राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने कहा है कि राष्ट्र गान से 'अधिनायक' शब्द को हटा देना चाहिए. उनके मुताबिक यह शब्द आजादी से पहले अंग्रेज शासकों की तारीफ के तौर पर इस्तेमाल किया गया था. इसलिए इसे हटाकर वहां 'मंगल' शब्द का इस्तेमाल किया जाए. यह पहली बार नहीं है जब 'जन गण मन' विवादों में है. दरअसल, इससे जुड़ा पहला विवाद 27 दिसंबर, 1911 को कांग्रेस के कोलकाता सेशन में सामने तब आया जब पहली बार रविंद्रनाथ टैगोर ने इसे गाया.
कांग्रेस पर उदारवादी या नरम दल के लोग ही हावी रहे. बंगाल के विभाजन को रद्द करने के लिए 20 दिसंबर को किगं जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी कोलकाता का दौरा करने वाले थे. कांग्रेस ने दोनों का अभिनंदन करने का फैसला किया. टैगोर को इस कार्यक्रम के लिए एक गीत लिखने को कहा गया. एक ऐसा गीत जिसमें में इन राजकीय मेहमानों की तारीफ की गई है. सत्र के पहले दिन बंकिम चंद्र चटोपध्याय का लिखा 'वंदे मातरम' गाया गया. वहीं दूसरे दिन टैगोर ने 'जन गण मन' गाया. किंग जॉर्ज के प्रति विश्वास जताते हुए एक प्रस्ताव भी इस सत्र में पास किया गया.
एंग्लो-इंडियन इंग्लिश मीडिया ने भी इस बात को कहा कि 'जन गण मन' किंग जॉर्ज को समर्पित किया गया. बहरहाल, इसे लेकर विवाद लगातार जारी रहा. कोलकाता सत्र के करीब 26 साल बाद टैगोर ने भी एक पत्र में इस गीत को लिखने के पीछे के कारणों का खुलासा किया. उन्होंने कहा कि इसे उन्होंने दुख में लिखा था. किंग के एक अधिकारी जो टैगोर के भी बेहद करीबी मित्र थे, उन्होंने जॉर्ज के स्वागत के लिए उनसे इसे लिखने का आग्रह किया.
साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले एशियाई टैगोर ने आगे जाकर 1939 में इस आरोप से इंकार किया कि उन्होंने किंग जॉर्ज के लिए 'जन गण मन' लिखा था. टैगोर ने लिखा,'मैं उन सभी बेतुके आरोपों का जवाब देने लगा तो अपनी ही तौहीन कराऊंगा.' टैगोर ने कहा कि यह गीत उन्होंने किंग के लिए नहीं बल्कि 'किस्मत के भगवान' की प्रशंसा करते हुए लिखी थी.
'जन गण मन' के आधिकरिक तौर पर राष्ट्र गान घोषित किए जाने तक...
राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने कहा है कि राष्ट्र गान से 'अधिनायक' शब्द को हटा देना चाहिए. उनके मुताबिक यह शब्द आजादी से पहले अंग्रेज शासकों की तारीफ के तौर पर इस्तेमाल किया गया था. इसलिए इसे हटाकर वहां 'मंगल' शब्द का इस्तेमाल किया जाए. यह पहली बार नहीं है जब 'जन गण मन' विवादों में है. दरअसल, इससे जुड़ा पहला विवाद 27 दिसंबर, 1911 को कांग्रेस के कोलकाता सेशन में सामने तब आया जब पहली बार रविंद्रनाथ टैगोर ने इसे गाया.
कांग्रेस पर उदारवादी या नरम दल के लोग ही हावी रहे. बंगाल के विभाजन को रद्द करने के लिए 20 दिसंबर को किगं जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी कोलकाता का दौरा करने वाले थे. कांग्रेस ने दोनों का अभिनंदन करने का फैसला किया. टैगोर को इस कार्यक्रम के लिए एक गीत लिखने को कहा गया. एक ऐसा गीत जिसमें में इन राजकीय मेहमानों की तारीफ की गई है. सत्र के पहले दिन बंकिम चंद्र चटोपध्याय का लिखा 'वंदे मातरम' गाया गया. वहीं दूसरे दिन टैगोर ने 'जन गण मन' गाया. किंग जॉर्ज के प्रति विश्वास जताते हुए एक प्रस्ताव भी इस सत्र में पास किया गया.
एंग्लो-इंडियन इंग्लिश मीडिया ने भी इस बात को कहा कि 'जन गण मन' किंग जॉर्ज को समर्पित किया गया. बहरहाल, इसे लेकर विवाद लगातार जारी रहा. कोलकाता सत्र के करीब 26 साल बाद टैगोर ने भी एक पत्र में इस गीत को लिखने के पीछे के कारणों का खुलासा किया. उन्होंने कहा कि इसे उन्होंने दुख में लिखा था. किंग के एक अधिकारी जो टैगोर के भी बेहद करीबी मित्र थे, उन्होंने जॉर्ज के स्वागत के लिए उनसे इसे लिखने का आग्रह किया.
साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले एशियाई टैगोर ने आगे जाकर 1939 में इस आरोप से इंकार किया कि उन्होंने किंग जॉर्ज के लिए 'जन गण मन' लिखा था. टैगोर ने लिखा,'मैं उन सभी बेतुके आरोपों का जवाब देने लगा तो अपनी ही तौहीन कराऊंगा.' टैगोर ने कहा कि यह गीत उन्होंने किंग के लिए नहीं बल्कि 'किस्मत के भगवान' की प्रशंसा करते हुए लिखी थी.
'जन गण मन' के आधिकरिक तौर पर राष्ट्र गान घोषित किए जाने तक 'वंदे मातरम' को ही ज्यादा प्रमुखता दी गई. संविधान सभा की बैठक में इसे हमेशा गाया गया. संविधान सभा में भी 'जन गण मन' और 'वंदे मातरम' को लेकर हमेशा बहस की स्थिति बनी रही.
'वंदे मातरम' की उपयोगिता 'जन गण मन' के मुकाबले कम होने का बड़ा कारण मुस्लिमों द्वारा विरोध रहा. इसमें जन्मभूमि या भारत माता को नमन करने की बात कही गई है. मुस्लिम वर्ग इसी का विरोध करता रहा है. मुस्लिम वर्ग का मत रहा है कि इस्लाम में अल्लाह के सिवाय किसी और के सामने झुकने की इजाजत नहीं है.
इस मुद्दे को पहले गणतंत्र दिवस के दो दिन पहले ही सुलझाया जा सका. पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 'जन गण मन' को राष्ट्र गान के तौर पर स्वीकार किए जाने की घोषणा की लेकिन साथ ही कहा कि 'वंदे मातरम' को भी यही दर्जा प्राप्त होगा.
संविधान सभा की 24 जनवरी, 1950 को हुई बैठक में राजेंद्र प्रसाद ने कहा, 'राष्ट्र गान ऐसा मुद्दा है जिस पर अभी चर्चा की जानी बाकी है. पहले यह सोचा गया था कि इस मुद्दे को सदन में प्रस्ताव के साथ सुलझा लिया जाएगा. लेकिन ऐसा लगता है कि औपचारिक तरीके से फैसले लेने की बजाए, बेहतर है कि मैं इस बारे में अपना स्टेटमेंट दूं. इसलिए मैं यह स्टेटमेंट दे रहा हूं.'
बकौल राजेंद्र प्रसाद, 'भारत का राष्ट्र गान 'जन गण मन' होगा और सरकारें भविष्य में अगर परिस्थिति के अनुसार इसके शब्दों में बदलाव करना चाहती हैं, तो वे ऐसा कर सकेंगी. वहीं, भारत के स्वाधीनता संग्राम में बड़ी भूमिका निभाने वाले 'वंदे मातरम' को भी यही दर्जा प्राप्त होगा. मुझे उम्मीद है कि इससे सदस्य संतुष्ट होंगे.'
यह बात दिलचस्प है कि 'जन गण मन' में भी 'माता' का जिक्र है लेकिन यह चौथे छंद में है. हम 'जन गण मन' के केवल पहले छंद का इस्तेमाल राष्ट्र गान के रूप में करते हैं. यह अब भी बहस का मुद्दा है कि टैगोर ने इस गीत में 'माता' शब्द का इस्तेमाल भारत माता के तौर पर किया था. या फिर इसे क्वीन मैरी के लिए लिखा गया.
राष्ट्र गान और कई विषयों के कारण बहस का मुद्दा रहा है. इसमें एक विषय गीत में क्षेत्रों के लिए गए नाम हैं. अदालतों में ऐसी याचिकाएं पड़ी हैं जिसमें कश्मीर और पूर्वोत्तर के क्षेत्रों को भी राष्ट्र गान में शामिल करने की बात कही गई है. कहा जाता है कि टैगोर को भारत के उन क्षेत्रों का नाम शामिल करने को कहा गया था जो उस समय ब्रिटिश राज के अंदर थे.
इसलिए इसमें पूर्वोत्तर राज्यों का नाम शामिल नहीं है क्योंकि वे ब्रिटिश राज में शामिल नहीं थे. वहीं दूसरी ओर, पाकिस्तान के सिंध प्रांत का जिक्र भी इसमें है जिसे हटाने की बराबर मांग की जाती रही है. अदालत ने हालांकि फिलहाल इस मुद्दे पर कह दिया है कि सिंध का मतलब यहां प्रांत से नहीं बल्कि भाषा और इस समुदाय के लोगों से है.
राजस्थान के राज्यपाल ने भले ही राष्ट्र गान से 'अधिनायक' शब्द को हटाने की मांग कर मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने की कोशिश की है. लेकिन यह मांग बहुत हद तक गलत भी नहीं है कि इसमें बदलाव कर अधिनायक की जगह 'जन गण मन मंगल गाए' का इस्तेमाल किया जाए.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.