अगर हंगामा खड़ा करना ही मकसद है तो बात ही और है. लालू प्रसाद की पटना रैली पहले जितना सोनिया गांधी और मायावती के न आने को लेकर चर्चित रही, बाद में उससे कहीं ज्यादा भीड़ की फोटोशॉप तस्वीर को लेकर रही.
मायावती जहां रैली के नेटवर्क से पूरी तरह दूर रहीं, वहीं सोनिया गांधी ने रिकॉर्डेड ऑडियो भेजा तो राहुल गांधी ने टेक्स्ट मैसेज. बाकी जिन्हें आना था वे आये भी और बोले भी, मगर - ज्यादा बातें लालू परिवार की ओर से ही हुईं. वैसे भी नंबर में आगे भी वही थे.
कितने आदमी थे?
कितने आदमी थे? इस सवाल पर सवाल ये बनता है कि मंच पर या फिर मैदान में? मंच पर थे तो काफी लोग लेकिन दबदबा लालू प्रसाद के परिवार का ही रहा. खुद लालू के अलावा उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बेटी मीसा भारती के अलावा दोनों बेटे तेजस्वी और तेज प्रताप भी. आरजेडी के दूसरे नेताओं को तो रहना ही था. लालू परिवार के बाद अगर कांग्रेस ने मौजूदगी दर्ज करायी. कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद और सीपी जोशी तो पहुंचे ही थे, सोनिया और राहुल ने भी अपने संदेश भिजवाये थे.
रैली में लालू परिवार का दबदबा
रैली में अपेक्षित मौजूदगी जेडीयू के बागियों शरद यादव और अली अनवर की रही तो विशेष उपस्थिति ममता बनर्जी की भी रही. अन्य दलों के नेताओं में अखिलेश यादव, बाबू लाल मरांडी, हेमंत सोरेन, जयंत चौधरी, तारिक अनवर, डी राजा जैसे नेताओं ने भी उपस्थित होकर विपक्षी एकता के प्रति समर्थन दर्ज कराया.
ये तो रही मंच की भीड़. पटना शहर भी आरजेडी कार्यकर्ताओं से पटा पड़ा था. मगर, मैदान की भीड़ को लेकर विवाद खड़ा हो गया. हुआ ये कि लालू प्रसाद ने रैली में आई भीड़ को लेकर एक फोटो ट्वीट किया जो सोशल मीडिया पर धड़ाधड़ शेयर होने लगा.
बाद में न्यूज एजेंसी एनएनआई ने एक तस्वीर ट्वीट करते हुए बताया कि उसकी तस्वीर भी उसी जगह से ली गयी है जहां से लालू द्वारा ट्वीट फोटो लिया गया है. दिलचस्प बात ये थी कि दोनों तस्वीरों में अलग अलग भीड़ नजर आ रही थी. ये फर्क देख कर लालू की तस्वीर को फोटोशॉप द्वारा तैयार किये जाने का शक जताया जाने लगा. सोशल मीडिया पर तो लोगों ने मजाक उड़ाना भी शुरू कर दिया - ढंग से फोटोशॉप भी नहीं करा पाये!
वैसे आज तक की तस्वीर में भी लालू की रैली में खासी भीड़ नजर आई.
जैसा आज तक के कैमरे से दिखा
नीतीश और मोदी-मोदी
लालू प्रसाद की रैली में सभी नेताओं के निशाने पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रहे. तेजस्वी ने नीतीश को कहा कि वो अच्छे चाचा नहीं रहे तो अखिलेश यादव ने उन्हें 'डीएनए वाला चाचा' बताया.
अक्सर होठों पर बांसुरी लगाये सोशल मीडिया पर प्रकट होने वाले तेज प्रताप ने रैली में शंख बजाया और कहा - 'कहीं न कहीं बिहार की इस रैली को भगवान कृष्ण भी देख रहे हैं.' फिर बोले - 'मेरा अर्जुन मेरा भाई तेजस्वी है.'
तेजस्वी का भाषण भी ज्यादातर नीतीश कुमार पर ही फोकस रहा. प्रधानमंत्री मोदी का तेजस्वी ने इस तरह जिक्र किया - 'ये हर हर मोदी नहीं, बर्बर मोदी और गड़बड़ मोदी हैं.' अखिलेश यादव ने एक बार फिर पूछा - 'अच्छे दिन कहां हैं?'. अखिलेश यादव ने बिहार में आई बाढ़ के बहाने मोदी को घेरने की कोशिश की और साथ में गाय के मुद्दे को भी लपेट लिया.
अखिलेश बोले, "अगर बाढ़ में बह गये भैंस, बकरी के लिए पैसे नहीं दे सकते तो कम से कम गाय के लिए दे दें क्योंकि ये सरकार गाय की खूब बातें करती है."
पति और दोनों बेटों की तरह राबड़ी देवी भी काफी आक्रामक नजर आयीं. राबड़ी ने कहा कि नीतीश कुमार ने अपने ऊपर लगे मर्डर केस को दस साल तक छिपाये रखा. अब लोगों का सवाल ये भी तो हो सकता है कि छिपाने में तो आपकी भी उतनी ही भूमिका रही. अगर नीतीश ने छिपाये रखा तो आप अभी क्यों बता रही हैं? सहज सा सवाल उठता है. वैसे लालू ने नीतीश पर मर्डर का मुकदमा चलाये जाने की मांग की.
राबड़ी ने कहा कि नीतीश कुमार ने आज तक अकेले चुनाव नहीं लड़ा है. साथ ही चुनौती दी कि हिम्मत है तो नीतीश अकेले चुनाव लड़ कर दिखा दें. मालूम नहीं क्यों राबड़ी ने इस मौके पर एक सफाई भी दी - 'सब लोग अपने पैसे से रैली में आये हैं न कि उनकी पार्टी ने उन पर पैसे खर्च किए हैं.' मुमकिन है रैली पर हुए खर्च को लेकर कोई विवाद शुरू हो इससे पहले ही राबड़ी ये बात कही हो. डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने बाढ़ की दुहाई देकर लालू प्रसाद को रैली न करने की सलाह दी थी, लेकिन लालू ने सीधे सीधे खारिज कर दिया था.
लालू ने नीतीश को अपना प्रोडक्ट बताया और दावा किया - "मैंने मुलायम के कहने पर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया." मंच से लालू प्रसाद ने जो कुछ भी कहा ममता बनर्जी ने उसे एनडोर्स किया, 'लालू की बात पर पूरे तरीके से भरोसा किया जा सकता है.'
सोनिया और राहुल के संदेश
सोनिया और राहुल के रैली में हिस्सा न लेने को लेकर माना जा रहा था कि भ्रष्टाचार के आरोपों में लालू परिवार के घिरे होने के कारण शायद वे लोग मंच शेयर करने से बच रहे होंगे. दोनों कांग्रेस नेताओं ने मंच तो नहीं शेयर किया लेकिन अपना संदेश जरूर भिजवाया.
अपने रिकॉर्डेड ऑडियो मैसेज में सोनिया गांधी ने गोरखपुर के बीआरडी आस्पताल में हुई 60 से ज्यादा बच्चों की मौत का जिक्र किया. सोनिया ने कहा कि सत्ता में बैठे लोग समझते हैं कि जनता मूर्ख बनी रहे.
राहुल गांधी ने अपने संदेश में मौजूदा राजनीतिक हालात की बातों के साथ साथ न पहुंच पाने की वजह बतायी, "रैली में शामिल होने की दिली इच्छा थी पर नार्वे में एक आधिकारिक दौर पर होने के कारण आज मैं आपके बीच उपस्थित नहीं हो सका हूं."
बाकी बातें तो अपनी जगह हैं लेकिन लालू यादव का फोटोशॉप का आइडिया समझ से परे रहा. ऐसा भी नहीं था कि रैली में भीड़ की कमी थी, लेकिन उसे बढ़ा चढ़ा कर दिखाने के पीछे जो भी मकसद हो, ये तो साफ है कि अगर इसी तरीके से झांसा देने की कोशिश की गयी तो मायावती का उदाहरण सबके सामने है. जिस वोट बैंक के बूते लालू परिवार कूद रहा है उसका मोहभंग होते देर नहीं लगेगी. लालू को भी मायावती की तरह अपने वोटर को मूर्ख समझने की भूल नहीं करनी चाहिये.
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