गुजरात में जैसे-जैसे चुनाव की तारीखें नजदीक आ रही हैं, किसानों के लिये जैसे सरकारी योजनाओं की बारिश सी होने लगी है. शायद किसानों को पहली बार इन पांच सालों में लग रहा है कि उन्हें किसान होने का कुछ तो फायदा हुआ है. लेकिन किसानों की हालत उस हिरन के जैसी है जिन्हें महसूस हो रहा है कि दूर कहीं पानी है जबकि वह उनका सिर्फ एक भ्रम है.
आप भी सोचते होंगे कि गुजरात में किसान को 3 लाख तक के लोन बिना ब्याज के मिलने वाली सरकार की घोषणा का फायदा तो किसान को ही मिलेगा. लेकिन अर्थशास्त्री हेमंत शाह की मानें तो सरकार के जरीये ये एक व्यूह रचा जा रहा है, जिसके जरिए किसान और शहर में रहने वाले मध्यम वर्ग को एक दूसरे के सामने खड़ा किया जा रहा है. मध्यम वर्ग के लोगों को लगता है कि यहां सबकुछ किसान के लिये ही किया जा रहा है.
लेकिन हकीकत देखें तो आज के समय में किसान सब से ज्यादा परेशान है. 3 लाख तक के जिस लोन पर सरकार बिना ब्याज के कर्ज देने की बात कर रही है, उसे ही देखें तो किसान को ये लोन 7 प्रतिशत के ब्याज दर पर सब्सिडी दी जाती थी. इसमें से 4 प्रतिशत् ब्याज के पैसे केन्द्र सरकार देती थी और राज्य सरकार 2 प्रतिशत् ब्याज देती थी. और किसानों को सिर्फ एक प्रतिशत ही देना पड़ता था. हालांकि अब किसान को एक प्रतिशत ब्याज भी नहीं देना होगा. ये एक प्रतिशत ब्याज राज्य सरकार ही भरेगी.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस ब्याज को भरने की वजह से सरकार पर 700 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आयेगा. गुजरात में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 25 लाख किसान हैं, जो हर साल सरकार के पास से लोन लेते हैं. वैसे में हर किसान पर सरकार का महज 2800 रुपये का ही अतिरिक्त खर्च होगा. ये महज एक सरकारी घोषणा है जो चुनाव से पहले की गई है. मुद्दा ये है कि इसे कैबिनेट से अनुमति मिलेगी या नहीं. चुनाव के बाद जो नयी सरकार आयेगी उस समय सरकार इसे लागू करेगी या नहीं ये अभी तक साफ नहीं किया गया है. यानी कांग्रेस के मुताबिक ये सिर्फ एक चुनावी जुमला ही है.
मॉडल राज्य में किसान मर रहे हैं
वहीं गुजरात में अगर किसान की बदहाली को देखें तो विकास का मॉडल राज्य माने जाने वाले गुजरात में किसान बेहाल दिख रहा है. किसान के लिये केन्द्र में एनडीए की सरकार आने के बाद बदहाली ही बदहाली है. 2014 के लोकसभा चुनाव के समय गुजरात के तात्कालीन मुख्यमंत्री और वतर्मान में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहते थे कि- केन्द्र में भाजपा की सरकार आयेगी तो किसानों की फसल के दाम एसी वाले ऑफिस में बैठकर तय नहीं किए जाएंगे. बल्कि किसान की मेहनत मजदूरी पर 50 प्रतिशत ज्यादा पैसे मिलें इस तरह से तय किये जायेंगे.
देश में कपास के उत्पादन में अव्वल राज्य गुजरात है. 2014 में किसान को 100 किलो कपास की कीमत 1,100 से लेकर 1400 तक मिलते थे. ये कीमत आज 700 से 800 रुपये में सिमट कर रह गई है. गुजरात सरकार ने कपास का न्यूनतम दाम तय करते हुए इस बार चुनावी धोषणा की है की किसानों को 100 किलो का 900 रुपया मिलेगा. वैसा ही हाल मुंगफली, दाल और तिल में भी है.
एक ओर जहां महंगाई की मार ने खाद, बीज, दवाई और बिजली जैसी चीजों के दाम बढ़ा दिए हैं. तो वहीं दूसरी तरफ फसल के दाम लगातर कम हो रहे हैं. अर्थशास्त्री हेंमत शाह का कहना है कि- महंगाई दर जैसे-जैसे बढ़ रही है, वैसे-वैसे किसानों की फसल के दाम कम होते जा रहे हैं. किसानों के उत्पादन पर महंगाई का जीतना असर होता है, उत्पादन का उतना दाम उन्हें नहीं मिलता. गुजरात में किसान कार लेकर घूम रहा है. ऐसी बातें फैलाकर किसानों को पैसे वाले बताने का राज्य सरकार दावा कर रही है. लेकिन नेशनल सैम्पल सर्वे भारत सरकार के 2014 के रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात में 49 लाख किसान हैं जिनकी एक महीने की आय प्रति परिवार सिर्फ 7926 रुपये है. जो कि देश के 30 राज्यों में से 12वे नंबर पर है.
किसान कर्ज के केन्द्र सरकार के हाल ही के रिपोर्ट को देखें तो गुजरात के 49 लाख किसानों में से 42.6 प्रतिशत् किसान ऐसे हैं जिन्होंने कर्ज लिया हुआ है. देश के कृषि कर्ज के किसानों के आंकड़ों में गुजरात देश का 13वां राज्य है. लोन पर किसान का कर्ज माफ किया जा सकता है लेकिन जो पहले से ही कर्ज में डूबे हैं ऐसे किसान के लिये सरकार कुछ नहीं सोच रही है. एक ओर जहां उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में किसान का कर्ज माफ कर दिया गया है, वैसे ही गुजरात में सरकार कर्ज माफ करने की कोई बात नहीं कर रही है. नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक गुजरात में हर साल 500 किसान आत्महत्या करते हैं. हर रोज एक किसान आत्महत्या करता है.
गुजरात में किसान के विकास मॉडल की ये वो तस्वीर है जहां तस्वीर कुछ और दिखाई जा रही है लेकिन असलियत कुछ और ही है. इस बार चुनाव से पहले किसान परेशान है. किसान अपनी जितनी ताकत फसल को बोने ओर उगाने में लगा रहे हैं, उतनी ही ताकत सरकार के खिलाफ अपनी आवाज उठाने में भी लगा रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद भी उनकी आवाज को दबा दिया जाता है. साणंद में किसानों पर लाठियां बरसाईं गयी. चुनाव नजदीक आया तो किसान को हुए नुकसान की भरपाई तो सरकार नहीं कर रही है लेकिन डर जरुर रही है कि किसान कहीं उनके लिये हार का सबब ना बन जाएं. यही वजह है कि अब किसान को लुभावनी स्कीम दी जा रही है.
हालांकि ये स्कीम हकीकत में कब तब्दिल होगी ये किसान भी नहीं जानते. गुजरात में अगर किसानों ने अपनी फसल के नुकसान को इवीएम के बटन में तब्दिल कर दिया तो सरकार को मुंह की खानी पड़ सकती है.
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