनुमान लगाया, 'चूकी नेताजी पेट्रोल टंकी के बहुत करीब बैठे थे इसलिए उनके शरीर पर पेट्रोल के छींटे पड़े होंगे. ऐसा लग रहा था कि उनका पूरा शरीर आग की लपटों से घिरा हुआ है.'
कर्नल रहमान, लेफ्टिनेंट कर्नल नोनोगाकी, मेजर कोनो, कैप्टन नाकामुरा और दूसरे चश्मदीदों द्वारा दी गई जानकारी में विरोधाभास था. यह सभी उस घटना के 11 साल बाद अपना अनुभव दर्ज करा रहे थे. लेकिन इतना साफ था कि प्लेन क्रैश हुआ और बोस इसमें गंभीर रूप से घायल भी हुए.
उन्हें गंभीर अवस्था में तत्काल नजदीक के नैनमोन सैनिक अस्पताल में भर्ती कराया गया. ब्रिटिश अधिकारियों ने सितंबर-1945 में एक जांच टीम बैंकॉक, साइगोन और ताइपे भेजी. इस टीम में मेसर्स फिनी और डेविस, एच के रॉय और के पी डे शामिल थे. इस टीम का काम था वह पता करे कि बोस कहां है और हो सके तो उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया जाए. वे हालांकि केवल क्रैश की कहानी के साथ ही वापस लौटे.
इसके बाद मई-1946 में मिलिट्री इंटेलिजेंस द्वारा लॉर्ड लुइस माउंटबेटेन के नेतृत्व में लेफ्टिनेंट कर्नल जे जी फिगेस को आगे की जांच सौंपी गई. माउंटबेटेन तब दक्षिण पूर्व एशिया के ब्रिटिश फोर्स के कमांडर थे. फिगेस ने तब अलग से जापानी सेना के छह अधिकारियों से पूछताछ की और क्रैश की बात की पुष्टि की. जिन छह जापानी अधिकारियों से बात हुई, उनमें दो तो उस विमान में नेताजी के साथ सवार थे.
इसके बाद अगस्त-1946 में भारत के फ्री प्रेस जर्नल अखबार के हरीन शाह ताइपे गए. इस मामले में खोजबीन की और विमान क्रैश के उसी निष्कर्ष के साथ वापस लौटे.
(वेबसाइट के अनुसार नेताजी को अस्पताल में भर्ती कराए जाने के बाद क्या हुआ, इस बारे में जानकारी 16 जनवरी को प्रकाशित की जाएगी).
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