केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की सफलता से निराश और हताश कांग्रेस गहरे अवसाद से ग्रस्त है. पार्टी और उसके नेता यह समझ नहीं पा रहे हैं कि इस अवसाद की अवस्था में वो देश के समक्ष कैसे एक जिम्मेदार राजनीतिक दल की भूमिका निभायें.
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी तो इस हताशा में देश विरोधी और देश हित का अंतर तक नहीं समझ पा रहे हैं. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में जो कुछ भी हुआ उसे कहीं से भी देश हित के दायरे में रखकर नहीं देखा जा सकता है. देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में देश विरोधी नारे लगें और आतंकवादियों की खुली हिमायत हो, इसे कोई भी नागरिक स्वीकार नहीं कर सकता. लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष और उनकी पार्टी के अन्य नेताओं ने जेएनयू जाकर जो बयान दिए हैं उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उनकी सोच में राष्ट्रहित जैसी भावना का कोई स्थान नहीं है.
जेएनयू में वामपंथी विचारधारा से प्रेरित कुछ मुट्ठीभर छात्रों ने निम्नलिखित राष्ट्रविरोधी नारे लगाए:
• “पाकिस्तान जिंदाबाद”
• “गो इंडिया गो बैक”
• “भारत की बरबादी तक जंग रहेगी जारी”
• “कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी जारी”
• “अफ़ज़ल हम शर्मिन्दा है तेरे कातिल ज़िंदा हैं”
• “तुम कितने अफजल मरोगे, हर घर से अफ़ज़ल निकलेगा”
• “अफ़ज़ल तेरे खून से इन्कलाब आयेगा”
इन छात्रों को सही ठहराकर राहुल गांधी किस लोकतांत्रिक व्यवस्था की वकालत कर रहे हैं. क्या राहुल गांधी के लिए राष्ट्रभक्ति की परिभाषा यही है? देशद्रोह को छात्र क्रान्ति और देशद्रोह के खिलाफ कार्यवाही को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात का नाम देकर उन्होंने राष्ट्र की अखण्डता के प्रति संवेदनहीनता का परिचय दिया है....
केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की सफलता से निराश और हताश कांग्रेस गहरे अवसाद से ग्रस्त है. पार्टी और उसके नेता यह समझ नहीं पा रहे हैं कि इस अवसाद की अवस्था में वो देश के समक्ष कैसे एक जिम्मेदार राजनीतिक दल की भूमिका निभायें.
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी तो इस हताशा में देश विरोधी और देश हित का अंतर तक नहीं समझ पा रहे हैं. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में जो कुछ भी हुआ उसे कहीं से भी देश हित के दायरे में रखकर नहीं देखा जा सकता है. देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में देश विरोधी नारे लगें और आतंकवादियों की खुली हिमायत हो, इसे कोई भी नागरिक स्वीकार नहीं कर सकता. लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष और उनकी पार्टी के अन्य नेताओं ने जेएनयू जाकर जो बयान दिए हैं उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उनकी सोच में राष्ट्रहित जैसी भावना का कोई स्थान नहीं है.
जेएनयू में वामपंथी विचारधारा से प्रेरित कुछ मुट्ठीभर छात्रों ने निम्नलिखित राष्ट्रविरोधी नारे लगाए:
• “पाकिस्तान जिंदाबाद”
• “गो इंडिया गो बैक”
• “भारत की बरबादी तक जंग रहेगी जारी”
• “कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी जारी”
• “अफ़ज़ल हम शर्मिन्दा है तेरे कातिल ज़िंदा हैं”
• “तुम कितने अफजल मरोगे, हर घर से अफ़ज़ल निकलेगा”
• “अफ़ज़ल तेरे खून से इन्कलाब आयेगा”
इन छात्रों को सही ठहराकर राहुल गांधी किस लोकतांत्रिक व्यवस्था की वकालत कर रहे हैं. क्या राहुल गांधी के लिए राष्ट्रभक्ति की परिभाषा यही है? देशद्रोह को छात्र क्रान्ति और देशद्रोह के खिलाफ कार्यवाही को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात का नाम देकर उन्होंने राष्ट्र की अखण्डता के प्रति संवेदनहीनता का परिचय दिया है. मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि इन नारों का समर्थन करके क्या उन्होंने देश की अलगाववादी शक्तियों से हाथ मिला लिया है? क्या वह स्वतंत्रता की अभिवक्ति की आड़ में देश में अलगाववादीयों को छूट देकर देश का एक और बंटवारा करवाना चाहते हैं?
देश की राजधानी में स्थित एक अग्रणी विश्वविद्यालय के परिसर को आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा देने का केंद्र बना कर इस शिक्षा के केंद्र को बदनाम करने की साजिश की गई. मैं राहुल गांधी से पूछना चाहता हूँ कि क्या केंद्र सरकार का हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना राष्ट्रहित में होता? क्या आप ऐसे राष्ट्रविरोधियों के समर्थन में धरना देकर देशद्रोही शक्तियों को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं?
जेएनयू में राहुल गांधी ने वर्त्तमान भारत की तुलना हिटलर के जर्मनी से कर डाली. इतनी ओछी बात करने से पहले वह भूल जाते है कि स्वतंत्र भारत की हिटलर के जर्मनी से सबसे निकट परिकल्पना सिर्फ श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए 1975 के आपातकाल से की जा सकती है. स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति तो दूर, आपातकाल में विरोधियों को निर्ममता के साथ जेल में ठूंस दिया गया था. वामदलों के नेता जिनकी वह आज हिमायत करते घूम रहे है, वह भी इस बर्बरता का शिकार हुए थे. हिटलरवाद सिर्फ कांग्रेस के डी.एन.ए. में है, भाजपा को राष्ट्रवाद और प्रजातंत्र के मूल्यों की शिक्षा कांग्रेस पार्टी से लेने की जरूरत नहीं है. हमारे राजनैतिक मूल्य भारतवर्ष की समृद्ध संस्कृति से प्रेरित है और भारत का संविधान हमारे लिए शासन की निर्देशिका है. मैं राहुल गांधी से जानना चाहता हूँ कि 1975 का आपातकाल क्या उनकी पार्टी के प्रजातांत्रिक मूल्यों को परिभाषित करता है और क्या वह श्रीमती इंदिरा गांधी की मानसिकता को हिटलरी मानसिकता नहीं मानते?
देश की सीमाओं की रक्षा और कश्मीर में अलगाववाद को नियंत्रित करते हुए हमारे असंख्य सैनिक वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं. 2001 में देश की संसद में हुए आतंकवादी हमले में दिल्ली पुलिस के 6 जवान, 2 संसद सुरक्षाकर्मी और और एक माली शहीद हुए थे. इसी आतंकी हमले के दोषी अफ़ज़ल गुरू का महिमा मंडन करने वालों और कश्मीर में अलगाववाद के नारे लगाने वालों को समर्थन देकर राहुल गांधी अपनी किस राष्ट्रभक्ति का परिचय दे रहे हैं? मैं उनसे पूंछना चाहता हूँ कि अभी हाल में सियाचिन में देश की सीमा के प्रहरी 10 सैनिकों जिनमे लांस नायक हनुमंथप्पा एक थे के बलिदान को क्या वह इस तरह की श्रद्धांजलि देंगे?
भाजपा के केंद्र की सत्ता में आने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से कश्मीर में भी देश विरोधी भावनाओं को नियंत्रित करने में सफलता मिल रही है. लेकिन प्रमुख विपक्षी दल होने के बावजूद कांग्रेस इस काम में सरकार को सहयोग करने के बजाए जेएनयू में घटित शर्मनाक घटना को हवा दे रही है. प्रगतिशीलता के नाम पर वामपंथी विचारधारा का राष्ट्रविरोधी नारों को समर्थन किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता.
मैं कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी और उपाध्यक्ष राहुल गाँधी से ऊपर उल्लेखित सवालों का 125 करोड़ देशवासियों की ओर से जवाब मांगता हूँ और यह भी मांग करता हूँ कि राहुल गाँधी अपने इस कृत्य के लिए देश से मांफी मांगें.
(यह लेख अमित शाह के ब्लॉग से लिया गया है)
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