हाल ही में खत्म हुआ राज्यसभा चुनाव कांग्रेस नेता अहमद पटेल के लिए टी20 मैच की तरह था जिसमें जीत किसकी होगी इसकी भविष्यवाणी नामुमकिन थी. लेकिन फिर भी इस मैच के मैन ऑफ मैच खुद पटेल नहीं थे बल्कि गुजरात विधानसभा में विपक्ष के नेता शक्तिसिंह गोहिल थे. जिन्होंने समय रहते शंकर सिंह वाघेला के दो समर्थकों द्वारा किए गए घपले पर उंगली उठाई थी.
गांधीनगर के स्वर्णिम संकुल के बाहर कांग्रेस के विधायकों का जश्न देखने लायक था. जिन 43 विधायकों ने पटेल को जीताने में अंत तक कांग्रेस का साथ दिया उन्हें अच्छे से पता था कि अहमद पटेल की हार कांग्रेस समर्थकों के मनोबल को गिरा देता जो आने वाले विधानसभा चुनावों में घातक साबित होती. कई सालों बाद लोगों ने राज्य के कांग्रेस नेतृत्व को एकजुट होते देखा. ऐसे में अहमद पटेल की ये जीत पार्टी के भविष्य के लिए बहुत मायने रखती है. लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिए कि विधानसभा चुनाव और राज्यसभा चुनावों में जमीन आसमान का अंतर होता है.
कांग्रेस ने कड़ी टक्कर के बाद ये मैच तो जीत लिया लेकिन विधानसभा चुनाव टेस्ट मैच सरीखे होते हैं. वहां लोगों के धैर्य, स्किल और नेट प्रैक्टिस में बहाए गए पसीने पर परफॉर्मेंस और जीत निर्भर करती है. हालांकि बीजेपी राज्यसभा में मात खा गई है लेकिन विधानसभा चुनावों के लिए वो कमर कसकर तैयार हैं. वहीं कांग्रेस में अभी तैयारी का आभाव है.
बाहर से देखने पर ये कहा जा सकता है कि कांग्रेस के लिए ये बेस्ट समय है जब वो विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मात दे सकती है. यही वो समय है जिसका इंतजार कांग्रेस 20 सालों से कर रही थी. बीजेपी के पास राज्य में पार्टी और सरकार का नेतृत्व करने के लिए कोई बड़ा नाम नहीं है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह के दिल्ली शिफ्ट हो जाने से बीजेपी के स्थानीय नेताओं...
हाल ही में खत्म हुआ राज्यसभा चुनाव कांग्रेस नेता अहमद पटेल के लिए टी20 मैच की तरह था जिसमें जीत किसकी होगी इसकी भविष्यवाणी नामुमकिन थी. लेकिन फिर भी इस मैच के मैन ऑफ मैच खुद पटेल नहीं थे बल्कि गुजरात विधानसभा में विपक्ष के नेता शक्तिसिंह गोहिल थे. जिन्होंने समय रहते शंकर सिंह वाघेला के दो समर्थकों द्वारा किए गए घपले पर उंगली उठाई थी.
गांधीनगर के स्वर्णिम संकुल के बाहर कांग्रेस के विधायकों का जश्न देखने लायक था. जिन 43 विधायकों ने पटेल को जीताने में अंत तक कांग्रेस का साथ दिया उन्हें अच्छे से पता था कि अहमद पटेल की हार कांग्रेस समर्थकों के मनोबल को गिरा देता जो आने वाले विधानसभा चुनावों में घातक साबित होती. कई सालों बाद लोगों ने राज्य के कांग्रेस नेतृत्व को एकजुट होते देखा. ऐसे में अहमद पटेल की ये जीत पार्टी के भविष्य के लिए बहुत मायने रखती है. लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिए कि विधानसभा चुनाव और राज्यसभा चुनावों में जमीन आसमान का अंतर होता है.
कांग्रेस ने कड़ी टक्कर के बाद ये मैच तो जीत लिया लेकिन विधानसभा चुनाव टेस्ट मैच सरीखे होते हैं. वहां लोगों के धैर्य, स्किल और नेट प्रैक्टिस में बहाए गए पसीने पर परफॉर्मेंस और जीत निर्भर करती है. हालांकि बीजेपी राज्यसभा में मात खा गई है लेकिन विधानसभा चुनावों के लिए वो कमर कसकर तैयार हैं. वहीं कांग्रेस में अभी तैयारी का आभाव है.
बाहर से देखने पर ये कहा जा सकता है कि कांग्रेस के लिए ये बेस्ट समय है जब वो विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मात दे सकती है. यही वो समय है जिसका इंतजार कांग्रेस 20 सालों से कर रही थी. बीजेपी के पास राज्य में पार्टी और सरकार का नेतृत्व करने के लिए कोई बड़ा नाम नहीं है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह के दिल्ली शिफ्ट हो जाने से बीजेपी के स्थानीय नेताओं का सामना करना आसान है. 2007 के बाद से मोदी जो नेतृत्व बीजेपी को प्रदान कर रहे थे उसका अब पार्टी में अभाव है और मुख्यमंत्री विजय रुपानी में नरेंद्र मोदी की तरह का आकर्षण नहीं है.
केंद्र में बीजेपी की सरकार होने के बाद अब ये लोग 'गुजराती अस्मिता' नारा भी नहीं दे सकते जिसके बल पर वो केंद्र में कांग्रेस की सरकार के समय चुनावों में उतरते रहे हैं. साथ ही हार्दिक पटेल और दलित नेता जिग्नेश मेवानी जैसे लोगों के उदय ने बीजेपी की डगर और कठिन कर दी है. इतना साफ मैदान होने के बावजूद कांग्रेस के लिए गुजरात में जीतना आसान नहीं होगा.
स्थानीय चुनावों में बीजेपी को बढ़त मिली थी. भले ही कांग्रेस ने जिला पंचायत चुनावों में 31 में से 23 सीटों और पंचायत चुनावों में 193 में से 113 सीटों पर जीत दर्ज की थी लेकिन शहरी मतदाताओं पर बीजेपी का डंका बोलता है. अहमदाबाद, सूरत, राजकोट, वडोदरा, भावनगर और जामनगर में म्यूनसिपालटी चुनावों में बीजेपी ने न सिर्फ बड़ी जीत दर्ज की थी बल्कि छोटे शहरों के 56 में से 40 सीटों पर भी कब्जा कर लिया था. विधानसभा के 182 सीटों में से 67 शहरी सीटों और 20 छोटे शहरी सीटों के साथ जीत अभी भी कांग्रेस की झोली से दूर ही दिखाई देती है.
2012 के विधानसभा चुनावों में 71.32 प्रतिशत मतदान हुआ था और इसमें शहरी क्षेत्रों में बीजेपी का ही परचम लहराया था. सूरत में बीजेपी ने 16 में से 15 सीटों पर जीत दर्ज की थी. अहमदाबाद के 17 में से 15 सीटों और राजकोट के 4 में से 3 सीटों पर जीत दर्ज की थी. गांधीनगर की दोनों सीटों, वडोदरा के पांचों सीट और भावनगर के दोनों सीटों पर भी बीजेपी ने ही जीत दर्ज की थी.
शहरी वोटरों ने दिखा दिया था कि वो बीजेपी से ज्यादा मोदी के आकर्षण पाश में बंधे हैं. हालांकि आदिवासी क्षेत्रों में बीजेपी को 41 में से सिर्फ 18 सीटें ही मिली थीं. वहीं कांग्रेस ने क्षत्रिय, हरीजन, आदिवासी और मुस्लिम वोट बैंक को अपने साथ बांधे रखने में सफलता जरुर पाई थी. लेकिन बीजेपी का साथ पटेल समुदाय ने खुलकर दिया था.
2012 के चुनावों में मोदी ने विकास का एजेंडा अपनाया था और शहरी लोगों ने इसका साथ दिया था. माना जा रहा है कि इस बार भी बीजेपी इसी मुद्दे को भुनाने की कोशिश करेगी. राज्य के उत्तरी इलाकों में बाढ़ के कहर के बाद ये साफ देखा जा सकता है कि टीवी पर राज्य सरकार अपने द्वारा किए गए कामों का खुब प्रचार कर रही है. इसके जरिए वो राज्य की शहरी जनता को संदेश देना चाह रहे हैं कि मोदी के पीएम बनने के बाद भी राज्य बीजेपी में वही जज्बा कायम है.
मोदी ने भी चुनाव प्रचार शुरु कर दिया है. सूरत और राजकोट में कुछ महीने पहले किए गए अपने रैली के द्वारा मोदी राज्य की जनता तक ये संदेश पहुंचाना चाह रहे हैं कि गुजरात अभी भी उनके लिए महत्वपूर्ण है. और प्रदेश के प्रति अपने उत्तरदायित्व को हर संभव निभाएंगे.
दूसरी तरफ कांग्रेस अभी भी राज्य में बीजेपी को मात देने के लिए एक रणनीति खोज रही है. वो ग्रामीण क्षेत्रों को अपने साथ रखने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं. लेकिन शहरी मतदाताओं को रिझाने के लिए अभी भी उनके पास कोई प्लान नहीं है. और यही शहरी मतदाता चुनाव में महत्वपूर्ण कड़ी साबित होंगे.
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