अगर आप अमर सिंह का 22 अगस्त 2016 का वह ट्वीट देखें जिसमें उन्होंने लिखा है.
क्योंकि अगस्त ही वह महीना था जब अखिलेश ने खुले रूप से कौमी एकता दल (मुख्तार अंसारी की पार्टी) के खिलाफ बगावत शुरू की थी. आज की समाजवादी पार्टी की मीटिंग में स्पष्ट हो गया है कि जो हाल महाभारत में चक्रव्यूह रचकर अभिमन्यु का किया गया था आज वही स्थिति कुछ-कुछ उत्तर प्रदेश के यदुवंश में भी दिखाई दी, जहां महाभारत में बड़े बडे महारथियों ने अभिमन्यु को घेरकर मार डाला, वही स्थिति आज की मीटिंग में अखिलेश के खिलाफ दिखाई दी.
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अमर सिंह ने अगस्त में ट्वीट करके दिए थे संकेत |
चाचा, बाप, जैसे महारथियों ने पहले तो खूब सुनाया,'पद मिलते ही लोगों का दिमाग खराब हो जाता है. शिवपाल मेहनती और जनता के नेता हैं. बाद में मुलायम ने तो यहां तक कह दिया कि अमर सिंह के ही कारण वे बच गए थे. जाहिर है अमर मुलायम कथा में अमर सिंह एक नायक हैं, इस नायक को मुलायम सिंह चाह कर भी नहीं छोड़ सकते. प्रधानमंत्री मोदी से सीख की बात तो की लेकिन यह भूल गए कि मोदी का पूरा कुनबा राजनीति के दलदल में नहीं है. आज की मीटिंग का निष्कर्ष तो यही निकलता है की मुलायम ना भाई को छोड़ेंगे, ना ही अमर व ना ही अपराधी गठबंधन.
अगर आप अमर सिंह का 22 अगस्त 2016 का वह ट्वीट देखें जिसमें उन्होंने लिखा है.
क्योंकि अगस्त ही वह महीना था जब अखिलेश ने खुले रूप से कौमी एकता दल (मुख्तार अंसारी की पार्टी) के खिलाफ बगावत शुरू की थी. आज की समाजवादी पार्टी की मीटिंग में स्पष्ट हो गया है कि जो हाल महाभारत में चक्रव्यूह रचकर अभिमन्यु का किया गया था आज वही स्थिति कुछ-कुछ उत्तर प्रदेश के यदुवंश में भी दिखाई दी, जहां महाभारत में बड़े बडे महारथियों ने अभिमन्यु को घेरकर मार डाला, वही स्थिति आज की मीटिंग में अखिलेश के खिलाफ दिखाई दी.
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अमर सिंह ने अगस्त में ट्वीट करके दिए थे संकेत |
चाचा, बाप, जैसे महारथियों ने पहले तो खूब सुनाया,'पद मिलते ही लोगों का दिमाग खराब हो जाता है. शिवपाल मेहनती और जनता के नेता हैं. बाद में मुलायम ने तो यहां तक कह दिया कि अमर सिंह के ही कारण वे बच गए थे. जाहिर है अमर मुलायम कथा में अमर सिंह एक नायक हैं, इस नायक को मुलायम सिंह चाह कर भी नहीं छोड़ सकते. प्रधानमंत्री मोदी से सीख की बात तो की लेकिन यह भूल गए कि मोदी का पूरा कुनबा राजनीति के दलदल में नहीं है. आज की मीटिंग का निष्कर्ष तो यही निकलता है की मुलायम ना भाई को छोड़ेंगे, ना ही अमर व ना ही अपराधी गठबंधन.
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अखिलेश के पास अब क्या?
तो अब अखिलेश के पास आत्मसमर्पण या फिर बगावत ही दो रास्ते हैं और अगर अखिलेश स्वाभिमान को चुनते हैं तो उन्हें अकेले ही अपनी लड़ाई लड़नी होगी. लेकिन इस लड़ाई में अखिलेश के पास अपना जमीर साथ होगा, जो उन्हें इस लड़ाई में आगे ले जाएगा. अकेली लड़ाई में शायद उन्हें आंशिक ही सफलता मिले लेकिन उत्तर प्रदेश की साफ राजनीति में भरोसा रखने वाले अखिलेश को चुनेंगे.
अब अखिलेश के पास आत्मसमर्पण या फिर बगावत ही दो रास्ते हैं |
अखिलेश के साथ लोगों की सहानुभूति तो होगी इस सहानुभूति का खामियाजा शायद मुलायम एंड पार्टी को भुगतना पड़े. बाद में अगर होश में आएंगे भी तो क्या जब सब कुछ लुट चुका होगा. अब इस स्थिति में अखिलेश या तो घुट-घुट कर राजनीति करें या फिर साफ राजनीति का एक नया वृक्ष लगा कर उसे सींचें.
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अखिलेश को जहां चाचा, उनके पुत्र अक्षय यादव, पत्नी डिम्पल यादव का साथ प्राप्त है, वहीं आजम खान भी हैं जो कि अखिलेश समर्थक माने जाते हैं उन्हें भी अमर प्रेम से कुछ ज्याद ही नफरत है, आजम खान अखिलेश यादव के लिए मुस्लिम कार्ड का इक्का साबित हो सकते हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.