काला धन, जाली मुद्रा और आतंक को करारी शिकस्त देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500-1000 के नोट बंद किए तो पूरा देश उनके साथ पहले तो खड़ा रहा, लेकिन बाद में लोगों को नोटबंदी का कोई फायदा नहीं दिखा. अब दो साल हो गए हैं नोटबंदी को और देशवासियों को अभी भी मोदी के मास्टर स्ट्रोक पर शक है. हालांकि, कुछ अभी भी मानते हैं कि इसका असर दिखेगा. बहरहाल मोदी की नोटबंदी से पहले भी एक समय था. लाल बहादुर शास्त्री का समय. 2 अक्टूबर को सिर्फ गांधी जी ही नहीं बल्कि शास्त्री जी का भी जन्म हुआ था. वो देश के ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनके कहने पर पूरे देश ने उपास रख लिया था.
ठीक 50 साल भी ऐसा ही एक समय था. जब देश को अनाज के लिए अमेरिका या अन्य किसी देश के आगे हाथ न फैलाना पड़े, इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के आह्वान पर पूरा देश सप्ताह में एक दिन उपवास रखता था.
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अमेरिका से अनाज लेने पर देश का स्वाभिमान चूर-चूर हो जाता, इसलिए देश को एक दिन उपवास करने का आह्वान किया |
1964 में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौत के बाद लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने. उनके कार्यकाल में देश में अनाज का संकट पैदा...
काला धन, जाली मुद्रा और आतंक को करारी शिकस्त देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500-1000 के नोट बंद किए तो पूरा देश उनके साथ पहले तो खड़ा रहा, लेकिन बाद में लोगों को नोटबंदी का कोई फायदा नहीं दिखा. अब दो साल हो गए हैं नोटबंदी को और देशवासियों को अभी भी मोदी के मास्टर स्ट्रोक पर शक है. हालांकि, कुछ अभी भी मानते हैं कि इसका असर दिखेगा. बहरहाल मोदी की नोटबंदी से पहले भी एक समय था. लाल बहादुर शास्त्री का समय. 2 अक्टूबर को सिर्फ गांधी जी ही नहीं बल्कि शास्त्री जी का भी जन्म हुआ था. वो देश के ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनके कहने पर पूरे देश ने उपास रख लिया था.
ठीक 50 साल भी ऐसा ही एक समय था. जब देश को अनाज के लिए अमेरिका या अन्य किसी देश के आगे हाथ न फैलाना पड़े, इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के आह्वान पर पूरा देश सप्ताह में एक दिन उपवास रखता था.
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अमेरिका से अनाज लेने पर देश का स्वाभिमान चूर-चूर हो जाता, इसलिए देश को एक दिन उपवास करने का आह्वान किया |
1964 में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौत के बाद लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने. उनके कार्यकाल में देश में अनाज का संकट पैदा हो गया. अमेरिका ने उस समय कुछ शर्तों के साथ भारत को अनाज देने की पेशकश की. शास्त्री जी जानते थे कि अमेरिका से अनाज लिया तो देश का स्वाभिमान चूर-चूर हो जाएगा. ऐसे में उन्होंने एक दिन अपने परिवार को उपवास करने के लिए कहा. शास्त्री जी सहित पत्नी, बच्चों ने पूरे दिन कुछ नहीं खाया. इससे शास्त्री जी को भरोसा हो गया कि यदि एक दिन भोजन न भी किया जाए तो इंसान भूख बर्दाश्त कर लेता है. परिवार पर प्रयोग के बाद उन्होंने देशवासियों से आह्वान किया.
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उन्होंने कहा कि- ''हमें भारत का स्वाभिमान बनाए रखने के लिए देश के पास उपलब्ध अनाज से ही काम चलाना होगा. हम किसी भी देश के आगे हाथ नहीं फैला सकते. यदि हमने किसी देश द्वारा अनाज देने की पेशकश स्वीकार की तो यह देश के स्वाभिमान पर गहरी चोट होगी. इसलिए देशवासियों को सप्ताह में एक वक्त का उपवास करना चाहिए. इससे देश इतना अनाज बचा लेगा कि अगली फसल आने तक देश में अनाज की उपलब्धता बनी रहेगी."
उन्होंने आह्वान में कहा- पेट पर रस्सी बांधो, साग-सब्जी ज्यादा खाओ, सप्ताह में एक दिन एक वक्त उपवास करो, देश को अपना मान दो."
उनके आह्वान का देशवासियों पर गहरा असर पड़ा. लोगों ने बिना किसी हिचक के अपने प्रधानमंत्री के आह्वान पर भरोसा किया और देश का स्वाभिमान बचाने के लिए सप्ताह में एक दिन एक वक्त का खाना छोड़ दिया. शहरों से लेकर गांवों-कस्बों तक में महिलाएं, बच्चे, पुरुष, बुजुर्ग सब भूखे रहते और देश के लिए इस 'अनाज-यज्ञ" में अपने हिस्से की आहुति देते. किसी ने कोई शिकायत नहीं की, किसी ने कोई सवाल नहीं उठाया. यहां तक कि जिन लोगों के घर पर्याप्त अनाज था, वे भी उपवास करते और देश के साथ भूखे रहते. आखिरकार देश अगली फसल आने तक स्वाभिमान से जिया और किसी अन्य देश से अनाज लेने की नौबत नहीं आई.
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