समय का काल चक्र जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, डोकलाम पर चीन की प्रतिक्रियाएं असंतुलित होती जा रही हैं. चीन कभी संपूर्ण भारतीय सीमा पर युद्ध की धमकी देकर, धमकी की व्यापकता को अप्रत्याशित तरीका से बढ़ाता है, तो कभी सीमित युद्ध की धमकी देकर मामले को निपटाने की बात कर रहा है.
चीनी मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ अब भी युद्ध की धमकियों से भरा हुआ है. वहीं भारतीय सैनिक डोकलाम पर शून्य से नीचे तापमान में भी अटल रुप से डटे हुए हैं. चीन लगातार डोकलाम मामले पर अनावश्यक उग्रता का प्रदर्शन कर रहा है. चीन की युद्ध की अंतहीन धमकियों के बीच भारतीय संसद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने स्पष्ट कर दिया कि भारत सीमा से पीछे नहीं हटेगा, परंतु मामले के शांतिपूर्ण समाधान हेतु सक्रिय कूटनीतिक प्रयास जारी हैं.
सीमित युद्ध की चीनी मीडिया की नई बेतुकी धमकी
चीनी मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ में शनिवार को छपे एक लेख में चीनी सैन्य विशेषज्ञ ने कहा कि चीन छोटे स्तर के युद्ध की तैयारी कर रहा है. शंघाई एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के शोधार्थी हू झियोंग ने कहा कि संक्षिप्त मिलिट्री ऑपरेशन के जरिए चीन भारतीय सैनिकों को दो हफ्ते में डोकलाम से पीछे ढकेल देगा. शायद इस तरह की धमकी देने वाले चीनी विशेषज्ञ हू को युद्ध रणनीति का प्रारंभिक ज्ञान भी नहीं है. डोकलाम में भारत जिस तरह से महत्वपूर्ण सामरिक स्थिति में मौजूद है, वहां भारतीय पक्ष, चीनी पक्ष से कम से कम 9 गुना मजबूत है. अर्थात् भारत के एक सैनिक के समतुल्य चीन को 9 सैनिक खड़े करने होंगे. ऐसी स्थिति में डोकलाम में भारत को हिला पाना भी चीन के लिए कठिन होगा. भारत और चीन की भौगोलिक स्थिति भी भारत के पक्ष में है.
जंग होने पर चीनी विमानों को तिब्बत के ऊंचे पठार से उड़ान भरनी...
समय का काल चक्र जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, डोकलाम पर चीन की प्रतिक्रियाएं असंतुलित होती जा रही हैं. चीन कभी संपूर्ण भारतीय सीमा पर युद्ध की धमकी देकर, धमकी की व्यापकता को अप्रत्याशित तरीका से बढ़ाता है, तो कभी सीमित युद्ध की धमकी देकर मामले को निपटाने की बात कर रहा है.
चीनी मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ अब भी युद्ध की धमकियों से भरा हुआ है. वहीं भारतीय सैनिक डोकलाम पर शून्य से नीचे तापमान में भी अटल रुप से डटे हुए हैं. चीन लगातार डोकलाम मामले पर अनावश्यक उग्रता का प्रदर्शन कर रहा है. चीन की युद्ध की अंतहीन धमकियों के बीच भारतीय संसद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने स्पष्ट कर दिया कि भारत सीमा से पीछे नहीं हटेगा, परंतु मामले के शांतिपूर्ण समाधान हेतु सक्रिय कूटनीतिक प्रयास जारी हैं.
सीमित युद्ध की चीनी मीडिया की नई बेतुकी धमकी
चीनी मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ में शनिवार को छपे एक लेख में चीनी सैन्य विशेषज्ञ ने कहा कि चीन छोटे स्तर के युद्ध की तैयारी कर रहा है. शंघाई एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के शोधार्थी हू झियोंग ने कहा कि संक्षिप्त मिलिट्री ऑपरेशन के जरिए चीन भारतीय सैनिकों को दो हफ्ते में डोकलाम से पीछे ढकेल देगा. शायद इस तरह की धमकी देने वाले चीनी विशेषज्ञ हू को युद्ध रणनीति का प्रारंभिक ज्ञान भी नहीं है. डोकलाम में भारत जिस तरह से महत्वपूर्ण सामरिक स्थिति में मौजूद है, वहां भारतीय पक्ष, चीनी पक्ष से कम से कम 9 गुना मजबूत है. अर्थात् भारत के एक सैनिक के समतुल्य चीन को 9 सैनिक खड़े करने होंगे. ऐसी स्थिति में डोकलाम में भारत को हिला पाना भी चीन के लिए कठिन होगा. भारत और चीन की भौगोलिक स्थिति भी भारत के पक्ष में है.
जंग होने पर चीनी विमानों को तिब्बत के ऊंचे पठार से उड़ान भरनी होगी. ऐसे में न तो चीनी विमानों में ज्यादा विस्फोटक लादे जा सकते हैं और न ही ज्यादा इंधन भरे जा सकते हैं. चीनी वायुसेना विमानों में हवा में इंधन भरने में भी उतना सक्षम नहीं है. युद्ध की स्थिति में चीन के जे-11 और जे-10 विमान चोंग डू सैन्य क्षेत्र से उड़ान भरेंगे. वहीं भारत ने असम के तेजपुर में सुखोई 30 का ठोस बेस बनाया है. युद्ध की स्थिति में विमान यहां से तेजी से उड़ान भर सकेंगे. पश्चिमी हवाई कमान के पूर्व एयर माशर्ल चीफ पीएस अहलूवालिया कहते हैं- ‘भारतीय वायु सेना पीएलए के पहले कदम का इंतजार नहीं करेगी और हमारे लड़ाके उनके सघन क्षेत्रों को निशाना बनाएंगे.’
आज उत्तर पूर्व में हमारे तीन सैन्य कोर यानी करीब तीन लाख जवान तैनात हैं. इस क्षेत्र में कभी कंपनियां हुआ करती थीं, लेकिन अब वहां ब्रिगेड हैं. ज्ञात हो एक कंपनी में 100 जवान होते हैं, जबकि एक ब्रिगेड में 3000 जवान होते हैं. इससे पूर्वोत्तर क्षेत्र में सामान्य स्थिति में सेना की भारी-भरकम उपस्थिति को समझा जा सकता है. ऐसे में चीनी विशेषज्ञ हू झियोंग के सीमित सैन्य ऑपरेशन द्वारा भारत को डोकलाम से भारत निकालने की बात दिवास्वप्न ही है. अगर ऐसा कुछ होगा तो चीन को ही भारत, डोकलाम से निर्णायक दूरी तक पीछे कर देगा.
डोकलाम को लेकर हताशा में पड़े चीन ने अब गतिरोध के लिए भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के सख्त रवैये को जिम्मेदार ठहराया है. 'ग्लोबल टाइम्स' के अनुसार अगर भारतीय सेना डोकलाम से पीछे नहीं हटती तो युद्ध तय है, और अगर युद्ध होता है तो उसका नतीजा सभी जानते हैं. इस तरह बौखलाहट में चीन भारतीय जनमानस को युद्ध का भय दिखा रहा है. चीन का पूर्ण प्रयास है कि भारतीय जनमानस अपनी ही सरकार का विरोध करे. तभी इस बार चीनी मीडिया ने मोदी सरकार पर बड़ा हमला करते हुए देश को युद्ध में झोंकने का आरोप लगाया है. जबकि सच्चाई यह है कि डोकलाम से पीछे नहीं हटने का भारतीय जनमानस का जबरदस्त दबाव सरकार के ऊपर ही बना हुआ है. इस संपूर्ण प्रकरण से देश में चीन विरोधी माहौल ही बढ़ रहा है, लोग चीनी समानों का बहिष्कार कर रहे हैं. इस वर्ष चीनी राखियों का तो कम से कम लोगों ने पूर्ण बहिष्कार कर ही दिया.
इससे पहले शुक्रवार को भी चीन ने कहा कि उसके धैर्य की सीमा है. चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता पीएलए के कर्नल रेन मुओकियांग की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि चीन ने गुडविल दिखाते हुए इस मामले पर अभी कूटनीतिक हल का रास्ता अपनाया है. लेकिन इसकी भी एक सीमा है और संयम खत्म होने की ओर है. चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने उल्टे भारत पर आरोप लगाते हुए कहा कि भारत को इस भ्रम से खुद को निकाल देना चाहिए कि देर करने से डोकलाम समस्या का हल हो जाएगा.
ज्ञात हो कि गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने स्पष्ट कर दिया था कि युद्ध कोई विकल्प नहीं है. भारत-चीन-भूटान इस मामले का समाधान वार्तालाप से निकालेंगे. स्वराज ने कहा कि भारत अपने सम्मान की रक्षा के लिए तैयार है और कहा कि युद्ध कोई विकल्प नहीं है. उनके वक्तव्य का एक महत्वपूर्ण घटक था कि युद्ध के बाद भी अंततः वार्ता करनी ही पड़ती है. ऐसे में वार्ता युद्ध के पूर्व ही कर लेनी चाहिए. भारतीय पक्ष द्वारा जिस संतुलित तरीके से सीमा पर फौज के अटल रहने के निर्णय के बीच शांतिपूर्ण कूटनीतिक तरीकों के प्रयास हो रहे हैं, उससे डोकलाम मामले पर भारत के बेहद संतुलित पक्ष को देखा जा सकता है. दरअसल अब चीन के लिए भारत का धैर्य के साथ ही इस परिपक्व अंदाज में इस मामले को निपटाना ही सबसे बड़ी चुनौती बन गई है.
डोकलाम पर चीनी हताशा का महत्वपूर्ण कारण नवंबर में होने वाली पंचवर्षीय पार्टी कांग्रेस की होने वाली बैठक है. इसे ध्यान में रखते हुए चीन भारत को मनोवैज्ञानिक रूप से हराने के लिए धमकियों की श्रृंखला खड़ा कर रहा है. नवंबर के कम्युनिस्ट पार्टी की इस बैठक में कमजोरी के कोई भी संकेत शी जिनपिंग के प्रतिद्वंदियों का सशक्तीकरण कर सकता है, जो शी जिनपिंग कदापि नहीं चाहेंगे. लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद जब चीन को मनोवांछित सफलता नहीं मिल रही है, तो वह असंतुलित व्यवहार कर रहा है. इस असंतुलित चीनी व्यवहार में उसकी हताशा को देखा जा सकता है.
चीन की हताशापूर्ण नीतियों की चीनी विशेषज्ञ ने ही की आलोचना
दरअसल चीन के हताशापूर्ण व्यवहार में हो रही गड़बड़ियों की तो अब चीनी विशेषज्ञ ही आलोचना करने लगे हैं. चीनी सामरिक मामलों के जानकार वांग ताओ ताओ ने लोकप्रिय वेबसाइट "जहीहू डॉट कॉम" पर अरुणाचलप्रदेश पर चीन के दावे को ही नकारा है. उन्होंने कहा है कि "चीन और भारत के बीच विवादित क्षेत्र को लेकर वर्षों से तल्ख रिश्ता है. ये विवादित क्षेत्र जो कि राष्ट्रीय जुनून बन गया है, वास्तव में चीन के लिए बिल्कुल महत्वपूर्ण नहीं है. इस क्षेत्र को लेकर विवाद अर्थहीन है". उल्लेखनीय है कि चीन अरुणाचलप्रदेश को दक्षिणी तिब्बत घोषित करने का बार-बार असफल प्रयास करता ही रहता है. वांग ने भी यह इशारा किया है कि अरुणाचलप्रदेश के मुद्दे पर किसी बड़े विवाद का बाकी तिब्बत पर बुरा असर पड़ेगा और अलगाववादी ताकतों को बल मिलेगा.
डोकलाम पर चीनी हताशा को चीन के ही एक अन्य विशेषज्ञ यू दोंगशियोम के एक विश्लेषण से भी समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा कि चीन डोकलाम से अपने सैनिकों को वापस नहीं हटाएगा. क्योंकि अगर चीन ऐसा करता है तो भारत को भविष्य में उसके लिए समस्या खड़ी करने का प्रोत्साहन मिलेगा. चीन के सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ में यू दोंगशियोम के उपरोक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि भारत से चीन में कितनी बेचैनी है? शायद शू दोंगशियोम 1967 की भारतीय सैनिकों की गौरवशाली जीत को भूल गए हैं. भारत अपने एक-एक इंच जमीन की रक्षा करने में सफल है.
चीनी मीडिया, विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय का प्रोपेगेंडा वार के निष्प्रभावी होने के कारण चीनी हताशा को समझा जा सकता है. यही कारण है कि चीन के अविवेकपूर्ण टिप्णियों के कारण वह पश्चिमी मीडिया में भी आलोचना का जबरदस्त शिकार बना हुआ है. इतना ही डोकलाम पर घिरे चीन पर दक्षिण चीन सागर में भी भारी दबाव बना हुआ है. अब तक दक्षिण चीन सागर में चीन के वर्चस्व को अमेरिका से चुनौती मिल रही थी, परंतु अब आसियान में भी चीन विरोधी माहौल का निर्माण हो रहा है. यही कारण है कि शनिवार को वियतनाम ने भी दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य देशों से अपील की है कि वे दक्षिण चीन सागर में चीन के विस्तारवादी नीति के खिलाफ मजबूत रुख अपनाएं. रविवार को ही चीन के सदाबहार मित्र उत्तर कोरिया को संयुक्त राष्ट्र में कठोर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा. इस तरह चीन की अंतरराष्ट्रीय घेराबंदी तेज हो गई है.
डोकलाम विवाद पर चीन अत्यधिक दबाव में है, जिसके कारण उसके हताशापूर्ण व्यवहार की पुनरावृत्ति बारंबर हो रही है. बाकी पड़ोसियों को लाल आंखे दिखाने वाली चीनी सेना के सामने इस बार एक मजबूत आर्मी है. दांव पर सिर्फ डोकलाम की जमीन ही नहीं है बल्कि अरबों डॉलर की आर्थिक तरक्की भी है. यह वही आर्थिक विकास है, जिसकी बदौलत चीन इतना ताकतवर हुआ है. भारत से सशस्त्र संघर्ष की पहली चोट इसी पर पड़ेगी.
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