मुंबई के एलफिंस्टन रोड हादसे के बाद बुलेट ट्रेन को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गयी है. रेल हादसों को लेकर ही सुरेश प्रभु को इस्तीफा देना पड़ा था. फिर भी जोर शोर से बुलेट ट्रेन का उद्घाटन हुआ और तारीफों के पुल बांधे गये, लेकिन रेलवे पुलों की भी हालत सुधारी जाये उसे लेकर ध्यान नहीं दिया गया.
मुंबई हादसे को लेकर अब तक यही राय बनी है कि अगर सरकार ने ध्यान दिया होता तो 22 लोगों की जान बच सकती थी. इसलिए सवाल यही उठ रहा है कि पहले लोगों की सुरक्षा जरूरी है या बुलेट ट्रेन?
सुरक्षा जरूरी या बुलेट ट्रेन
स्थानीय पत्रकार संतोष आंधले ने मुंबई हादसे से तीन दिन पहले ही सोशल मीडिया पर ऐसी आशंका जतायी थी. फेसबुक पर अपनी बात दोबारा पोस्ट करते हुए संतोष आंधले ने लिखा कि उन्हें बहुत दुख हो रहा है कि उनकी बातों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया.
पता ये भी चला है कि बतौर राज्य सभा सांसद सचिन तेंदुलकर ने भी ये मामला अगस्त, 2016 में उठाया था. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक रेल मंत्रालय ने मुंबई में पांच नये पुट ओवर ब्रिज बनाने को मंजूरी दी थी, जिसमें एक एलफिंस्टन रोड स्टेशन भी शामिल है.
आज तक की रिपोर्ट के अनुसार, 'शिवसेना की ओर से दो सांसदों अरविंद सावंत और राहुल शिवाले ने 2015-16 में इसी ब्रिज को चौड़ा करने के लिए चिट्ठी लिखी थी, जिसके जवाब में तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा था कि रेलवे के पास इसके लिए फंड नहीं है.' तत्कालीन रेल मंत्री ने कहा था - 'ग्लोबल मार्केट में मंदी है, आपकी शिकायत तो सही है लेकिन अभी फंड की कमी है.'
हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार, अब केंद्र सरकार ने सफाई देते हुए कहा कि नये फुटओवर ब्रिज के लिए निर्माण के लिए साल 2015 में ही मंजूरी दे दी...
मुंबई के एलफिंस्टन रोड हादसे के बाद बुलेट ट्रेन को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गयी है. रेल हादसों को लेकर ही सुरेश प्रभु को इस्तीफा देना पड़ा था. फिर भी जोर शोर से बुलेट ट्रेन का उद्घाटन हुआ और तारीफों के पुल बांधे गये, लेकिन रेलवे पुलों की भी हालत सुधारी जाये उसे लेकर ध्यान नहीं दिया गया.
मुंबई हादसे को लेकर अब तक यही राय बनी है कि अगर सरकार ने ध्यान दिया होता तो 22 लोगों की जान बच सकती थी. इसलिए सवाल यही उठ रहा है कि पहले लोगों की सुरक्षा जरूरी है या बुलेट ट्रेन?
सुरक्षा जरूरी या बुलेट ट्रेन
स्थानीय पत्रकार संतोष आंधले ने मुंबई हादसे से तीन दिन पहले ही सोशल मीडिया पर ऐसी आशंका जतायी थी. फेसबुक पर अपनी बात दोबारा पोस्ट करते हुए संतोष आंधले ने लिखा कि उन्हें बहुत दुख हो रहा है कि उनकी बातों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया.
पता ये भी चला है कि बतौर राज्य सभा सांसद सचिन तेंदुलकर ने भी ये मामला अगस्त, 2016 में उठाया था. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक रेल मंत्रालय ने मुंबई में पांच नये पुट ओवर ब्रिज बनाने को मंजूरी दी थी, जिसमें एक एलफिंस्टन रोड स्टेशन भी शामिल है.
आज तक की रिपोर्ट के अनुसार, 'शिवसेना की ओर से दो सांसदों अरविंद सावंत और राहुल शिवाले ने 2015-16 में इसी ब्रिज को चौड़ा करने के लिए चिट्ठी लिखी थी, जिसके जवाब में तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा था कि रेलवे के पास इसके लिए फंड नहीं है.' तत्कालीन रेल मंत्री ने कहा था - 'ग्लोबल मार्केट में मंदी है, आपकी शिकायत तो सही है लेकिन अभी फंड की कमी है.'
हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार, अब केंद्र सरकार ने सफाई देते हुए कहा कि नये फुटओवर ब्रिज के लिए निर्माण के लिए साल 2015 में ही मंजूरी दे दी गई थी और इसके लिए टेंडर की प्रक्रिया अभी चल रही है.
कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने भी सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है. चिदंबरम का कहना है कि रेलवे को सुरक्षा के बेहतर उपायों और सुविधाओं पर ध्यान देना चाहिये, न कि बुलेट ट्रेन पर. चिदंबरम का कहना है कि बुलेट ट्रेन का भी हाल नोटबंदी जैसा हो सकता है.
'मुंबई में एक भी ईंट नहीं रखने देंगे...'
बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने कहा था कि बुलेट ट्रेन आम लोगों के लिए नहीं, बल्कि अमीरों के लिए है. शिवसेना के मुखपत्र सामना में उद्धव ठाकरे ने लिखा था - 'हम बस ये उम्मीद करते हैं कि इससे मुंबई को नुकसान नहीं होगा.'
अपना विरोध जताते हुए उद्धव ने कहा था - मुंबई में लोकल ट्रेनों की हालत खराब है. विदर्भ और मराठवाड़ा में कई परियोजनाएं लंबित हैं और ये सरकार हमें बुलेट ट्रेन दे रही है.
मुंबई के ताजा हादसे के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे ने तो ज्यादा ही कड़ा रुख अख्तियार किया है. राज ठाकरे ने इस मामले में भी वैसे ही धमकाया है जैसे वो कई मामलों में यूपी-बिहार के लोगों को धमकाते रहे हैं.
राज ठाकरे न कहा है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुलेट ट्रेन चलाना चाहते हैं, तो गुजरात में चलाएं मुंबई में नहीं. राज ठाकरे का कहना है कि बुलेट ट्रेन की एक ईंट भी वो मुंबई में नहीं रखने देंगे. उन्होंने कहा कि अगर वे लोग फोर्स का इस्तेमाल करेंगे तो हमें सोचना पड़ेगा कि क्या करना है.
आपसी राजनीति का मामला अपनी जगह है, बड़ा सवाल यही है कि अगर भारी कर्ज लेकर ही बुलेट ट्रेन लायी जा सकती है तो थोड़ा और लोन लेकर लोगों की जान क्यों नहीं बचाई जा सकती?
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