राहुल गाँधी को कांग्रेस का मुखिया बनाने को लेकर चर्चा जोरों पर है. अंतिम फैसला सोनिया गाँधी लेंगी. पार्टी कार्यसमिति ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से पार्टी की कमान राहुल को थमाने की पहली बार औपचारिक सिफारिश कर दी है. लेकिन कांग्रेस के अंदर क्या चल रहा हैं यह कोई ना ही जान सकता है और न ही इसे प्रकट किया जा सकता है, ना ही इसकी इजाजत है, पूर्व में कई नेता बोलने के लिए भुगत चुके हैं.
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राहुल गाँधी को जब जनवरी 2013 में पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया था तब उनसे बड़ी बड़ी उम्मीदें थी. परंतु वे इन अपेक्षाओं पर कभी भी खरे नहीं उतर पाए पिछले तीन साल और 10 माह से कुछ अधिक समय को अगर देखा जाय तो उनके उपाध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस - जनता के बीच अपनी पैठ खोती ही चली गई. अब उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब चुनाव से ठीक पहले अगर कांग्रेस राहुल को अध्यक्ष बनाती है तो फिलहाल सभी के लिए यह बल्ले बल्ले वाली स्तिथि होगी लेकिन पार्टी को अपनी गलती तब समझ में आएगी जब इन राज्यों के नतीजे उसके सामने होंगे.
राहुल की ताजपोशी महज औपचारिकता? |
सोनिया गाँधी मार्च 1998 में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी थीं तब पार्टी की स्थिति कुछ आज की ही तरह थी. धीरे-धीरे सोनिया आगे बढ़ती गई. उन्होंनें कांग्रेस की खोई हुई प्रतिष्ठा को सम्मानजनक स्थिति तक पहुंचाया व देश पर राज किया. लेकिन आज...
राहुल गाँधी को कांग्रेस का मुखिया बनाने को लेकर चर्चा जोरों पर है. अंतिम फैसला सोनिया गाँधी लेंगी. पार्टी कार्यसमिति ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से पार्टी की कमान राहुल को थमाने की पहली बार औपचारिक सिफारिश कर दी है. लेकिन कांग्रेस के अंदर क्या चल रहा हैं यह कोई ना ही जान सकता है और न ही इसे प्रकट किया जा सकता है, ना ही इसकी इजाजत है, पूर्व में कई नेता बोलने के लिए भुगत चुके हैं.
इसे भी पढ़ें: राहुल जूझ रहे हैं और कांग्रेसी आपस में उलझ रहे हैं
राहुल गाँधी को जब जनवरी 2013 में पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया था तब उनसे बड़ी बड़ी उम्मीदें थी. परंतु वे इन अपेक्षाओं पर कभी भी खरे नहीं उतर पाए पिछले तीन साल और 10 माह से कुछ अधिक समय को अगर देखा जाय तो उनके उपाध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस - जनता के बीच अपनी पैठ खोती ही चली गई. अब उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब चुनाव से ठीक पहले अगर कांग्रेस राहुल को अध्यक्ष बनाती है तो फिलहाल सभी के लिए यह बल्ले बल्ले वाली स्तिथि होगी लेकिन पार्टी को अपनी गलती तब समझ में आएगी जब इन राज्यों के नतीजे उसके सामने होंगे.
राहुल की ताजपोशी महज औपचारिकता? |
सोनिया गाँधी मार्च 1998 में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी थीं तब पार्टी की स्थिति कुछ आज की ही तरह थी. धीरे-धीरे सोनिया आगे बढ़ती गई. उन्होंनें कांग्रेस की खोई हुई प्रतिष्ठा को सम्मानजनक स्थिति तक पहुंचाया व देश पर राज किया. लेकिन आज 18 साल बाद फिर कांग्रेस उसी दोराहे पर खड़ी है. सोनिया गाँधी के लिए एक तरफ पुत्र मोह हैं तो दूसरी तरफ पार्टी. पुत्र को अध्यक्ष बनाती हैं और राहुल अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते तो इसका खामिजाना पार्टी को भरना होगा.
राहुल गाँधी राजनीति के पैमाने पर कभी खरे नहीं उतरे. इसी कारण समय समय पर चर्चा पार्टी के अंदर और बाहर उठती रही हैं कि प्रियंका को राजनीति में आना चाहिए. परंतु किस वजह से उन्हें कांग्रेस में सक्रिय राजनीति से दूर रखा जा रहा हैं यह तो सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी ही बता सकते हैं. प्रियंका का कांग्रेस के लिए सक्रिय राजनीति में न आना कांग्रेस का दुर्भाग्य ही है. कारण चाहे उनके पति रॉबर्ट जो कि लगातार विवादों मैं रहे हैं ही क्यों न हो?
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वर्तमान लोक सभा में कांग्रेस के पास मात्र 45 सांसद है. राज्यों में केवल कर्नाटक को छोड़कर बाकी के 6 स्टेट बहुत ही छोटे राज्य हैं(उत्तराखंड ,हिमाचल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, पुड्डुचेरी) जहां कांग्रेस सत्ता पर काबिज़ है. इसके अलावा वह बिहार की साझा सरकार में भी शामिंल है.
19 नवंबर 2016 को इंदिरा गांधी का जन्मदिन हैं. इस दिन या तो राहुल को पार्टी का अध्यक्ष घोषित किया जा सकता है या फिर यह काम 9 दिसम्बर 2016 को सोनिया गाँधी के का जन्म दिन के मौके पर किया जा सकता है. अब सोनिया गाँधी इनमें से एक दिन का चुनाव कर सकती हैं नहीं तो एक बार फिर इस निर्णय को उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के विधान सभा चुनावों तक टाल सकती हैं.
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