लोक प्रहरी नाम की एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है. इसमें मांग की गई है कि कोर्ट आदेश दे कि नामांकन के समय प्रत्याशी अपनी और अपने परिवार की आय के स्रोत का खुलासा भी करें. सीबीडीटी ने सुप्रीम कोर्ट में एक शपथपत्र पेश किया है. इसमें ऐसे नेताओं की सूची दी गई है जिनकी संपत्ति दो चुनावों के बीच 500 फीसदी बढ़ी है.
13 सितम्बर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कई सवाल पूछे. जस्टिस जे चेल्मेश्वर और अब्दुल नजीर की पीठ ने पूछा कि- "ऐसे नेताओं को आयकर कानून के तहत ही क्यों ट्राई किया जा रहा है? इसमें आपराधिक मामला क्यों नहीं चलना चाहिए? विशेष अदालत में फास्ट ट्रायल क्यों नहीं किया जाना चाहिए? जनता को पता चलना चाहिए कि उनके पास इतनी संपत्ति कहां से और कैसे आई." सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि- "अगर ये नेता कहते हैं कि वे बिजनेस करते हैं. जिससे उनकी संपत्ति बढ़ी है. तो सवाल यह है कि वे जनप्रतिनिधि रहते हुए बिजनेस कैसे कर सकते हैं? उनकी संपत्ति की घोषणा करना ही काफी नहीं है. बल्कि उसकी जांच भी होनी चाहिए. और केवल आयकर कानून के तहत कार्रवाई नाकाफी है."
लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी. अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि- "सीबीडीटी बेहिसाब संपत्ति की जांच करती रहती है. और इसके लिए उसे निर्देश देने की जरूरत नहीं होती."
सवाल यह उठता है की सुप्रीम कोर्ट तो नेताओं के बेहिसाब संपत्ति की जांच के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की वकालत कर रही है. लेकिन खुद सरकार इसके लिए तैयार नहीं है. आखिर क्यों? इन नेताओं को सरकार क्यों बचाना चाहती है? PA सरकार के भ्रष्टाचार के विरोध में सत्ता में आये नरेंद्र मोदी की सरकार क्या खुद ये लड़ाई ईमानदारी से नहीं लड़ रही है?
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि-...
लोक प्रहरी नाम की एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है. इसमें मांग की गई है कि कोर्ट आदेश दे कि नामांकन के समय प्रत्याशी अपनी और अपने परिवार की आय के स्रोत का खुलासा भी करें. सीबीडीटी ने सुप्रीम कोर्ट में एक शपथपत्र पेश किया है. इसमें ऐसे नेताओं की सूची दी गई है जिनकी संपत्ति दो चुनावों के बीच 500 फीसदी बढ़ी है.
13 सितम्बर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कई सवाल पूछे. जस्टिस जे चेल्मेश्वर और अब्दुल नजीर की पीठ ने पूछा कि- "ऐसे नेताओं को आयकर कानून के तहत ही क्यों ट्राई किया जा रहा है? इसमें आपराधिक मामला क्यों नहीं चलना चाहिए? विशेष अदालत में फास्ट ट्रायल क्यों नहीं किया जाना चाहिए? जनता को पता चलना चाहिए कि उनके पास इतनी संपत्ति कहां से और कैसे आई." सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि- "अगर ये नेता कहते हैं कि वे बिजनेस करते हैं. जिससे उनकी संपत्ति बढ़ी है. तो सवाल यह है कि वे जनप्रतिनिधि रहते हुए बिजनेस कैसे कर सकते हैं? उनकी संपत्ति की घोषणा करना ही काफी नहीं है. बल्कि उसकी जांच भी होनी चाहिए. और केवल आयकर कानून के तहत कार्रवाई नाकाफी है."
लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी. अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि- "सीबीडीटी बेहिसाब संपत्ति की जांच करती रहती है. और इसके लिए उसे निर्देश देने की जरूरत नहीं होती."
सवाल यह उठता है की सुप्रीम कोर्ट तो नेताओं के बेहिसाब संपत्ति की जांच के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की वकालत कर रही है. लेकिन खुद सरकार इसके लिए तैयार नहीं है. आखिर क्यों? इन नेताओं को सरकार क्यों बचाना चाहती है? PA सरकार के भ्रष्टाचार के विरोध में सत्ता में आये नरेंद्र मोदी की सरकार क्या खुद ये लड़ाई ईमानदारी से नहीं लड़ रही है?
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि- "रिकॉर्ड बता रहा है कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का काम संतोषजनक नहीं है." न्यायालय ने कहा कि- "वोहरा समिति ने काफी पहले ही बता दिया है की MP और MLA के खिलाफ मामलों की प्रगति बहुत ही धीमी गति से होती है." उसने पूछा की क्या यह उचित समय नहीं है कि- "इन से निपटने के लिए प्रभावी तंत्र बनाया जाए?"
पर पता नहीं सरकार किस आधार पर कह रही है कि- "सीबीडीटी बेहिसाब संपत्ति की जांच करती रहती है." सरकार को क्यों लग रहा है की नेताओं के भ्रष्टाचार के लिए फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट की जरुरत नहीं है? मोदी सरकार के इस स्टैंड के विपरीत, राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग नेताओं की संपत्ति की जांच के लिए अलग से फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन करने की मांग कर रही है. पर सरकार इससे सहमत नहीं दिखाई दे रही है. भाजपा कहती है कि- "मनमोहन सिंह के 10 साल भारत के प्रधानमंत्री काल में थल, जल, नभ, पाताल, वायु हर जगह भ्रष्टाचार हुए. 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल, आदर्श सोसाईटी घोटाला, कोयला खान आवंटन घोटाला. घोटालों की लम्बी फेरहिस्त ने लोगों को भी ये मानने को मजबूर कर दिया कि उनकी सरकार पूरी तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त है. इस सरकार से ऊब चुकी जनता ने भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने के लिए मोदी को प्रधान मंत्री बनाया. मोदी सरकार को सत्ता में आए लगभग साढ़े तीन साल हो गए. पर अभी तक एक भी भ्रष्टाचार में लिप्त नेता को मोदी सरकार सजा दिलवाने में सफल नहीं हो पाई है. दूर-दूर तक इसकी कहीं कोई संभावना भी नहीं दिखाई दे रही है.
मनमोहन सरकार के भ्रष्टाचार से अगर कुछ लोगों ने पर्दा हटाया और लोगों के जनमानस को झकझोरा था. उनमे से प्रमुख थे अन्ना हज़ारे. उन्होंने लोकपाल के गठन के लिए साल 2011-12 में आंदोलन किया था. यह पद उच्च सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार की शिकायतें सुनने एवं उस पर कार्यवाही करने के लिए प्रस्तावित है. 27 अगस्त 2011 के दिन संसद में 'Sense of the House' से रिजॉलूशन पास किया गया था. इसमें केंद्र में लोकपाल पर जल्द से जल्द कानून बनाने का निर्णय किया गया था. उस आंदोलन की हवा ने मोदी को दिल्ली की तख़्त पर बैठा दिया. पर लगता है कि- प्रधान मंत्री संसद के उस प्रस्ताव को भूल गए और आज भी लोकपाल अस्तित्व में नहीं आया है.
सरकार के रुख से निराश अन्ना हजारे एक बार फिर आंदोलन के मूड में हैं. प्रधानमंत्री मोदी को लोकपाल की नियुक्ति को लेकर लिखी गई उनकी चिट्ठियों पर कोई जवाब नहीं मिला. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अन्ना इस आंदोलन की शुरुआत अगले साल कर सकते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में कहा था कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में इतने भ्रष्टाचार हुए, लेकिन उन पर एक दाग़ तक नहीं लगा. मोदी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि बाथरूम में रेनकोट पहनकर नहाने की कला तो कोई डॉक्टर साहब से सीखे. पता नहीं मोदी ने उनसे ये कला सीखी या नहीं. पर उनकी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई अभी भी डॉक्टर साहेब के जैसी ही दिखाई दे रही है. अब तक के मोदी सरकार के रुख से लगता है कि इनकी सरकार भी मनमोहन सरकार के पद चिन्हों पर चलते हुए उसी की तरह भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है.
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