पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या को लेकर सड़क से सोशल मीडिया तक लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है. लोगों का गुस्सा एक ट्विटर यूजर निखिल दधीच के एक ट्वीट पर और भड़क उठा जिसमें उसने गौरी लंकेश को लेकर आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल किया.
गुस्से की आग अभी भभक ही रही थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम उसमें घी बन कर टपक पड़ा, जब लोगों को मालूम हुआ कि मोदी भी उसे फॉलो करते हैं. नतीजा ये हुआ कि मोदी के विरोध में ट्विटर पर #BlockNarendraModi ही ट्रेंड करने लगा.
सबसे बड़ा अपमान
निखिल दधीच ने अपने प्रोफाइल में बताया था कि वो मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस में है. उसे गर्व है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसे फॉलो करते हैं और खुद को उसने हिंदू राष्ट्रवादी बता रखा है. हालांकि, बवाल मचने के बाद अब निखिल के प्रोफाइल पर सिर्फ ये लिखा है - हिंदू नेशनलिस्ट.
आखिर प्रधानमंत्री मोदी को इन्हें फॉलो करने की जरूरत क्यों पड़ी?
ये ट्वीट देखने के बाद लोग प्रधानमंत्री को ट्रोल करने लगे और उनसे निखिल को अनफॉलो करने और माफी मांगने की डिमांड करने लगे. देखते ही देखते ट्विटर पर #BlockNarendraModi टॉप ट्रेंड में शामिल हो गया.
दिन भर ट्रैंड करता रहा
निशाने पर मोदी
बाद में कई लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी को ट्विटर पर ब्लॉक करना शुरू कर दिया. इनमें से कुछ लोग ऐसे भी रहे जिनका मानना रहा कि प्रधानमंत्री मोदी को ब्लॉक करने से भी बहुत कुछ बदलने वाला नहीं है.
फिर कई लोग मोदी के सपोर्ट में भी खड़े हो गये. ये लोग मोदी को ब्लॉक किये जाने के ट्रेंड के खिलाफ दलील पेश करने लगे. कुछ लोगों ने इस ट्रेंड को लेकर ही सवाल पूछने लगे. कइयों का कहना था कि जब कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है तो मोदी को क्यों ब्लॉक किया जाना चाहिये?
मोदी को ब्लॉक करने से क्या मिलेगा?
बहस बोलने की आजादी को लेकर छिड़ी है. यहां एक आइडियोलॉजी से बाकियों का विरोध है. एक आइडियोलॉजी जिसे मानने वाली पार्टी फिलहाल सत्ता में है और जिस पर इल्जाम है कि विरोध के स्वर को कुचल देने की कोशिश कर रही है. गौरी लंकेश की हत्या को बोलने की आजादी का गला घोंटना माना जा रहा है. गौरी लंकेश को इसीलिए मार डाला गया क्योंकि वो उस खास विचारधारा के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही थीं. विरोध में उठी ऐसी आवाजों को इससे पहले भी ऐसे ही चुप कराया जा चुका है. गौरी लंकेश से पहले एमएम कलबुर्गी, नरेंद्र दभोलकर और पानसरे के नाम शामिल हैं.
अब सवाल ये उठता है कि क्या बोलने की आजादी के विरोधी की मुखालफत भी उसी तरीके से जायज होगा. यानी जिस पर विरोध की आवाज को कुचलने का आरोप हो क्या उसकी आवाज भी बंद करने की कोशिश होनी चाहिये. इंसाफ का ये तरीका कभी भी तार्किक नहीं रहा है. ये तो आंख के बदले आंख और खून के बदले खून वाला ही इंसाफ हुआ. खासकर ऐसे दौर में जब किसी कातिल या फिर आतंकवादी को भी फांसी दिये जाने का विरोध हो रहा हो.
गौरी लंकेश की हत्या से फूटा लोगों का गुस्सा
ट्विटर पर इस तरह के भी सवाल उठाये गये और विरोध के तरीके भी सुझाये गये. किसी का कहना था कि विरोध का शोर तब तक मचाओ जब तक वो सुन नहीं लेते - और किसी का सुझाव था कि सवाल तब तक पूछते रहो जब तक अंजाम तक नहीं पहुंच जाते.
ट्विटर पर जारी इस विरोध और प्रतिरोध के बीच कुछ ऐसे ट्वीट भी किये गये जो सेंस ऑफ ह्यूमर से भरपूर रहे.
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