नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव अभियान में कांग्रेस मुक्त भारत का जो नारा दिया था उस पर अमल तो लगातार हो रहा है - मगर, थोड़ा संभल कर.
पहली दस्तक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैसे तो सत्ता संभालते ही अपने इरादे जाहिर कर दिये - लेकिन कांग्रेस को ठीक से तब समझ आया जब महात्मा गांधी के नाम पर स्वच्छता अभियान शुरू हुआ. योजना आयोग नये कलेवर में नीति आयोग बन गया, जिससे सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन परोक्ष रूप से नेहरू का ही नाम जुड़ा था. एक अभियान से गांधी तो दूसरे से नेहरू के नाम को मोदी सरकार ने छुआ भर था कि कांग्रेस नेता शोर मचाने लगे. नेहरू की विरासत पर कांग्रेस का हक है, लेकिन वैसी ही दावेदारी गांधी पर भी रही है. आरोप लगा कि कांग्रेस के प्रतीक पुरुषों को प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी हथियाने की चाल चल रहे हैं.
मनमोहन सरकार में ज्यादातर सरकारी योजनाएं नेहरू-गांधी परिवार की मिल्कियत ही नजर आती थीं. बाद में कयास लगे कि उनकी जगह शायद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी या फिर बीजेपी के प्रतीक पुरुषों के नाम जोड़े जाएंगे, लेकिन आम बजट में पता चला कि सरकार जो भी कर रही है खूब सोच समझ कर - कम से कम इस मामले में तो कहा ही जा सकता है.
लेटेस्ट स्ट्रोक
मोदी सरकार ने अपने लेटेस्ट स्ट्रोक में राजीव गांधी के नाम पर चल रही कई योजनाओं के नाम बदल दिए हैं. कुछेक को छोड़ कर बदली गई किसी भी स्कीम को किसी नेता के नाम से नहीं जोड़ा गया है. ऐसा लगता है कि सरकार नये विवाद मोल लेने से पूरी तरह बच रही है.
मनमोहन सरकार में जिसे 'राजीव गांधी नेशनल फेलोशिप' के नाम से शुरू किया गया अब उसे 'नेशनल फेलोशिप फॉर स्टूडेंट्स विद डिसेबिलिटीज' नाम दिया गया है.
यूपीए सरकार में जिसे 'राजीव गांधी पंचायत सशक्तिकरण अभियान' के नाम से शुरू किया गया उसे अब 'पंचायत सशक्तिकरण अभियान' नाम दिया गया है, यानी सिर्फ राजीव गांधी का नाम हटाया गया है - कोई और नाम नहीं जोड़ा गया है.
इसी तरह 'राजीव गांधी नेशनल...
नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव अभियान में कांग्रेस मुक्त भारत का जो नारा दिया था उस पर अमल तो लगातार हो रहा है - मगर, थोड़ा संभल कर.
पहली दस्तक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैसे तो सत्ता संभालते ही अपने इरादे जाहिर कर दिये - लेकिन कांग्रेस को ठीक से तब समझ आया जब महात्मा गांधी के नाम पर स्वच्छता अभियान शुरू हुआ. योजना आयोग नये कलेवर में नीति आयोग बन गया, जिससे सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन परोक्ष रूप से नेहरू का ही नाम जुड़ा था. एक अभियान से गांधी तो दूसरे से नेहरू के नाम को मोदी सरकार ने छुआ भर था कि कांग्रेस नेता शोर मचाने लगे. नेहरू की विरासत पर कांग्रेस का हक है, लेकिन वैसी ही दावेदारी गांधी पर भी रही है. आरोप लगा कि कांग्रेस के प्रतीक पुरुषों को प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी हथियाने की चाल चल रहे हैं.
मनमोहन सरकार में ज्यादातर सरकारी योजनाएं नेहरू-गांधी परिवार की मिल्कियत ही नजर आती थीं. बाद में कयास लगे कि उनकी जगह शायद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी या फिर बीजेपी के प्रतीक पुरुषों के नाम जोड़े जाएंगे, लेकिन आम बजट में पता चला कि सरकार जो भी कर रही है खूब सोच समझ कर - कम से कम इस मामले में तो कहा ही जा सकता है.
लेटेस्ट स्ट्रोक
मोदी सरकार ने अपने लेटेस्ट स्ट्रोक में राजीव गांधी के नाम पर चल रही कई योजनाओं के नाम बदल दिए हैं. कुछेक को छोड़ कर बदली गई किसी भी स्कीम को किसी नेता के नाम से नहीं जोड़ा गया है. ऐसा लगता है कि सरकार नये विवाद मोल लेने से पूरी तरह बच रही है.
मनमोहन सरकार में जिसे 'राजीव गांधी नेशनल फेलोशिप' के नाम से शुरू किया गया अब उसे 'नेशनल फेलोशिप फॉर स्टूडेंट्स विद डिसेबिलिटीज' नाम दिया गया है.
यूपीए सरकार में जिसे 'राजीव गांधी पंचायत सशक्तिकरण अभियान' के नाम से शुरू किया गया उसे अब 'पंचायत सशक्तिकरण अभियान' नाम दिया गया है, यानी सिर्फ राजीव गांधी का नाम हटाया गया है - कोई और नाम नहीं जोड़ा गया है.
इसी तरह 'राजीव गांधी नेशनल फेलोशिप फॉर शिड्यूल्ड कास्ट' का नाम 'नेशनल फेलोशिप फॉर शिडयूल्ड कास्ट' हो गया है, जबकि 'राजीव गांधी खेल अभियान' बदल कर 'खेलो इंडिया' हो गया है.
'इंदिरा गांधी आवास योजना' और 'राजीव आवास योजना' को नये फॉर्म में 'प्रधानमंत्री आवास योजना' के नाम से जाना जा सकता है. 'राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना' का नाम तो पहले ही 'दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना' हो चुकी है.
विवादों को खींच कर गले लगाने वाली मोदी सरकार कुछ सचेत दिख रही है. शायद इसीलिए आसन्न विवादों से बचने की कोशिश कर रही है.
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