शीत युद्ध के जमाने में और उसके बाद भी अमेरिका ने पैसे और हथियार देकर पाकिस्तान का हर तरीके से फायदा उठाया. यही काम अब चीन करने जा रहा है. क्योंकि संकेत मिलने लगे हैं कि पाकिस्तान की सियासत में क्या होगा, इसका एक ब्लूप्रिंट अब बीजिंग में भी तैयार होगा! चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा सीपैक ( CPEC ) के बहाने पाकिस्तान से क्या कीमत वसूलेगा और किस रूप में वसूलेगा, ये अभी देखने वाली बात है.
लेकिन सवाल उठने लगे हैं कि पिछले दो साल से जिस सीपैक ( CPEC ) को लेकर पाकिस्तान इतराता फिर रहा है, कहीं ये उसके जी का जंजाल तो नहीं बनने जा रहा. पाकिस्तान से हाल में आईं दो खबरों ने इसके संकेत दे दिए हैं.
पहला ये कि वहां के कई सांसद ही इस पूरे समझौते को लेकर अब पशोपेश में हैं. हाल में वहां के अपर हाउस के सांसद ताहिर मशादी ने तो इसकी तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी से कर दी. और दूसरी अहम बात रही चीन के पाकिस्तान में राजदूत की इमरान खान से मुलाकात. मशादी के अनुसार, 'अगर राष्ट्रीय हितों को ध्यान में नहीं रखा गया तो एक और ईस्ट इंडिया कंपनी तैयार हो जाएगी. हमें पाकिस्तान और चीन की दोस्ती पर गर्व है लेकिन राष्ट्र का हित सर्वोपरी है.' मशादी का बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वो वहां योजना और विकास संबंधी संसद की स्थायी समिति के चेयरमैन हैं. और अहम इसलिए कि एक सांसद को ऐसा कहने की जरूरत क्यों पड़ी.
क्या पाकिस्तान की सरकार अपने सांसदों को इस समझौते से पहले विश्वास में नहीं ले सकी. साथ ही ये आरोप भी वहां की सरकार पर लगता रहा है कि सीपैक को लेकर कई अहम सवालों को वो टालती रही है या सीधे जवाब नहीं दिए. इसलिए भी एक संशय का माहौल है.
यह भी पढ़ें- दो भाइयों के झगड़े की ये कहानी किसी पाकिस्तानी सड़क की नहीं है
चलिए, बात यहां तक थी तो भी ठीक था. लेकिन चीनी दल का...
शीत युद्ध के जमाने में और उसके बाद भी अमेरिका ने पैसे और हथियार देकर पाकिस्तान का हर तरीके से फायदा उठाया. यही काम अब चीन करने जा रहा है. क्योंकि संकेत मिलने लगे हैं कि पाकिस्तान की सियासत में क्या होगा, इसका एक ब्लूप्रिंट अब बीजिंग में भी तैयार होगा! चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा सीपैक ( CPEC ) के बहाने पाकिस्तान से क्या कीमत वसूलेगा और किस रूप में वसूलेगा, ये अभी देखने वाली बात है.
लेकिन सवाल उठने लगे हैं कि पिछले दो साल से जिस सीपैक ( CPEC ) को लेकर पाकिस्तान इतराता फिर रहा है, कहीं ये उसके जी का जंजाल तो नहीं बनने जा रहा. पाकिस्तान से हाल में आईं दो खबरों ने इसके संकेत दे दिए हैं.
पहला ये कि वहां के कई सांसद ही इस पूरे समझौते को लेकर अब पशोपेश में हैं. हाल में वहां के अपर हाउस के सांसद ताहिर मशादी ने तो इसकी तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी से कर दी. और दूसरी अहम बात रही चीन के पाकिस्तान में राजदूत की इमरान खान से मुलाकात. मशादी के अनुसार, 'अगर राष्ट्रीय हितों को ध्यान में नहीं रखा गया तो एक और ईस्ट इंडिया कंपनी तैयार हो जाएगी. हमें पाकिस्तान और चीन की दोस्ती पर गर्व है लेकिन राष्ट्र का हित सर्वोपरी है.' मशादी का बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वो वहां योजना और विकास संबंधी संसद की स्थायी समिति के चेयरमैन हैं. और अहम इसलिए कि एक सांसद को ऐसा कहने की जरूरत क्यों पड़ी.
क्या पाकिस्तान की सरकार अपने सांसदों को इस समझौते से पहले विश्वास में नहीं ले सकी. साथ ही ये आरोप भी वहां की सरकार पर लगता रहा है कि सीपैक को लेकर कई अहम सवालों को वो टालती रही है या सीधे जवाब नहीं दिए. इसलिए भी एक संशय का माहौल है.
यह भी पढ़ें- दो भाइयों के झगड़े की ये कहानी किसी पाकिस्तानी सड़क की नहीं है
चलिए, बात यहां तक थी तो भी ठीक था. लेकिन चीनी दल का इमरान खान से मिलना और चौंकाता है. गौरतलब है कि इमरान खान के नेतृत्व वाली तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी ने पाकिस्तान में नवाज शरीफ और उनकी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. यही नहीं, इमरान 2 नवंबर को 'इस्लामाबाद घेरो' अभियान की बात भी कर चुके हैं, जिसके तहत उनके समर्थक सरकारी दफ्तरों से लेकर तमाम मुख्य सड़कों को जाम करेंगे. दूसरे शब्दों में कहें तो इमरान ने आर-पार की लड़ाई का एलान किया है.
लेकिन दिलचस्प ये है कि इस्लामाबाद की सियासत में क्या हो रहा है, इसे लेकर चीन न केवल एक्टिव हो गया है बल्कि अपनी 'गाइडलाइन' भी देने लगा है. चीन के राजदूत की इमरान खान से मुलाकात के तो मायने यही लगते हैं. दरअसल ये मुलाकात ही इसलिए हुई कि चीन सुनिश्चित कर लेना चाहता था कि इमरान के आंदोलन का असर सीपैक के कामकाज पर न पड़े. न ही इसे निशाना बनाया जाए. इमरान ने भी रजामंदी जता दी. यानी इस एक मुलाकात से बीजिंग ने अब इस्लामाबाद की सियासत पर हाथ फेरना शुरू कर दिया है.
पाकिस्तान को डराने लगा है ड्रैगन का साथ? |
हो सकता है कि चीन को अपने प्रोजेक्ट की चिंता हो लेकिन सवाल है कि इमरान से मुलाकात के क्या मायने हैं ? क्योंकि इमरान जिस आंदोलन की बात कर रहे हैं और जिस स्तर पर जा कर बात कर रहे हैं, इससे जाहिर हो जाता है कि मौजूदा सरकार सत्ता में रहे, इसके पक्ष में वो बिल्कुल नहीं है. यानी सरकार गिरनी चाहिए. इमरान का लक्ष्य यही है. अगर सरकार गिरती है तो कुछ समय के लिए इसका असर निश्चित तौर पर सीपैक ( CPEC ) पर पड़ेगा. फिर चीन के राजदूत इमरान से जाकर क्यों मिलते हैं, ये सवाल अहम है. क्या चीन इमरान के सरकार विरोध के साथ है या फिर साथ नहीं है?
क्या ये मान लेना काफी होगा कि चीन ने इमरान से केवल इतना भर कहा होगा कि सीपैक ( CPEC ) को निशाना न बनाया जाए या फिर कहानी आगे कहीं और जाती है. क्या कोई और समीकरण भी तैयार हो रहे हैं?
यह भी पढ़ें- चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर पर अब क्यों लग रहा है ड्रैगन को डर
वैसे, पूरी दुनिया को हैरानी तो तब भी हुई थी कि जब चीन ने 2014 के नवंबर में सीपैक ( CPEC ) पर आगे बढ़ने के संकेत दे दिए थे. सवाल उठे थे कि आखिर क्यों चीन एक बड़ी रकम उस देश में झोंकने जा रहा है, जिसका वर्तमान और भविष्य संशय में है. ऊपर से जिन क्षेत्रों के जरिए इकॉनोमिक कॉरिडोर को बनाने की बात हुई है, वो भी विवादित है. यानी सब कुछ अनिश्चित. खुद, चीन की मीडिया में भी इस पर बातें हुई. लकिन चीन ने दांव खेला और अपने कदम आगे बढ़ाए.
2015 के अप्रैल में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पाकिस्तान पहुंचे और 46 बिलियन डॉलर का समझौता हो गया. ये रकम पाकिस्तान के जीडीपी का 20 फीसदी है!
अब जाहिर है, चीन अगर इतनी बड़ी रकम झोंक रहा है तो इसकी कीमत भी वसूली जाएगी. और बिजनेस का एक पुराना उसूल ये भी है कि जब मोटा पैसा दांव पर लगा हो तो केवल बाजार के भरोसे नहीं रहा जा सकता. सबकुछ बाजार तय नहीं करता, वहां के राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल पर नियंत्रण भी अहम है. भारत और पाकिस्तान से बेहतर इसे कौन समझेगा. इसलिए दशकों बाद अगर पाकिस्तान में ईस्ट इंडिया कंपनी की बात हो रही है, तो उसे नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.