इंडिया टुडे और आजतक के स्टिंग ऑपरेशन में हुर्रियत नेताओं की तरफ से पाकिस्तान के पैसे लेने के कबूलनामे के बाद क्या सरकार हुर्रियत के खिलाफ कोई कार्यवाई करेगी ऐसा लगता तो नहीं है.
इस महीने की 16 तारीख को इंडिया टुडे टेलीविजन और आजतक की तरफ से किये गए स्टिंग ऑपरेशन में पहली बार हुर्रियत के किसी बड़े नेता को कैमरे पर यह कबूल करते हुए देखा गया कि पाकिस्तान से कश्मीर में अशांति पैदा करने के लिए उन्हें पैसे मिलते हैं.
देश की सब से प्रमुख जाँच एजेंसी NIA भी हरकत में आयी और आनन-फानन दिल्ली से लेकर कश्मीर में सब सक्रिय हो गए. कश्मीर में हुर्रियत नेताओं के खिलाफ इस तरह सरकार पहले भी कई बार हरकत में आ चुकी है. हुर्रियत नेताओं को कई बार जेल बेजा गया और कई बार बड़ी जांच भी हुई लेकिन उस के बाद फिर अलगावादी नेताओं की सरकार ने ही इज्जत अफ़ज़ाई भी की है.
अब ये सोचिए कि ये किस से छुपा है कि हुर्रियत कॉनफ्रेंस का एक बड़ा दफ्तर श्रीनगर में है और इस दफ्तर में कई कर्मचारी भी हैं. यहां नेताओं के पास गाड़ियां भी हैं और इन गाड़ियों में तेल भी जलता है. कर्मचारियों को पैसे भी मिलते हैं. तो कहां से आता है इन सबके लिए पैसा? ये या तो पाकिस्तान या फिर हिंदुस्तान सरकार ही देती होगी ना?
सरकार को सब पता है लेकिन फिर भी वो हुर्रियत नेताओं के खिलाफ कोई कार्यवाई नहीं कर रही है आखिर ऐसा क्यों? इसका जवाब ढूंढने के लिए थोड़ा इतिहास खंगालना पड़ेगा. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस 1994 में तब बनाया गया था जब...
इंडिया टुडे और आजतक के स्टिंग ऑपरेशन में हुर्रियत नेताओं की तरफ से पाकिस्तान के पैसे लेने के कबूलनामे के बाद क्या सरकार हुर्रियत के खिलाफ कोई कार्यवाई करेगी ऐसा लगता तो नहीं है.
इस महीने की 16 तारीख को इंडिया टुडे टेलीविजन और आजतक की तरफ से किये गए स्टिंग ऑपरेशन में पहली बार हुर्रियत के किसी बड़े नेता को कैमरे पर यह कबूल करते हुए देखा गया कि पाकिस्तान से कश्मीर में अशांति पैदा करने के लिए उन्हें पैसे मिलते हैं.
देश की सब से प्रमुख जाँच एजेंसी NIA भी हरकत में आयी और आनन-फानन दिल्ली से लेकर कश्मीर में सब सक्रिय हो गए. कश्मीर में हुर्रियत नेताओं के खिलाफ इस तरह सरकार पहले भी कई बार हरकत में आ चुकी है. हुर्रियत नेताओं को कई बार जेल बेजा गया और कई बार बड़ी जांच भी हुई लेकिन उस के बाद फिर अलगावादी नेताओं की सरकार ने ही इज्जत अफ़ज़ाई भी की है.
अब ये सोचिए कि ये किस से छुपा है कि हुर्रियत कॉनफ्रेंस का एक बड़ा दफ्तर श्रीनगर में है और इस दफ्तर में कई कर्मचारी भी हैं. यहां नेताओं के पास गाड़ियां भी हैं और इन गाड़ियों में तेल भी जलता है. कर्मचारियों को पैसे भी मिलते हैं. तो कहां से आता है इन सबके लिए पैसा? ये या तो पाकिस्तान या फिर हिंदुस्तान सरकार ही देती होगी ना?
सरकार को सब पता है लेकिन फिर भी वो हुर्रियत नेताओं के खिलाफ कोई कार्यवाई नहीं कर रही है आखिर ऐसा क्यों? इसका जवाब ढूंढने के लिए थोड़ा इतिहास खंगालना पड़ेगा. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस 1994 में तब बनाया गया था जब कश्मीर में चरमपंथियों की बंदूकों का बोल-बाला था और पाकिस्तान की सलाह पर चरमपंथियों की पॉलिटिकल बात को आगे रखने के लिए हुर्रियत का गठन हुआ. कुछ साल बाद भारत सरकार ने हुर्रियत को तब मान्यता दी जब कारगिल युद्ध के बाद पाकिस्तान के साथ एनडीए सरकार ने पाकिस्तान के साथ रिश्ते बेहतर करने की पहल की.
आगरा समिट में तब पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री वाजपेयी के साथ बैठक की थी. इससे पहले की मुशर्रफ वाजपेयी से मिलते उनकी मुलाकात हुर्रियत नेताओं से हुई थी. इसके बाद ही हुर्रियत नेताओं को पाकिस्तानी दौरे की इजाजत भी दी गई थी. तब से लेकर अब तक केंद्र सरकार का रुख हुर्रियत के नेताओं के लिए एक जैसा रहा है और जम्मू कश्मीर की पीडीपी भाजपा राज्यसरकार की कमान मिनिमम प्रोग्राम में दोनों राजनीतिक दलों की सहमति से संभाली है.
इस बीच जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती लगातार प्रधानमंत्री से कई बार गुहार भी लगा चुकी हैं कि हुर्रियत से बात चीत की प्रक्रिया शुरू की जाए और उसपर काम भी चल रहा है. इसी बीच इंडिया टुडे और आजतक के स्टिंग ऑपरेशन के बाद नेता अपना बयान तो दोहरा रहे हैं, लेकिन ऐसे हालात में हुर्रियत खिलाफ कोई कार्यवाई होगी ये कम ही नजर आता है.
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