विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भारतीय संविधान के मूलाधिकार में जगह दी गयी. लेकिन देश व समाज के हित में कतिपय प्रतिबन्ध भी है. संवैधानिक, कानूनी प्रावधान को छोड़ दे, तब भी समाज में नैतिकता का तकाजा होता है. खासतौर पर राजनेताओं को इस मर्यादा का सदैव ध्यान रखना चाहिए. लेकिन अमर्यादित बयान से बहुत जल्दी चर्चा मिलती है. यह सोचने का समय ऐसे नेताओं के पास नहीं है कि समाज व देश पर उनके बयानों का क्या असर हो रहा है.
भारतीय संस्कृति और इसकी सहिष्णुता का डंका पूरे विश्व में हमेशा बजता रहा है. इसकी कला और सभ्यता को जानने और सीखने के लिए लोग पूरी जिंदगी बिताने को तैयार रहते हैं. इसकी खासियत यह कि इसमें सभी प्रकार की संस्कृतियों का मिश्रण समाहित है. लेकिन बीते कुछ दिनों से इसकी साख पर बट्टा लगाने की कुछ घटनाएं पनप रही हैं. जिन पर अभी काबू न पाया गया तो आगे चलकर वह नासूर बन जायेगीं. जेएनयू में जो देश विरोधी नारे लगे वह किसी भी भारतीय को स्वीकार नहीं होंगे. अभी तक कोई दोषी सिद्ध नहीं हो पा रहा है. यह एक सस्ती राजनीति भुनाने का प्रयास हो रहा है. लेकिन उस घटना के आरोपी जेल से छूटने के बाद लगातार देश विरोधी बयानबाजी कर रहें हैं. कन्हैया ने कश्मीर का जिक्र करते हुए कहा कि कश्मीर में सेना द्वारा महिलाओं का बलात्कार किया जाता है, सुरक्षा के नाम पर जवान महिलाओं का बलात्कार करते हैं.
हालांकि कन्हैया ने ये भी कहा कि वो सुरक्षाबलों का सम्मान करता है लेकिन जब उसने कश्मीर का जिक्र किया तो कहा कि वहां सेना बलात्कार करती है. कन्हैया ने कश्मीर में सेना को लेकर कहा कि हम सुरक्षाबलों का सम्मान करते हुए भी बोलेंगे कि कश्मीर में सेना द्वारा बलात्कार किया जाता है. हमारे आपस में मतभेद हैं लेकिन इस देश को बचाने और इस देश के संविधान को बचाने में हमारे कोई मतभेद नहीं है. हम आजाद हिंदुस्तान में समस्याओं से आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
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हाईकोर्ट ने जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को 6 माह की सशर्त जमानत दी थी. इसके अनुसार वह जांच में सहयोग करेगा और जब भी जरूरत होगी जांच अधिकारियों के सामने पेश होगा. कन्हैया कुमार की जमानत पर आए हाईकोर्ट के ऐतिहासिक आदेश की तीखी बातों को ध्यान से देखना और सुनना चाहिए. शायद इस बात का फायदा पाकिस्तान ने उठाया और पूरे दिन कन्हैया के सेना वाले बयान को दिखाता रहा. पाकिस्तान ने यह दिखाने का प्रयास किया कि भारत में खराब काम सेना ही कर रही है. ऐसा उसी देश के नगरिक कह रहें हैं. इससे पूरे विश्व में भारत की नकारात्मक छवि बनाने का प्रयास किया गया. इन बातों का ध्यान उन्हें रखना चाहिए कि कम से कम अपने देश की शान फौजियों के बारे में कोई ऐसी बयानबाजी नहीं करें, जिससे दूसरे मुल्क को हम पर हंसने का मौका मिल जाए.
अभी ये मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि कांग्रेस के बड़े नेता गुलाम नबी आजआद ने फिर एक बार देश को अपने बयान देकर देश की छवि खराब करने का प्रयास किया. मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से आयोजित राष्ट्रीय एकता सम्मेलन में उन्होंने कहा हम मुसलमानों के बीच भी ऐसे लोगों को देखते हैं कि जो मुस्लिम देशों की तबाही की वजह बन गए हैं. इनके पीछे कुछ ताकतें हैं. परंतु हमें यह समझने की जरूरत है कि मुसलमान इसमें क्यों शामिल हो रहे हैं, वे क्यों फंसते जा रहे हैं? आजाद ने कहा कि इसलिए, हम आईएसआईएस जैसे संगठनों का उसी तरह विरोध करते हैं जैसे आरएसएस का विरोध करते हैं. देश में लड़ाई हिंदू और मुसलमान के बीच नहीं, बल्कि नजरिए की लड़ाई है. हम लोगों को सभी तरह की सांप्रदायिकता का मुकाबला मिलकर करना है.
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आईएसआईएस का कुकृत्य पूरी दुनिया से छिपा नहीं है. रोज निर्मम हत्याएं होती हैं. क्या आरएसएस ऐसा कार्य कर रहा है. इससे उन्होनें अपनी पार्टी में अपनी छवि तो अच्छी कर ली होगी पर विश्व उन्होंने भारत को झुकाने का प्रयास किया है. क्या आरएसएस और आइएसआई से तुलना करना ठीक है. इसे पूरी कांग्रेस को समझना होगा. वह पार्टी और संगठन से विचारों की लड़ाई लड़े पर किसी कार्यक्रम में जाकर ऐसी बयानबाजी करना बिल्कुल ठीक नहीं है. किसी अच्छे संगठन को बिना जांचे परख उस पर किसी आतंकी संगठन से तुलना ठीक नहीं है.
अभी दो बयानों के मार झेल रहे देश को थोड़ी मरहम मिलती इतने में अपने विवादित बयानों के लिए अमूमन चर्चा का विषय रहने वाले एमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने बेतुका बयान देते हुए कहा कि चाहे गर्दन पर चाकू रख दो लेकिन मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा. वह यहीं तक चुप नहीं रहे उन्होंने कहा कि मैं भारत में रहूंगा लेकिन भारत माता की जय नहीं बोलूंगा क्योंकि यह संविधान में कही नहीं लिखा है कि भारत माता की जय बोलना जरूरी है. चाहे तो मेरे गले पर चाकू लगा दीजिए, पर भारत माता की जय नहीं बोलूंगा. इसकी आजादी मुझे संविधान देता है. ओवैसी ने इशरत जहां के परिवार वालों को लगातार अपना सपोर्ट जारी रखने की बात भी कही.
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एक छोटा सा उदाहरण पाकिस्तान के मशहूर क्रिकेटर सईद अफरीदी ने भारत की थोड़ी तारीफ कर दी. जिसमें उन्हें अपने देश में अलोचना का शिकार होना पड़ा है. आफरीदी के बयान के बाद पाकिस्तान के एक वकील ने उनके खिलाफ लाहौर हाईकोर्ट में अर्जी दी. आफरीदी के इस बयान के बाद पाकिस्तान में उनका चैतरफा विरोध हो रहा है. इस पर कोर्ट ने शाहिद आफरीदी से 15 दिन में जवाब मांगा है. कहीं वह पाकिस्तान की बुराई करते तो क्या हाल होता.
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश विरोधी बयान देना फैशन बनता जा रहा है. इसमें कार्यवाही करने वालों के खिलाफ देश के राजनैतिक दल अलोचना करने लगते हैं. राजनीति करना ठीक है पर अपनी वाणी से ऐसे बयानों को निकलना चाहिए जिससे देश की छवि न खराब हो. किसी को भारत पर अपनी अभद्र भाषा का प्रयोग करने का हक नहीं है. देश की अच्छी छवि से ही हम सबका सिर उंचा है. सैनिकों को भी हमेशा सम्मान देना चाहिए. अभिव्यक्ति के नाम पर गलत बयानी करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सरकार और समाज दोनों को मिलकर करनी चाहिए. देश को आगे बढ़ाने के लिए सदैव आगे आने की जरूरत है.
साफ है कि कन्हैया, गुलाम नबी आजाद, ओवैसी जैसे लोगों को विवादित बयानों के कारण मीडिया में कई दिन तक खूब चर्चा मिली. जबकि तीनों के बयान केवल निराधार ही नहीं देश की प्रतिष्ठा कम करने वाले थे. ऐसे में कहा जा सकता है कि इस प्रकार के महत्वाकांक्षी नेता देश व समाज की कीमत पर अपना प्रचार करना चाहते हैं. इस प्रवृत्ति को रोकना होगा.
अमरपुरी से भी बढ़कर के जिसका गौरव-गान है।तीन लोक से न्यारा अपना प्यारा हिंदुस्तान है।।
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