तमिलनाडु के बाद महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से होते हुए किसान आंदोलन की आंच अब बिहार को भी अपनी चपेट में ले रही है. किसानों की खुदकुशी की घटनाओं के बीच जहां कर्ज माफी की मांग जोर पकड़ रही है, नीतीश कतई उसके पक्ष में नहीं दिखते. देश के कई हिस्सों में किसानों के हाइवे जाम के साथ ही बिहार में किसानों ने महाराष्ट्र की तर्ज पर विरोध प्रदर्शन कर धरना दिया.
किसानों के मसले पर नीतीश की भी चिंता देखने को मिल रही है, लेकिन शिवराज के उपवास से अलग उन्होंने किसानों के साथ बैठ कर खाना खाया - और कहा कि किसानों को कर्जमाफी नहीं दूसरी और जरूरतें उससे ज्यादा अहम हैं.
मंदसौर से चंपारण
नीतीश कुमार के समागम से बेपरवाह किसानों का एक जत्था पटना के गर्दनीबाग में जुटा. अखिल भारतीय किसान एवं मजदूर संगठन के बैनर तले करीब सौ किसानों ने दूध बहाये और सड़क पर आलू-प्याज फेंक कर अपना विरोध प्रकट किया. किसानों ने वहां धरना भी दिया. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से ज्यादातर किसानों का दावा रहा कि वे ब्रह्मेश्वर सिंह मुखिया के समर्थक हैं. मुखिया ने ही बिहार में रणवीर सेना की स्थापना की थी जिसे कई नरसंहारों के लिए जिम्मेदार माना जाता है.
इन किसानों की शिकायत है कि नीतीश कुमार कुछ चुने हुए लोगों को एसी हॉल में बुलाकर मीटिंग कर रहे हैं और आर्थिक मुश्किलों के चलते उन्हें अपनी जमीन बेचनी पड़ रही है. किसानों का आरोप ये भी है कि किसी को भी उनकी जरा भी परवाह नहीं है भले ही वो नीतीश सरकार हो या फिर मोदी सरकार. उधर, दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में किसानों के कई संगठन मीटिंग में शामिल हुए. तय हुआ कि किसानों को जागरुक करने के लिए मंदसौर से जनजागृति यात्रा निकाली जाएगी जो दो अक्टूबर को चंपारण किसान...
तमिलनाडु के बाद महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से होते हुए किसान आंदोलन की आंच अब बिहार को भी अपनी चपेट में ले रही है. किसानों की खुदकुशी की घटनाओं के बीच जहां कर्ज माफी की मांग जोर पकड़ रही है, नीतीश कतई उसके पक्ष में नहीं दिखते. देश के कई हिस्सों में किसानों के हाइवे जाम के साथ ही बिहार में किसानों ने महाराष्ट्र की तर्ज पर विरोध प्रदर्शन कर धरना दिया.
किसानों के मसले पर नीतीश की भी चिंता देखने को मिल रही है, लेकिन शिवराज के उपवास से अलग उन्होंने किसानों के साथ बैठ कर खाना खाया - और कहा कि किसानों को कर्जमाफी नहीं दूसरी और जरूरतें उससे ज्यादा अहम हैं.
मंदसौर से चंपारण
नीतीश कुमार के समागम से बेपरवाह किसानों का एक जत्था पटना के गर्दनीबाग में जुटा. अखिल भारतीय किसान एवं मजदूर संगठन के बैनर तले करीब सौ किसानों ने दूध बहाये और सड़क पर आलू-प्याज फेंक कर अपना विरोध प्रकट किया. किसानों ने वहां धरना भी दिया. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से ज्यादातर किसानों का दावा रहा कि वे ब्रह्मेश्वर सिंह मुखिया के समर्थक हैं. मुखिया ने ही बिहार में रणवीर सेना की स्थापना की थी जिसे कई नरसंहारों के लिए जिम्मेदार माना जाता है.
इन किसानों की शिकायत है कि नीतीश कुमार कुछ चुने हुए लोगों को एसी हॉल में बुलाकर मीटिंग कर रहे हैं और आर्थिक मुश्किलों के चलते उन्हें अपनी जमीन बेचनी पड़ रही है. किसानों का आरोप ये भी है कि किसी को भी उनकी जरा भी परवाह नहीं है भले ही वो नीतीश सरकार हो या फिर मोदी सरकार. उधर, दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में किसानों के कई संगठन मीटिंग में शामिल हुए. तय हुआ कि किसानों को जागरुक करने के लिए मंदसौर से जनजागृति यात्रा निकाली जाएगी जो दो अक्टूबर को चंपारण किसान आंदोलन की सौवीं वर्षगांठ पर बिहार के चंपारण में खत्म होगी.
कर्जमाफी की जरूरत नहीं!
2015 में जिन राज्यों में किसानों की खुदकुशी के मामले नहीं के बराबर दर्ज किये गये उनमें पश्चिम बंगाल, गोवा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, झारखंड, मिजोरम, नगालैंड और उत्तराखंड के साथ साथ बिहार भी शामिल रहा.
किसानों की खुदकुशी के मामले में बिहार की इस स्थिति की कई वजहें हो सकती है. कुछ जानकार इसकी वजह लोगों के माइग्रेशन को भी मानते हैं. छोटे किसान या खेती बारी से जुड़े मजदूर दूसरे राज्यों में काम की तलाश में दूसरे राज्यों का रुख कर लेते हैं. कुछ लोग एऐसे मामलों की रिपोर्ट दर्ज न होना भी एक बड़ी मानते हैं.
कर्जमाफी को लेकर नीतीश कुमार से जब उनकी सरकार की पहल के बारे में पूछा जाता है तो जवाब मिलता है - यहां किसानों में कर्ज लेने की प्रवृत्ति नहीं है. नीतीश मानते हैं कि कर्ज माफी एक मुद्दा जरूर है, लेकिन ये किसानों की सभी समस्याओं का हल नहीं है. नीतीश की राय में किसानों को लागत के अनुसार वाजिब कीमत नहीं मिलना ही असली समस्या है.
आखिर में नीतीश कुमार, सारा मामला केंद्र सरकार के पाले में डाल देते हैं, “कर्ज माफी से किसानों की समस्या खत्म नहीं होगी. सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर कोई नीति बनानी चाहिए.”
नीतीश का कहना है कि किसानों की आमदनी बढ़े, इसके लिए केंद्र को पहल करनी होगी, महज कृषि मंत्रालय का नाम बदल देने से किसानों का कल्याण नहीं होने वाला.
किसानों के मसले पर नीतीश कुमार का अपना सवाल भी है, "किसान संकट का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि मराठा, जाट, पाटीदार जैसे समूह जो कभी कृषि क्षेत्र में काफी सशक्त थे आज इतने पिछड़ गए कि आरक्षण की मांग के लिए मजबूर हो गए? विभिन्न प्रांतों में लोग आज आरक्षण की मांग कर रहे हैं तो ये वाकई में किसान संकट है."
नीतीश कुमार अक्सर ही अपना अलग सियासी स्टैंड लेते हैं. नोटबंदी के मामले में तो वो बिरादरी से अलग रहे ही - और अब किसानों के मामले में भी. न तो उन्होंने पुलिस फायरिंग के बाद शिवराज सिंह चौहान की तरह उपवास रखा, न पुलिस के खिलाफ एक्शन के लिए सीएम होते हुए भी अरविंद केजरीवाल की तरह धरना दिया - बल्कि, नीतीश ने किसानों के साथ बैठ कर खाना खाने का फैसला किया.
वो सोनिया की दावत छोड़ सकते हैं और प्रधानमंत्री के साथ लंच कर सकते हैं - और मौका आने पर किसानों के साथ जमीन पर बैठकर भी खाना खा सकते हैं. नीतीश ने एक बार फिर जता दिया कि उनकी राजनीति की अलग स्टाइल है. लेकिन ये सब यूं ही नहीं है. इसके पीछे दूरगामी सोच और खास रणनीति भी है.
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