तमिलनाडु और यूपी की सियासत में जो बात कॉमन है वो ये कि एक जगह जयललिता और करुणानिधि हैं तो दूसरी जगह मायावती और मुलायम सिंह यादव की पार्टियां - बीएसपी और समाजवादी पार्टी.
अब अगर जयललिता और मायावती की तुलना करें तो भी कई बातें कॉमन नजर आती हैं - मसलन, दोनों की लाइफस्टाइल, भ्रष्टाचार के आरोप और वोट बैंक पर पकड़.
नेता और कार्यकर्ता
अपने समर्थकों के बीच जयललिता अम्मा हैं तो मायावती बहन जी. अम्मा के सपोर्टर उनकी एक झलक देख कर ही खुश हो जाते हैं तो बहन जी के समर्थक इस बात से कि उनकी हैसियत भी देश के दूसरे नेताओं के बराबर है.
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एआईएडीएमके कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक को जयललिता के सामने जमीन पर लेटे देखा जाता है. यहां तक कि जयललिता के जेल जाने की सूरत में तमिलनाडु की कुर्सी संभालने वाले ओ पनीरसेल्वम भी वैसे ही नतमस्तक देखे जाते हैं.
अब मायावती की बारी... |
मायावती के सामने भी उनके नेता और कार्यकर्ताओं की स्थिति कमोवेश वैसी ही होती है, जिसकी कुछ तकनीकी वजह बतायी जाती है. अरसे से परंपरा रही है कि मायावती जहां होती हैं वहां सिर्फ एक ही कुर्सी होती हैं जिस पर वो खुद बैठी होती हैं लिहाजा जो भी नेता या कार्यकर्ता मिलने पहुंचता है उसे खड़े रहना पड़ता है. हालांकि, 2012 में विधानसभा और 2014 में लोक सभा की हार के बाद स्थिति काफी बदली हुई बतायी जा रही है.
तमिलनाडु और यूपी की सियासत में जो बात कॉमन है वो ये कि एक जगह जयललिता और करुणानिधि हैं तो दूसरी जगह मायावती और मुलायम सिंह यादव की पार्टियां - बीएसपी और समाजवादी पार्टी.
अब अगर जयललिता और मायावती की तुलना करें तो भी कई बातें कॉमन नजर आती हैं - मसलन, दोनों की लाइफस्टाइल, भ्रष्टाचार के आरोप और वोट बैंक पर पकड़.
नेता और कार्यकर्ता
अपने समर्थकों के बीच जयललिता अम्मा हैं तो मायावती बहन जी. अम्मा के सपोर्टर उनकी एक झलक देख कर ही खुश हो जाते हैं तो बहन जी के समर्थक इस बात से कि उनकी हैसियत भी देश के दूसरे नेताओं के बराबर है.
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एआईएडीएमके कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक को जयललिता के सामने जमीन पर लेटे देखा जाता है. यहां तक कि जयललिता के जेल जाने की सूरत में तमिलनाडु की कुर्सी संभालने वाले ओ पनीरसेल्वम भी वैसे ही नतमस्तक देखे जाते हैं.
अब मायावती की बारी... |
मायावती के सामने भी उनके नेता और कार्यकर्ताओं की स्थिति कमोवेश वैसी ही होती है, जिसकी कुछ तकनीकी वजह बतायी जाती है. अरसे से परंपरा रही है कि मायावती जहां होती हैं वहां सिर्फ एक ही कुर्सी होती हैं जिस पर वो खुद बैठी होती हैं लिहाजा जो भी नेता या कार्यकर्ता मिलने पहुंचता है उसे खड़े रहना पड़ता है. हालांकि, 2012 में विधानसभा और 2014 में लोक सभा की हार के बाद स्थिति काफी बदली हुई बतायी जा रही है.
वोटर कनेक्शन
जयललिता को अपने वोट बैंक पर पकड़ बनाए रखने के लिए अम्मा नमक और कैंटीन से लेकर तमाम वेलफेयर स्कीम चलानी पड़ती है. इस बार तो जीतने के लिए उन्हें और भी वादे करने पड़े - तब कहीं जाकर उन्हें दोबारा सत्ता में लौटने का रिकॉर्ड बनाने का मौका मिला.
मायावती को इस तरह का मौका पाने के लिए भी अभी छह साल इंतजार करना होगा. पहले तो साल भर बाद चुनाव जीत कर सत्ता में पहुंचना होगा और फिर पांच साल बाद दोबारा सत्ता हासिल करने की कोशिश करनी होगी.
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दलित वोट बैंक पर तो मायावती की बहुत ही मजबूत पकड़ है, बाकी के लिए वो सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला अपनाती हैं. इस बार तो वो दम यानी दलित-मुस्लिम गठजोड़ को अमल में लाने की कोशिश में जुटी हैं. वो जानती हैं कि उन्हें अपने वोटर से कैसे कनेक्ट होना है.
जहां तक मायावती के दलित वोट बैंक की बात है उन्हें जोड़े रखने के लिए जयललिता की तरह पापड़ नहीं बेलने पड़ते. वो जगह-जगह पार्क बनाकर उसमें पत्थर के हाथी और अपनी ही मूर्तियां लगाकर ही उन्हें संतुष्ट कर देती हैं. वो दलितों के मुद्दे राष्ट्रीय स्तर पर उठाती हैं तो उनके समर्थकों को लगता है कि वे ही उनकी एकमात्र आवाज हैं.
भ्रष्टाचार के आरोप
जयललिता और मायावती दोनों को आय से अधिक संपत्ति के मामलों से जूझना पड़ा है, लेकिन इस बात से न तो जया के समर्थकों पर कोई फर्क पड़ता है न मायावती के दलित वोट बैंक पर.
अम्मा का सपोर्टर जहां पोएस गार्डन में उनके आलीशान बंगले को दूर से ही देख कर खुश हो जाता है, तो मायावती का सपोर्टर उन्हें हेलीकॉप्टर में उड़ते देखकर खुद को जुड़ा हुआ महसूस करने लगता है.
जयललिता को कर्नाटक की अदालत से सजा हुई तो जेल चली गईं. फिर हाई कोर्ट से बरी हुईं तो वापस सीएम की कुर्सी संभाल लीं. चुनाव हुआ तो जीत कर रिकॉर्ड भी कायम कर लिया.
अब विकीलीक्स के हवाले से ढोल पीट-पीट कर भी बताया जाए कि मायावती ने अपने लिए सैंडल लाने के लिए मुंबई हेलीकॉप्टर भेज दिया था तो भी उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता.
कोई गठबंधन नहीं
चुनावी गठबंधन को लेकर भी जया और माया में समानता देखने को मिलती है. उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार को बीएसपी विधायकों के सपोर्ट के बाद जब गठबंधन के कयास लगाए जाने लगे तो मायावती ने साफ कर दिया कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला.
तमिलनाडु चुनावों से काफी पहले जयललिता ने कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन में कहा था कि गठबंधन को लेकर सही वक्त पर सही फैसला लिया जाएगा. तब तक कभी कोई और तो कभी बीजेपी की ओर से जयललिता के साथ अलाएंस की बातचीत चलती रही - लेकिन जया ने उनके लिए नो एंट्री का बोर्ड लगा दिया. ऐसा भी नहीं जया ने कोई गठबंधन ही नहीं किया. जया ने बड़ी ही सोची समझी रणनीति के तहत छोटे छोटे दलों के साथ गठबंधन किया लेकिन उन्हें इस बात के लिए राजी कर लिया कि वे एआईएडीएमके के ही सिंबल पर चुनाव लड़ेंगे. नतीजा सामने है.
मायावती भी काफी दिनों से एक एक सीट पर खुद ही उम्मीदवार का चयन कर रही हैं जैसे जयललिता ने किया. दोनों ही पार्टियों में दूसरी पंक्ति का कोई नेता नहीं है. एक जगह जयललिता हैं तो दूसरी जगह मायावती जो या तो खुद फैसले करती हैं या उनसे पूछ कर फैसलों पर मुहर लगाई जाती है.
जयललिता ने इस बार एमजीआर के जमाने के पुराने साथियों को भी साथ लिया था. राज्य सभा और विधान परिषद के लिए उम्मीदवारों के चयन के साथ ही मायावती भी कुछ ऐसी ही कोशिश कर रही हैं. जयललिता ने अपना कमाल दिखा दिया, अब मायावती की बारी है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.