प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानबूझकर ऐसा बार-बार करते हैं या उनकी जुबान फिसल जाती है. सिलिकन वैली में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए मोदी ने भ्रष्टाचार का जिक्र किया और इशारों-इशारों में कांग्रेस पर निशाना साधा. 'दामाद' शब्द का इस्तेमाल करते हुए राबर्ट वाड्रा पर भी चुटकी लेने से नहीं चूके.
हो सकता है कि भारत में चुनावी भाषणों में लोगों को रॉबर्ट वाड्रा पर मोदी का चुटकी लेना अच्छा लगता हो. पिछली सरकारों ने 65-70 वर्षों में कुछ नहीं किया, एक भी बैंक में किसी गरीब का खाता नहीं खुला...और मोदी उसमें 'क्रांतिकारी बदलाव' लाने का प्रयास कर रहे हैं- यह सुनना लोगों को अच्छा लगता हो. लेकिन विदेशों में....विदेशी मीडिया के सामने जब मोदी यह बात कहते हैं कि वे 'स्कैम इंडिया' को 'स्किल इंडिया' बना रहे तो बात चुभती है. इसलिए कि 1947 के बाद भारत आज जहां भी है, जैसे भी पहुंचा है, मोदी उस प्रयास को ही खारिज करने का काम करते दिखाई देते हैं. मोदी ने यह बात कनाडा दौरे पर कही थी.
मोदी के खुद के प्रचार के लिए यह लाइन सटीक हो सकती है. क्या पता, पूरी दुनिया में यह डंका भी बजने लगे कि भारत जो कुछ है वह प्रधानमंत्री मोदी की वजह से. लेकिन भारत के लिए, भारतीय लोगों के लिहाज से यह बहुत भ्रामक साबित होगा. इसमें आजादी के बाद से अब तक के राजनीतिक इतिहास को दफन करने की कोशिश नजर आती है.
मोदी अच्छे वक्ता हैं. वह अच्छी तरह से जानते हैं कि एक वक्ता या नेता को मंच का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए. अपनी वाक-शैली, भाव-भंगिमा, बातों-बातों में लोगों से संवाद स्थापित कर लेना, भाषणों के दौरान विरोधियों पर चुटकी लेना और साथ-साथ खुद को आसानी से प्रचारित करने की कला उन्हें आती है. एक वक्ता के तौर पर यह सही भी है. लेकिन ऐसा क्यों है कि मोदी ऐसे प्लेटफॉर्म पर जाकर एक वैसी बात कर देते हैं जो उन्हें ही हल्का साबित करने लगता है.
मोदी से पहले इस तरह के उदाहरण याद नहीं आते जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री किसी विदेश दौरे पर पिछली सरकारों की बखिया उधेड़ता नजर आया हो....
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानबूझकर ऐसा बार-बार करते हैं या उनकी जुबान फिसल जाती है. सिलिकन वैली में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए मोदी ने भ्रष्टाचार का जिक्र किया और इशारों-इशारों में कांग्रेस पर निशाना साधा. 'दामाद' शब्द का इस्तेमाल करते हुए राबर्ट वाड्रा पर भी चुटकी लेने से नहीं चूके.
हो सकता है कि भारत में चुनावी भाषणों में लोगों को रॉबर्ट वाड्रा पर मोदी का चुटकी लेना अच्छा लगता हो. पिछली सरकारों ने 65-70 वर्षों में कुछ नहीं किया, एक भी बैंक में किसी गरीब का खाता नहीं खुला...और मोदी उसमें 'क्रांतिकारी बदलाव' लाने का प्रयास कर रहे हैं- यह सुनना लोगों को अच्छा लगता हो. लेकिन विदेशों में....विदेशी मीडिया के सामने जब मोदी यह बात कहते हैं कि वे 'स्कैम इंडिया' को 'स्किल इंडिया' बना रहे तो बात चुभती है. इसलिए कि 1947 के बाद भारत आज जहां भी है, जैसे भी पहुंचा है, मोदी उस प्रयास को ही खारिज करने का काम करते दिखाई देते हैं. मोदी ने यह बात कनाडा दौरे पर कही थी.
मोदी के खुद के प्रचार के लिए यह लाइन सटीक हो सकती है. क्या पता, पूरी दुनिया में यह डंका भी बजने लगे कि भारत जो कुछ है वह प्रधानमंत्री मोदी की वजह से. लेकिन भारत के लिए, भारतीय लोगों के लिहाज से यह बहुत भ्रामक साबित होगा. इसमें आजादी के बाद से अब तक के राजनीतिक इतिहास को दफन करने की कोशिश नजर आती है.
मोदी अच्छे वक्ता हैं. वह अच्छी तरह से जानते हैं कि एक वक्ता या नेता को मंच का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए. अपनी वाक-शैली, भाव-भंगिमा, बातों-बातों में लोगों से संवाद स्थापित कर लेना, भाषणों के दौरान विरोधियों पर चुटकी लेना और साथ-साथ खुद को आसानी से प्रचारित करने की कला उन्हें आती है. एक वक्ता के तौर पर यह सही भी है. लेकिन ऐसा क्यों है कि मोदी ऐसे प्लेटफॉर्म पर जाकर एक वैसी बात कर देते हैं जो उन्हें ही हल्का साबित करने लगता है.
मोदी से पहले इस तरह के उदाहरण याद नहीं आते जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री किसी विदेश दौरे पर पिछली सरकारों की बखिया उधेड़ता नजर आया हो. फिर यह रवायत मोदी क्यों बदलने पर तुले हैं. ऐसा लगता है कि मोदी अब भी चुनाव प्रचार के मोड में हैं. मोदी ने पिछले साल न्यू यॉर्क के मैडिसन स्क्वॉयर गार्डेन में और फिर सिडनी में यूपीए के 10 साल के शासन की आलोचना की थी. इसके बाद चीन और कनाडा के दौरे पर भी मोदी मनमोहन सिंह की सरकार पर निशाना साधते नजर आए.
यूएई के दौरे पर भी मोदी का पिछली सरकारों को जिम्मेदार ठहराने का सिलसिला जारी रहा. यूएई में मोदी ने कहा कि कुछ समस्याएं उन्हें विरासत में मिली हैं और ऐसा पिछली सरकार के फैसले लेने में हिचकिचाहट और सुस्ती के कारण हुआ. वे इस व्यवस्था को ठीक करने की अब कोशिश कर रहे हैं.
बात आलोचना की नहीं है. हो सकता है कि वे अपने सरकार द्वारा उठाए जा रहे नए सुधार के कदमों को दुनिया के सामने रखना चाहते हों. लेकिन इसे बिना लाग-लपेट के भी तो किया जा सकता है. मोदी सरल तरीके से अपने कामकाज का बखान तो कर ही सकते हैं. इससे उनकी भी साख बढ़ेगी और भारत की राजनीति की भी.
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