69 साल जरूर लगे लेकिन डोनॉल्ड ने साबित कर दिया कि वो पैदा ही ट्रंप हुए थे. रिपब्लिकन पार्टी से नॉमिनेशन मिलने के पहले से ही ट्रंप पर इल्जामों की बौछार होने लगी - जिनमें उन्हें महिलाओं के लिए ऑक्टोपस से लेकर मीडिया में जोकर तक बताया गया.
अमेरिकी मीडिया
ट्रंप चौतरफा हमलों को मुस्कुराते हुए नाकाम कर आगे बढ़ते रहे, जब लगा कि मामला ज्यादा गंभीर हो रहा है तो ट्वीट किया, "मीडिया और सत्ताधारी लोग बुरी तरह चाहते हैं कि मैं दौड़ से बाहर हो जाऊं. लेकिन मैं कभी बाहर नहीं होनेवाला. मैं अपने समर्थकों को कभी झुकने नहीं दूंगा."
पूरा अमेरिकी मीडिया - क्या अखबार, क्या टेलीवीजन और क्या रेडियो - सबके सब ट्रंप के खिलाफ लामबंद हो गये. अमेरिका सबसे पुराना लोकतांत्रिक देश तो है ही, साथ में लिबरल भी. लिबरल इतना कि वो सारे एथिक्स भूल कर उम्मीदवार के पक्ष में वैसे खड़ा हो जाता है जैसे खुद पार्टी हो. हिलेरी क्लिंटन के पक्ष में अमेरिका के दर्जन भर बड़े-छोटे अखबार, टीवी, वेबसाइट थीं - लेकिन ट्रंप के सपोर्ट में ऐसा कोई नहीं था जो खुल कर सामने खड़ा हो.
इसे भी पढ़ें: अब कितना ग्रेट बनाएंगे अमेरिका को डोनाल्ड ट्रंप?
छोटे मोटे टेबलॉयड को छोड़ भी दें तो सीएनएन और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे मीडिया ग्रुप खुलेआम ट्रंप की दावेदारी का विरोध करते रहे और आखिरी दम तक हिलेरी क्लिंटन को जिताते रहे. अपनी बात को साबित करने के लिए तमाम सर्वे और आंकड़े भी पेश करते रहे. शुरू में तो हफिंगटन पोस्ट ने कहा था कि वो ट्रंप उसके लिए पेज-थ्री आइटम से ज्यादा अहमियत नहीं रखते.
69 साल जरूर लगे लेकिन डोनॉल्ड ने साबित कर दिया कि वो पैदा ही ट्रंप हुए थे. रिपब्लिकन पार्टी से नॉमिनेशन मिलने के पहले से ही ट्रंप पर इल्जामों की बौछार होने लगी - जिनमें उन्हें महिलाओं के लिए ऑक्टोपस से लेकर मीडिया में जोकर तक बताया गया. अमेरिकी मीडिया ट्रंप चौतरफा हमलों को मुस्कुराते हुए नाकाम कर आगे बढ़ते रहे, जब लगा कि मामला ज्यादा गंभीर हो रहा है तो ट्वीट किया, "मीडिया और सत्ताधारी लोग बुरी तरह चाहते हैं कि मैं दौड़ से बाहर हो जाऊं. लेकिन मैं कभी बाहर नहीं होनेवाला. मैं अपने समर्थकों को कभी झुकने नहीं दूंगा." पूरा अमेरिकी मीडिया - क्या अखबार, क्या टेलीवीजन और क्या रेडियो - सबके सब ट्रंप के खिलाफ लामबंद हो गये. अमेरिका सबसे पुराना लोकतांत्रिक देश तो है ही, साथ में लिबरल भी. लिबरल इतना कि वो सारे एथिक्स भूल कर उम्मीदवार के पक्ष में वैसे खड़ा हो जाता है जैसे खुद पार्टी हो. हिलेरी क्लिंटन के पक्ष में अमेरिका के दर्जन भर बड़े-छोटे अखबार, टीवी, वेबसाइट थीं - लेकिन ट्रंप के सपोर्ट में ऐसा कोई नहीं था जो खुल कर सामने खड़ा हो. इसे भी पढ़ें: अब कितना ग्रेट बनाएंगे अमेरिका को डोनाल्ड ट्रंप? छोटे मोटे टेबलॉयड को छोड़ भी दें तो सीएनएन और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे मीडिया ग्रुप खुलेआम ट्रंप की दावेदारी का विरोध करते रहे और आखिरी दम तक हिलेरी क्लिंटन को जिताते रहे. अपनी बात को साबित करने के लिए तमाम सर्वे और आंकड़े भी पेश करते रहे. शुरू में तो हफिंगटन पोस्ट ने कहा था कि वो ट्रंप उसके लिए पेज-थ्री आइटम से ज्यादा अहमियत नहीं रखते.
साथी भी पीछे न रहे जिन साथियों से ट्रंप को पीछे खड़े रहने की उम्मीद रही होगी उन्होंने तो बहुत पहले ही ऐलान कर दिया कि समर्थन तो दूर वो तो ट्रंप को वोट देने से भी रहे. ऐसे रिपब्लिकन नेताओं में कैलिफोर्निया के गर्वनर रह चुके अर्नाल्ड श्वार्जनेगर का नाम भी शुमार था. रिपब्लिकन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रह चुके सीनेटर जॉन मैकेन ने भी काफी पहले ही कह दिया था कि ट्रंप के लिए सशर्त समर्थन जारी रखना भी उनके लिए नामुमकिन है. पूर्व विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस का बयान तो ट्रंप के लिए कुछ ज्यादा ही दुखदायी रहा, "बहुत हो गया, डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति नहीं बनना चाहिए. उन्हें अपना नाम वापस ले लेना चाहिए." इसे भी पढ़ें: डीबेट ही जीत सकती हैं हिलेरी क्योंकि चुनाव ट्रंप जीत चुके हैं "मैं सबका राष्ट्रपति..." हिलेरी क्लिंटन ने तो रिपब्लिकन उम्मीदवार ट्रंप पर अमरीकी सुरक्षा को खतरे में डालने तक का आरोप लगाया था. हिलेरी क्लिंटन के चुनाव अभियान के एक प्रवक्ता का कहना था कि ऐसा पहली बार हुआ है जब राष्ट्रपति चुनाव के लिए किसी अहम उम्मीदवार ने अपने राजनीतिक विरोधी के खिलाफ किसी विदेशी ताकत को जासूसी करने के लिए एनकरेज किया हो. इसके बाद रूस के प्रवक्ता को बयान जारी करना पड़ा कि राष्ट्रपति पुतिन कई बार कह चुके हैं कि उनका किसी दूसरे देश की चुनावी प्रक्रिया में दखल देने का कोई इरादा नहीं. ट्रंप को महिला विरोधी साबित करने के लिए दर्जन भर पुराने वीडियो मार्केट में लाये गये. अमेरिकियों के बीच ट्रंप को मुस्लिम विरोधी के तौर पर भी समझाने की कोशिश की गयी. लेकिन अब ये सब इतिहास का हिस्सा हो चुका है. ट्रंप का सबसे ताजा बयान है, "मैं सबका राष्ट्रपति हूं..." 2014 में चुनाव जीतने के बाद नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ये भारत ही है जहां एक चाय वाला भी प्रधानमंत्री बन सकता है - और अब ट्रंप भी कह सकते हैं कि ये उनके मुल्क का संविधान ही है जो एक आम अमेरिकी को भी राष्ट्रपति बनने का पूरा मौका देता है - भले ही पूरी जिंदगी उसका सक्रिय राजनीति से कोई वास्ता न रहा हो. इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |