तेजस्वी यादव ने मूंछों का हवाला दिया है. लग रहा है जैसे वास्ता दे रहे हों. तेजस्वी को मूंछों का हवाला या वास्ता नहीं अब तो ताव देना चाहिये और फौरन इस्तीफा दे मारना चाहिये. कोई बड़ा सियासी खेल हो गया तो बात और है वरना कुर्सी ही नहीं कॅरिअर पर भी बड़ा खतरा मंडरा रहा है.
मूंछों के हिसाब से देखें तो लालू प्रसाद तो तब घोटाले में फंसे जब उनकी मूंछें पकने लगी थीं. लालू की मूंछें भी धूप में नहीं बल्कि लंबे राजनीतिक संघर्ष में सफेद हुई हैं. बाद की बातें और हैं.
तेजस्वी की मूंछें तो अभी अभी आई ही हैं. क्रिकेटर के तौर पर लोगों ने महेंद्र सिंह धोनी की तरह उनके लंबे बाल तो देखे हैं, लेकिन आने के बावजूद क्लीन शेव के चलते तेजस्वी की मूंछें कम ही देखने को मिलती हैं.
लालू प्रसाद ठीक कह रहे हैं तेजस्वी किसी की कृपा से डिप्टी सीएम नहीं बने हैं. सही बात है - वो तो वारिस होने के कारण डिप्टी सीएम बने हैं. किसी को शक है क्या?
तेजस्वी चाहें तो मूंछों की दुहाई देने की बजाये विरोधियों के मुहं पर फौरन इस्तीफा दे मारें. भला दो-चार दिन की मोहलत क्या होती है? तेजस्वी के इस्तीफा देने के तमाम फायदे हैं - कुछ ऐसे फायदे भी हो सकते हैं.
1. तेजस्वी के तत्काल इस्तीफा दे देने का पहला फायदा तो यही होगा कि तमाम बेबुनियाद और निराधार आरोप लगाने वाले विरोधी नेताओं की बोलती बंद हो जाएगी और लालू भी मजबूत हो जाएंगे. फिर तो वो विरोधियों को भालू से फुंकवा कर बिहार का देश से ही भगा देंगे!
2. जो बात तेजस्वी यादव लोगों को अभी अपने बयान के जरिये समझाना चाह...
तेजस्वी यादव ने मूंछों का हवाला दिया है. लग रहा है जैसे वास्ता दे रहे हों. तेजस्वी को मूंछों का हवाला या वास्ता नहीं अब तो ताव देना चाहिये और फौरन इस्तीफा दे मारना चाहिये. कोई बड़ा सियासी खेल हो गया तो बात और है वरना कुर्सी ही नहीं कॅरिअर पर भी बड़ा खतरा मंडरा रहा है.
मूंछों के हिसाब से देखें तो लालू प्रसाद तो तब घोटाले में फंसे जब उनकी मूंछें पकने लगी थीं. लालू की मूंछें भी धूप में नहीं बल्कि लंबे राजनीतिक संघर्ष में सफेद हुई हैं. बाद की बातें और हैं.
तेजस्वी की मूंछें तो अभी अभी आई ही हैं. क्रिकेटर के तौर पर लोगों ने महेंद्र सिंह धोनी की तरह उनके लंबे बाल तो देखे हैं, लेकिन आने के बावजूद क्लीन शेव के चलते तेजस्वी की मूंछें कम ही देखने को मिलती हैं.
लालू प्रसाद ठीक कह रहे हैं तेजस्वी किसी की कृपा से डिप्टी सीएम नहीं बने हैं. सही बात है - वो तो वारिस होने के कारण डिप्टी सीएम बने हैं. किसी को शक है क्या?
तेजस्वी चाहें तो मूंछों की दुहाई देने की बजाये विरोधियों के मुहं पर फौरन इस्तीफा दे मारें. भला दो-चार दिन की मोहलत क्या होती है? तेजस्वी के इस्तीफा देने के तमाम फायदे हैं - कुछ ऐसे फायदे भी हो सकते हैं.
1. तेजस्वी के तत्काल इस्तीफा दे देने का पहला फायदा तो यही होगा कि तमाम बेबुनियाद और निराधार आरोप लगाने वाले विरोधी नेताओं की बोलती बंद हो जाएगी और लालू भी मजबूत हो जाएंगे. फिर तो वो विरोधियों को भालू से फुंकवा कर बिहार का देश से ही भगा देंगे!
2. जो बात तेजस्वी यादव लोगों को अभी अपने बयान के जरिये समझाना चाह रहे हैं, इस्तीफे का एक्शन उससे ज्यादा कारगर साबित होगा. लोगों को तेजस्वी की बात पर ज्यादा भरोसा होगा. ठीक कहते हैं तेजस्वी - बगैर मूंछों के आये कोई इतना बड़ा घोटाला कैसे कर सकता है?
3. तेजस्वी अभी कह रहे हैं कि उन्हें पिछड़े वर्ग से होने के चलते फंसाया जा रहा है. इस्तीफे के बाद लोगों की सहानुभूति बढ़ेगी और तमाम संपत्ति होने के बावजूद अगड़े भी उन्हें दिल से हमेशा के लिए पिछड़ा मान लेंगे. फिर कभी उन्हें इस पिछड़ेपन के लाइसेंस के नवीनीकरण की जरूरत नहीं पड़ेगी.
4. मूंछों की बात करने से पहले तेजस्वी बता चुके हैं कि वो तो बचपन से सीबीआई जांच ही देख रहे हैं. इस्तीफा देकर वो सीबीआई जांच को करीब से देख पाएंगे और बाद की राजनीति में ये अनुभव काम आएगा. कुछ देर के लिए एकलव्य बनकर वो अमित शाह को गुरु भी मान सकते हैं और फिर उनकी सीख से वो खुद भी उन्हें बड़े आराम से शह दे सकते हैं.
5. लालू का ये कहना कि तेजस्वी किसी की कृपा से डिप्टी सीएम नहीं बने, थोड़ा बहुत तो ये बात तेजस्वी पर भी लागू होती ही है. किसी और की कृपा से नहीं, अपने पिता की कृपा से तो बने ही हैं. इस्तीफा देने के बाद फिर से जीत कर वो कुछ बनते हैं तो किसी की मजाल नहीं होगी कि लालू की इस बात का ऑफ द रिकॉर्ड भी मजाक उड़ा पाये.
6. बगैर वक्त गंवाये इस्तीफा देकर तेजस्वी उस श्रेणी के नेताओं में शुमार हो सकते हैं जिसमें लालकृष्ण आडवाणी का नाम लिया जाता है. वरना, जैसे अभी अभी केजरीवाल को मौका मिला था, तेजस्वी भी उन्हीं की तरह गवां देंगे. यकीन मानिये.
7. कुर्सी संभालने के बाद कई मौकों पर देखा गया कि तेजस्वी आगे की राजनीति का सफर लालू के रास्ते पर नहीं बल्कि उससे कहीं ज्यादा आगे ले जाना चाहते हैं, जिसमें जनाधार की वजह सिर्फ पैतृक विरासत और जातीय फैक्टर नहीं बल्कि अलग स्वीकार्यता भी बने. इस्तीफे से तेजस्वी को इस दिशा में काफी फायदा मिल सकता है.
8. तेजस्वी के मामले में सबसे कमजोर कड़ी यही है कि नीतीश की छवि के सामने बतौर आरजेडी नेता वो अभी कहीं टिक पाते हैं. जिस तरह सीबीआई का चक्कर चल रहा है हाल फिलहाल संभावनाएं भी धुंधली ही नजर आ रही हैं. इस्तीफा देकर वो ये मैसेज तो दे ही सकते हैं कि उनके भी अपने सिद्धांत हैं, कमिटमेंट हैं, राजनीतिक मकसद हैं.
9. इस्तीफा देकर तेजस्वी भी चाहें तो यूपी के अखिलेश यादव की तरह बगैर पिता की लाठी के सहारे खुद के पैरों पर खड़े हो सकते हैं - आखिर उनके पिता लालू प्रसाद की ख्वाहिश भी तो मुलायम सिंह यादव जैसी ही होगी.
10. ये तो तेजस्वी को भी पता होगा कि बेकसूर साबित होकर निकलने के बाद वो भी वैसे ही नजर आएंगे जैसे सोना तप कर निकलता है तो उसकी चमक के आगे सब के सब फीके पड़ जाते हैं. फिर तो तेजस्वी को बिहार के सीएम की कुर्सी पर बैठने से शायद ही कोई ज्यादा दिन तक रोक पाये. तब तो नीतीश कुमार बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर भी तेजस्वी को चैलेंज करने से पहले दो नहीं चार बार सोचेंगे.
नीतीश कुमार को चाणक्य माना जाता है तो लोग लालू की राजनीति का भी लोहा मानते हैं. जांच एजेंसियों की कार्रवाई ने राजनीति के लोहे को तो गर्म कर ही रखा है - तेजस्वी के लिए दस्तूर निभाने का बेहतरीन मौका हो सकता है.
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