बेगानी शादी में अबदुल्ला दीवाना जैसी अनुभूति शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हो रही होगी. उनका एक आदेश और दो साल से उत्तर प्रदेश में पोस्टिंग के लिए परेशान सपा मुखिया के दबंग भाई शिवपाल सिंह यादव के दामाद अजय यादव को न सिर्फ यूपी में पोस्टिंग मिल गई बल्कि राजधानी लखनऊ से सबसे नजदीक जिले का कलेक्टर भी नियुक्त कर दिया गया.
अजय यादव का आईएएस में चयन 2010 में हुआ और चयन होते ही रिश्ता शिवपाल सिंह यादव की बेटी के साथ हो गया. ससुर का रौब और प्रदेश में यादव परिवार का हिस्सा बन अजय के लिए बेहद शर्म की बात थी कि वह तमिलनाडु जैसे राज्य में नौकरी करने पहुंच गए जहां उनकी भाषा समझने वाला कोई नहीं. अब नौकरी में चयन से लेकर कैडर अलॉटमेंट तक में राजनीतिक पैरवी जो नहीं चलती.
किसी तरह तमिलनाडु में 4-5 साल नौकरी कर अजय ने ठान लिया कि आगे की नौकरी अब वह उत्तरप्रदेश में ही करेंगे. लिहाजा, अपने रसूख को दिमाग में रख अजय ने नवंबर 2014 में अपना कैडर बदलने के लिए डीओपीटी को आवेदन दे दिया. नियमों के मुताबिक कोई आईएएस अधिकारी अपने कैडर से अलग किसी अन्य राज्य में नौकरी करने के लिए 9 साल की सेवा के बाद ही आवेदन कर सकता है. लेकिन अजय यादव को लगा कि जब ससुर खुद शिवपाल यादव और चचिया ससुर मुलायम सिंह यादव हों तो 9 साल की इस शर्त से उन्हें छूट मिल ही जाएगी. एक राज्य से दूसरे राज्य में तबादले के लिए अपने आवेदन में अजय ने डीओपीटी को बाताया कि उनकी पत्नी लखनऊ में रहती हैं और हाल में उन्हें एक बच्ची हुई है जिसके लालन-पालन में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. लिहाजा, उनका तबादला तमिलनाडु से उत्तर प्रदेश कर दिया जाए जिससे वह बच्चे की परवरिश की जिम्मेदारी पूरी कर सकें.
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नरेंद्र मोदी और मुलायम सिंह यादव |
अजय के इस आवेदन को 2014 में उस अपॉइंटमेंट कमेटी, जिसके मुखिया खुद प्रधानमंत्री रहते हैं, ने पर्याप्त नहीं माना और रिजेक्ट कर दिया. अपॉइंटमेंट कमेटी ने कहा कि 9 साल की नौकरी से पहले कोई आईएएस अधिकारी ऐसा आवेदन नहीं कर सकता.
फिर क्या था, एक तो अजय यादव को आईएएस की नौकरी के साथ हुई शादी से मिले रसूख की तौहीन हुई और ऊपर से ससुर पिता के सम्मान को भी ठेस पहुंचा कि बेटी लखनऊ में और दामाद तमिलनाडु में दर-दर की ठोकर खाने पर मजबूर है. आव देखा न ताव, सूबे में बड़े मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने अपने लेटर हेड पर प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख दी. असर हुआ और जोरदार असर हुआ. प्रधानमंत्री कार्यालय ने हाई प्रायोरिटी मानते हुए उसे वापस डीओपीटी रेफर कर दिया जहां से उसे उस कमेटी के सामने रखा गया जिसके मुखिया खुद नरेंद्र मोदी है. एक झटके में समय सीमा या पर्याप्त कारण के मापदंड को दरकिनार कर दिया गया और अजय यादव का तबादला तमुलनाडु से उत्तरप्रदेश के लिए कर दिया गया. इतना ही नहीं, प्रदेश सरकार ने आदेश आते ही लखनऊ से निकटतम जिला(महज 25 किलोमीटर दूर) बाराबंकी में उन्हें बतौर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट तैनात कर दिया.
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अब सवाल यह नहीं है कि अजय यादव ने अपने रसूख का इस्तेमाल किया क्योंकि ऐसे कई उदाहरण देशभर में मिल जाएंगे, सो ये नई बात नहीं. सवाल यह है कि आखिर परिवारवाद, दामादवाद और ऐसे तमाम मामलों पर सख्त रुख रखने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आखिर किसी पराए दामाद पर इतना मेहरबान क्यों होना पड़ा. क्या बीते लोकसभा चुनावों के वक्त कालेधन की तरह अब परिवारवाद और दामादवाद के उनके बोल को भी जुमला करार दे दिया गया है?
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