अपने में तमाम तरह की विविधता और विशेषता समेटे उत्तर प्रदेश का शुमार उन प्रदेशों में है जो अपनी विराट "राजनीतिक जमीन" के चलते सम्पूर्ण भारत में जाना जाता है. उत्तर प्रदेश, उन चुनिंदा राज्यों में से है जो जितना विशाल है, उसके राजनितिक समीकरण उतने ही पेचीदा हैं. दिल्ली की कुर्सी पर भले ही कोई बैठे मगर उसकी नजर हमेशा उत्तर प्रदेश पर रही है. दिल्ली में तख्त नशीन व्यक्ति द्वारा सदैव ही इस बात का ध्यान दिया जाता है कि भले ही वो सम्पूर्ण भारत के लोगों को आकर्षित करे या न करें मगर उसे उत्तर प्रदेश और वहां की जनता को आकर्षित करना है. कह सकते हैं यूपी से ही दिल्ली है, बिन यूपी न सिर्फ दिल्ली की बल्कि भारत की राजनीति शून्य है.
उत्तर प्रदेश में चुनाव हो चुका है, प्रदेश में कमल है, सम्पूर्ण प्रदेश केसरिया है, प्रदेश को योगी आदित्यनाथ के रूप में अपना सीएम मिल चुका है. योगी आदित्यनाथ एक ऐसे सीएम जो पूर्व में 5 बार सांसद रह चुके हैं. एक ऐसे सीएम जिनकी न सिर्फ उत्तर प्रदेश में बल्कि सम्पूर्ण भारत में जबरदस्त फ़ैन फॉलोइंग है. वो सीएम जो जब बोलता है तो कोई उसके आगे टिक नहीं पाता, वो सीएम जो अपने फायर ब्रांड व्यक्तित्व के लिए जाना जाता है.
वो सीएम जिसे उसके विरोधी हार्ड कोर हिन्दू की छवि वाले नेता के रूप में जानते हैं. वो सीएम जिसके लिए एक विशेष प्रोपेगेंडा के तहत प्रदेश के मुसलामानों को डराया जा रहा है कि अगर उन्हें प्रदेश में रहना है तो योगी-योगी कहना है. अब इन सारी बातों पर गौर करें तो मिलता है कि हकीकत कहीं अलग है और शायद योगी के उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य का मुख्य मंत्री बनने के पीछे प्रदेश के मुसलमानों का भी अहम योगदान है.
2011 की जनगणना से मिले डाटा के अनुसार उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 199,581,477 है. जिसमें से मुस्लिमों का प्रतिशत करीब 18% के आस पास है. यदि प्रदेश...
अपने में तमाम तरह की विविधता और विशेषता समेटे उत्तर प्रदेश का शुमार उन प्रदेशों में है जो अपनी विराट "राजनीतिक जमीन" के चलते सम्पूर्ण भारत में जाना जाता है. उत्तर प्रदेश, उन चुनिंदा राज्यों में से है जो जितना विशाल है, उसके राजनितिक समीकरण उतने ही पेचीदा हैं. दिल्ली की कुर्सी पर भले ही कोई बैठे मगर उसकी नजर हमेशा उत्तर प्रदेश पर रही है. दिल्ली में तख्त नशीन व्यक्ति द्वारा सदैव ही इस बात का ध्यान दिया जाता है कि भले ही वो सम्पूर्ण भारत के लोगों को आकर्षित करे या न करें मगर उसे उत्तर प्रदेश और वहां की जनता को आकर्षित करना है. कह सकते हैं यूपी से ही दिल्ली है, बिन यूपी न सिर्फ दिल्ली की बल्कि भारत की राजनीति शून्य है.
उत्तर प्रदेश में चुनाव हो चुका है, प्रदेश में कमल है, सम्पूर्ण प्रदेश केसरिया है, प्रदेश को योगी आदित्यनाथ के रूप में अपना सीएम मिल चुका है. योगी आदित्यनाथ एक ऐसे सीएम जो पूर्व में 5 बार सांसद रह चुके हैं. एक ऐसे सीएम जिनकी न सिर्फ उत्तर प्रदेश में बल्कि सम्पूर्ण भारत में जबरदस्त फ़ैन फॉलोइंग है. वो सीएम जो जब बोलता है तो कोई उसके आगे टिक नहीं पाता, वो सीएम जो अपने फायर ब्रांड व्यक्तित्व के लिए जाना जाता है.
वो सीएम जिसे उसके विरोधी हार्ड कोर हिन्दू की छवि वाले नेता के रूप में जानते हैं. वो सीएम जिसके लिए एक विशेष प्रोपेगेंडा के तहत प्रदेश के मुसलामानों को डराया जा रहा है कि अगर उन्हें प्रदेश में रहना है तो योगी-योगी कहना है. अब इन सारी बातों पर गौर करें तो मिलता है कि हकीकत कहीं अलग है और शायद योगी के उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य का मुख्य मंत्री बनने के पीछे प्रदेश के मुसलमानों का भी अहम योगदान है.
2011 की जनगणना से मिले डाटा के अनुसार उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 199,581,477 है. जिसमें से मुस्लिमों का प्रतिशत करीब 18% के आस पास है. यदि प्रदेश की वर्तमान जनसंख्या को देखें तो ये कहना हमारे लिए अतिशयोक्ति न होगा कि अब ये प्रतिशत 25 से 27 प्रतिशत के आस पास है. ऐसे में यदि इस चुनाव में हुई वोटिंग पर नजर डालें तो मिलता है कि प्रदेश में रह रहे मुस्लिमों की एक बड़ी संख्या ने भी मतदान कर अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह किया है और अगर राजधानी लखनऊ समेत देवबंद, बरेली आदि स्थानों पर बीजेपी को मिली जीत को देखें तो ये बात साफ है कि न सिर्फ हिंदुओं बल्कि मुस्लिमों की भी एक बड़ी संख्या ने बीजेपी को वोट किया है.
गौरतलब है कि प्रदेश का मुस्लमान पूर्व की सरकारों की कार्य प्रणाली से काफी हद तक नाखुश था. इस चुनाव तक पहुंचते-पहुंचते उसे इस बात का भली प्रकार एहसास हो गया था कि अब तक पूर्व की सरकारों में शामिल सपा, बसपा और कांग्रेस के द्वारा उसे सिर्फ ठगा गया है और उसके साथ कागज़ी वादे किये गए हैं और ऐसे में अगर वो अब नहीं संभला तो शायद फिर कभी न संभल पाए. ज्ञात हो कि इस चुनाव में जहां सपा और बसपा मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने के लिए समस्त साम, दाम, दंड, भेद अपना रही थी तो वहीं दूसरी तरफ किसी भी मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट न देकर बीजेपी ने ये साफ कर दिया कि भले ही और पार्टीयों के लिए मुस्लिमों को रिझाना ही सबसे बड़ी बात है मगर बीजेपी के लिए प्रमुख मुद्दा विकास है और केवल उसी को प्राथमिकता दी जायगी. उसके बाद क्या हुआ नतीजा हमारे सामने हैं. भाजपा ने एक ऐसी जीत हासिल करी जिसे सदियों तक इतिहास याद रखेगा.
बहरहाल, अब यदि हम भाजपा की विशाल जीत, योगी की जीत और मुसलमानों के डर पर एक नजर डालें तो मिलता है कि मुसलमानों का ये डर और कुछ नहीं बल्कि विपक्ष का वो प्रोपोगेंडा है जिसे खाद पानी विपक्ष के नेता और मुस्लिम धर्मगुरु साथ-साथ दे रहे हैं. अगर योगी के सांसदीय क्षेत्र गोरखपुर पर ही एक नजर डालें तो मिलता है योगी की एक कट्टर हिंदूवादी छवि होने के बावजूद न सिर्फ मठ परिसर बल्कि सम्पूर्ण गोरखपुर में लोग बीते कई सालों से लोग एक साथ रह रहे हैं. कहा जा सकता है कि वहां किसी को किसी से खतरा नहीं है आज भी वहां अज़ान और आरती अपने निर्धारित समय पर होती है जिसका लोग सम्मान करते हैं.
अंत में बस इतना ही कि प्रदेश के लोग खास तौर से मुसलमान योगी को एक मौका दें वो ऐसा बहुत कुछ करेंगे जो पिछली सरकारों ने शायद ही कभी किया हो. साथ ही इस लेख के माध्यम से हम ये भी कहना चाहेंगे कि आदित्यनाथ सीएम बाद में हैं पहले वो एक योगी हैं, और एक योगी कभी भी अपने से जुड़े लोगों का बुरा नहीं चाहता. अतः प्रदेश की जनता के साथ-साथ सूबे के मुसलमान इस बात को समझें कि उनका सीएम नेता बाद में है, वो पहले एक योगी है.
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