कहते है आखिरी चंद लम्हे किसी भी खेल का वो वक्त होता है जब कोई भी बाजी पलटी जा सकती है और आखिरी दौर जीतने वाला ही बाजीगर होता है. मुलायम सिंह भारतीय राजनीति के वो बाजीगर कहे जाते है जिनकी अगली चाल को बड़े बड़े सियासत दां भी नहीं भांप पाते, अपनी इसी खास पहचान को इसबार मुलायम सिंह ने अपने बेटे अखिलेश पर आजमाया है.
सियासी लड़ाई में पिछड़ने के बाद मुलायम हर हाल में भावनाओ की जंग जीतना चाहते हैं |
सोमवार रात दिल्ली से लखनऊ लौटे मुलायम ने ऐलान किया कि अखिलेश ही पार्टी की तरफ से अगले मुख्यमंत्री के उम्मीदवार होंगे. याद कीजिये, मुलायम ही वो शख्स है जिन्होंने अबतक अखिलेश यादव को अगला सीएम प्रोजेक्ट करने से सार्वजनिक तौर पर इंकार करते रहे हैं, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि दिल्ली से लौटते ही पिता के सुर बेटे के लिए बदल गए.
उत्तर प्रदेश की सियासत में इस वक्त वो दौर चल रहा है जिसमें अखिलेश और मुलायम की जंग war of nerve में तब्दील हो चुकी है. बेटा सियासी गणित में पिता को पछाड़ चुका है, पिता मुलायम, बेटे अखिलेश को सियासी हीरो तो देखना चाहते हैं लेकिन इमोशन की लड़ाई के इस आखिरी दौर को हर हाल में जीतना चाहते हैं. यही वजह है कि चुनाव आयोग में हलफनामे और काउंटर हलफनामे के बाद अब ये लड़ाई भावनाओं की जंग में तब्दील हो गई है.
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पार्टी का 90 प्रतिशत कैडर अखिलेश के साथ खड़ा है, 5 जनवरी के इस अधिवेशन...
कहते है आखिरी चंद लम्हे किसी भी खेल का वो वक्त होता है जब कोई भी बाजी पलटी जा सकती है और आखिरी दौर जीतने वाला ही बाजीगर होता है. मुलायम सिंह भारतीय राजनीति के वो बाजीगर कहे जाते है जिनकी अगली चाल को बड़े बड़े सियासत दां भी नहीं भांप पाते, अपनी इसी खास पहचान को इसबार मुलायम सिंह ने अपने बेटे अखिलेश पर आजमाया है.
सियासी लड़ाई में पिछड़ने के बाद मुलायम हर हाल में भावनाओ की जंग जीतना चाहते हैं |
सोमवार रात दिल्ली से लखनऊ लौटे मुलायम ने ऐलान किया कि अखिलेश ही पार्टी की तरफ से अगले मुख्यमंत्री के उम्मीदवार होंगे. याद कीजिये, मुलायम ही वो शख्स है जिन्होंने अबतक अखिलेश यादव को अगला सीएम प्रोजेक्ट करने से सार्वजनिक तौर पर इंकार करते रहे हैं, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि दिल्ली से लौटते ही पिता के सुर बेटे के लिए बदल गए.
उत्तर प्रदेश की सियासत में इस वक्त वो दौर चल रहा है जिसमें अखिलेश और मुलायम की जंग war of nerve में तब्दील हो चुकी है. बेटा सियासी गणित में पिता को पछाड़ चुका है, पिता मुलायम, बेटे अखिलेश को सियासी हीरो तो देखना चाहते हैं लेकिन इमोशन की लड़ाई के इस आखिरी दौर को हर हाल में जीतना चाहते हैं. यही वजह है कि चुनाव आयोग में हलफनामे और काउंटर हलफनामे के बाद अब ये लड़ाई भावनाओं की जंग में तब्दील हो गई है.
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पार्टी का 90 प्रतिशत कैडर अखिलेश के साथ खड़ा है, 5 जनवरी के इस अधिवेशन में ये भी दिख गया कि मुलायम के सभी पुराने सिपहसालार उनका खेमा छोड़ चुके हैं, लेकिन मुलायम आखिरी दम तक हार नहीं मानने की अपनी जिस फितरत के लिए जाने जाते हैं वो अब भी दिखाई दे रहा है.
मुलायम ने ये तो मान लिया कि सियासी विरासत बेटे अखिलेश के पास जा चुकी है और इसकी एक झलक उन्होंने रविवार को दिल्ली में अपने करीबियों से निजी बातचीत में ये कहकर जता दी कि मेरे साथ अब कोई नहीं, सभी अखिलेश के साथ जा चुके हैं, लेकिन बेटा उनकी सियासी जमीन और उच्च नैतिक मानदंड दोनों ले जाये ये मुलायम सिंह होने देना नहीं चाहते.
अब अखिलेश पर रहेगा पिता को अध्यक्ष मानने का दबाव |
अबतक ये मानकर चला जा रहा था कि मुलायम के भीतर किंग या किंगमेकर बनने की ख्वाहिश बची हुई है, लेकिन अब जबकि बेटे के हाथ सब जा चुका है तब मुलायम ने बेटे को सीएम प्रोजेक्ट कर वो चाल चली है जो उन्हें फिर से उस दर्जे पर ले आएगी जहां अब लोग अखिलेश यादव पर इस बात को मानने का दबाव बनाएंगे कि इस उम्र में तो उनसे अध्यक्ष पद छीनने की जिद छोड़ दें.
गौरतलब है कि सुलह की स्क्रिप्ट यहां पर आकर ठहर जाती थी जब मुलायम को अध्यक्ष बनाए रखने की मांग अखिलेश ठुकरा देते हैं. अब लोग इस बात की चर्चा जरूर करेंगे कि जब पिता ने अखिलेश को सीएम प्रोजेक्ट कर दिया तो अखिलेश यादव को भी पिता को अध्यक्ष मानने को तैयार हो जाना चाहिए.
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यहां से अखिलेश पर भावनात्मक दबाव उन हजारों पुराने समाजवादियों का भी होगा जो हर हाल में पिता पुत्र में सुलह देखना चाहते हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या अखिलेश अब भी मुलायम को राष्ट्रीय अध्यक्ष दोबारा मानने पर तैयार होंगे.
अगर अखिलेश नहीं झुकते तो समाजवादी वोटरों के बीच मुलायम के भावनात्मक बाजी जीतेंगे और अखिलेश पर सवाल उठेंगे और अगर अखिलेश झुके तो उन्हें अपने समर्थकों के बीच हारना होगा. मुलायम के इस दांव के बाद तमाम नजरें अखिलेश पर टिक गई हैं.
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