राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के नॉमिनेशन के मौके पर नीतीश कुमार मौजूद नहीं थे, लेकिन चर्चा उनकी सबसे ज्यादा रही. लालू प्रसाद के इफ्तार में भी उनकी गैरमौजूदगी का आलम कुछ वैसा ही होता जैसा सोनिया के भोज में हुआ था. जिस तरह नीतीश ने तय किया था कि सोनिया के भोज में नहीं जाना है, उसी तरह लालू के इफ्तार में उनका जाना तय था.
सियासी चर्चाएं कोई और शक्ल लें उससे पहले ही नीतीश 10, सर्कुलर रोड पहुंचे और लालू के साथ बैठक कर इफ्तार किया. मीडिया से रूबरू होने पर हर सवाल का जवाब नीतीश सोच कर आये थे - और सोनिया गांधी और लालू प्रसाद के लिए नये सवाल और चुनौतियां भी पहले से तैयार थीं.
निशाने पर लालू और सोनिया
लालू के ऐतिहासिक भूल की बात पर नीतीश कुमार का दो टूक जवाब था, ''ऐतिहासिक भूल किए हैं, करने दीजिए. छोड़ दीजिए.'' अगर उनके हल्के फुल्के अंदाज के हिसाब से सोचें तो कहना चाहते थे - बस, खत्म कीजिए. अब इन बातों का क्या फायदा. लेकिन बात की गंभीरता को देखें तो साफ है - हमे अपने हाल पर रहने दीजिए. आप अपने रास्ते अलग तय करने के लिए आजाद हैं. लेकिन खुद ही बातों को घुमा भी दिया. लालू भी ऐसे मौकों पर ऐसा ही करते हैं. पहले कहते हैं बीजेपी को नया पार्टनर मुबारक हो और फिर कहते हैं उनका मतलब एजेंसियों से था.
लालू की ही तरह नीतीश भी बोले, ''इन बातों में कोई बहुत राजनीति देखने की जरुरत नहीं है. मैं इसको कोई राजनीतिक टकराव का मुद्दा नहीं मानता.'' लालू की ही तरह लगातार नीतीश के निशाने पर सोनिया गांधी भी हैं. नीतीश ने पिछले राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए में होते हुए भी यूपीए कैंडिडेट के सपोर्ट का जिक्र किया और बताया कि बिहार की बेटी यानी मीरा कुमार के प्रति उनके...
राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के नॉमिनेशन के मौके पर नीतीश कुमार मौजूद नहीं थे, लेकिन चर्चा उनकी सबसे ज्यादा रही. लालू प्रसाद के इफ्तार में भी उनकी गैरमौजूदगी का आलम कुछ वैसा ही होता जैसा सोनिया के भोज में हुआ था. जिस तरह नीतीश ने तय किया था कि सोनिया के भोज में नहीं जाना है, उसी तरह लालू के इफ्तार में उनका जाना तय था.
सियासी चर्चाएं कोई और शक्ल लें उससे पहले ही नीतीश 10, सर्कुलर रोड पहुंचे और लालू के साथ बैठक कर इफ्तार किया. मीडिया से रूबरू होने पर हर सवाल का जवाब नीतीश सोच कर आये थे - और सोनिया गांधी और लालू प्रसाद के लिए नये सवाल और चुनौतियां भी पहले से तैयार थीं.
निशाने पर लालू और सोनिया
लालू के ऐतिहासिक भूल की बात पर नीतीश कुमार का दो टूक जवाब था, ''ऐतिहासिक भूल किए हैं, करने दीजिए. छोड़ दीजिए.'' अगर उनके हल्के फुल्के अंदाज के हिसाब से सोचें तो कहना चाहते थे - बस, खत्म कीजिए. अब इन बातों का क्या फायदा. लेकिन बात की गंभीरता को देखें तो साफ है - हमे अपने हाल पर रहने दीजिए. आप अपने रास्ते अलग तय करने के लिए आजाद हैं. लेकिन खुद ही बातों को घुमा भी दिया. लालू भी ऐसे मौकों पर ऐसा ही करते हैं. पहले कहते हैं बीजेपी को नया पार्टनर मुबारक हो और फिर कहते हैं उनका मतलब एजेंसियों से था.
लालू की ही तरह नीतीश भी बोले, ''इन बातों में कोई बहुत राजनीति देखने की जरुरत नहीं है. मैं इसको कोई राजनीतिक टकराव का मुद्दा नहीं मानता.'' लालू की ही तरह लगातार नीतीश के निशाने पर सोनिया गांधी भी हैं. नीतीश ने पिछले राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए में होते हुए भी यूपीए कैंडिडेट के सपोर्ट का जिक्र किया और बताया कि बिहार की बेटी यानी मीरा कुमार के प्रति उनके मन में बहुत सम्मान है, लेकिन जोर देकर पूछा भी - 'कांग्रेस के पास जब बहुमत थी उस वक्त तो बिहार की बेटी को उम्मीदवार नहीं बनाया?'
बेटी के लिए 2022
लालू प्रसाद ने इफ्तार के मौके पर मीडिया से कहा कि वे लोग नीतीश कुमार द्वारा ही सुझाये गये 'संघ मुक्त देश' बनाने की राह पर हैं. नीतीश कुमार ने इन बातों पर कोई टिप्पणी तो नहीं की, लेकिन विपक्ष को सलाह दी है कि अब भी बहुत कुछ बिगड़ा नहीं है. शर्त यही है कि विपक्ष फिर से 2019 तैयारी करे. हालांकि, नीतीश ने जो बात कही वही विपक्षी एकता के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.
नीतीश का कहना है कि विपक्ष कोई दूरगामी रणनीति बनाने की जगह शुरुआत ही हार से कर रहा है. नीतीश के हिसाब से एनडीए के कोविंद दांव के बाद विपक्ष को कोई और रणनीति अपनानी चाहिये थे - और फिर से 2019 की तैयारी में जुट जाना चाहिये.
विपक्ष की अगुवाई कर रहीं सोनिया गांधी के साथ ही सीताराम येचुरी और लालू प्रसाद को भी नीतीश की सलाह है कि पहले वे 2019 में बहुमत हासिल करने की स्ट्रैटेजी बनायें और फिर आगे की सोचें. साफ है, अगर 2019 में विपक्ष बहुमत हासिल कर लेता है तो राष्ट्रपति पद के लिए अगला चुनाव जब 2022 में होगा तो बिहार की बेटी की जीत भी अपने आप पक्की हो जाएगी.
नीतीश ने जो बात कही है विपक्ष के लिए वही जीवनरक्षक दवा भी है लेकिन मुश्किल और नामुमकिन के बीच झूल भी रही है, अगर बीजेपी के बढ़ते कदम और उसकी चुनावी रणनीति से तुलना करें. वैसे इसके लिए नीतीश कुमार को भी विपक्ष को यकीन दिलाना होगा कि अगर कहीं संभव हो पाया तो वो फिर से पलटी नहीं मारेंगे.
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