शराबबंदी को लेकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के फंडे बिलकुल साफ़ हैं. उनको यह पता है कि किस मंच पर कितना और क्या क्या बोलना है कि जनता उनके भाषणों पर ताली पे ताली पीटती रहे. उनको ये बात भी अच्छी तरह से मालूम है कि शराबबंदी की बातों से महिलाओं के वोटबैंक पर कितना असर पड़ता है. इसीलिए शिवराज सिंह ने जब तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तो उन्होंने शपथ लेने के तुरंत बाद पहले भाषण में ही मंच से ऐलान कर दिया था कि वो प्रदेश में शराब की कोई भी नई दुकान नहीं खुलने देंगे. लेकिन साल भर के भीतर उनके मंत्री सब भूल गए. राजस्व विभाग ने नयी दुकानों का ऐलान कर दिया. विरोध हुआ, तो फैसला वापिस ले लिया और बढ़ी हुई देशी अंग्रजी शराब दूकानें एक कर दी गयीं.
शिवराज ने जोर देकर कहा था कि मध्यप्रदेश में नशामुक्ति का आंदोलन भी चलेगा. शिवराज सिंह के इस बयान के बाद मीडिया में हर तरफ उनके मंत्रियों ने शराबबंदी की बातें शुरू कर दीं. लेकिन प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारी दबी जुबान से ये कहते रहे कि...
शराबबंदी को लेकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के फंडे बिलकुल साफ़ हैं. उनको यह पता है कि किस मंच पर कितना और क्या क्या बोलना है कि जनता उनके भाषणों पर ताली पे ताली पीटती रहे. उनको ये बात भी अच्छी तरह से मालूम है कि शराबबंदी की बातों से महिलाओं के वोटबैंक पर कितना असर पड़ता है. इसीलिए शिवराज सिंह ने जब तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तो उन्होंने शपथ लेने के तुरंत बाद पहले भाषण में ही मंच से ऐलान कर दिया था कि वो प्रदेश में शराब की कोई भी नई दुकान नहीं खुलने देंगे. लेकिन साल भर के भीतर उनके मंत्री सब भूल गए. राजस्व विभाग ने नयी दुकानों का ऐलान कर दिया. विरोध हुआ, तो फैसला वापिस ले लिया और बढ़ी हुई देशी अंग्रजी शराब दूकानें एक कर दी गयीं.
शिवराज ने जोर देकर कहा था कि मध्यप्रदेश में नशामुक्ति का आंदोलन भी चलेगा. शिवराज सिंह के इस बयान के बाद मीडिया में हर तरफ उनके मंत्रियों ने शराबबंदी की बातें शुरू कर दीं. लेकिन प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारी दबी जुबान से ये कहते रहे कि शराबबंदी का फैसला अमल में लाना इतना आसान नहीं है. शिवराज के इस बयान के बाद कई जिलों और कस्बों में महिलाओं ने मोर्चा भी संभाल लिया. शराब की दुकानों में तोड़फोड़ और विरोध शुरू हो गया. सरकार ने उन्हें रोका भी नहीं. जाहिर है वोट बैंक के मद्देनज़र सरकार इनको नाराज करने का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती थी.
बहरहाल, मुख्यमंत्री के बयानों ने बड़ी सुर्खियां बटोरी और ये माना जाने लगा कि शिवराज सिंह इसी साल 2 अक्टूबर को प्रदेश में शराबबंदी का ऐलान करे देंगे. क्योंकि अब चुनाव में एक साल से थोड़ा ज्यादा समय ही बचा है. लेकिन मध्यप्रदेश वरिष्ठ नेता और वित्त मंत्री जयंत मलैया ने स्पष्ट कर दिया कि प्रदेश में फिलहाल शराबबंदी लागू करने का कोई प्रस्ताव नहीं आया है. उन्होंने मीडिया के शराबबंदी लागू करने संबंधी बार-बार पूछे गए सवालों पर दो टूक कहा कि "प्रदेश सरकार के पास फिलहाल इस तरह का कोई प्रस्ताव विचाराधीन ही नहीं है."
दरअसल, प्रदेश सरकार को देशी विदेशी शराब से करीब 8000 करोड़ रु. का रिवेन्यु आता है. और सरकार की कर्जे और माली हालत किसी से छुपी नहीं है. फिलहाल मध्यप्रदेश सरकार के सिर पर सवा लाख करोड़ का कर्जा है. जिसकी वजह से यहां पेट्रोल-डीज़ल पर भी सबसे ज्यादा कर वसूला जा रहा है. जाहिर है सरकार के पास अभी इस बात का जवाब नहीं है कि शराब के रेवेन्यु की भरपाई कहां से होगी.
अब शिवराज के पास यही विकल्प है कि वे शराबबंदी को लेकर कोई भी फैसला अगले साल के चुनाव से ठीक पहले लें. जिससे एक तीर से दो निशाने साधे जा सके. शिवराज के दिल में शराबबंदी और नशा मुक्ति का जूनून भले ही हो. लेकिन जब तक सरकार की कथनी और करनी एक नहीं होगी. तब तक जनता उनपर यकीन नहीं करेगी.
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