विपक्ष का चेन्नई सम्मेलन तकरीबन दिल्ली जैसा ही रहा. दिल्ली में सोनिया के भोज में दो नेताओं - नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल की गैरमौजूदगी चर्चा में रही, चेन्नई में भी तकरीबन ऐसा ही रहा. दो नेता ऐसे वहां भी रहे जिनकी तरफ स्वाभाविक तौर पर सभी का ध्यान गया और उसकी कॉमन वजह रही दोनों का सेहत ठीक नहीं होना. एक तो खुद एम करुणानिधि रहे और दूसरे थे लालू प्रसाद. करुणानिधि के बारे में तो पहले ही कह दिया गया था कि अगर डॉक्टरों ने अनुमति नहीं दी तो वो जश्न से दूर ही रहेंगे, लेकिन लालू के बारे में समारोह के ऐन पहले पता चला.
लालू पर नीतीश की सफाई
सोनिया गांधी के भोज में लालू प्रसाद को नीतीश कुमार की गैरमौजूदगी पर सफाई देनी पड़ी थी. अब बारी नीतीश कुमार की थी और चेन्नई पहुंचते ही उन्हें ये रस्म निभानी पड़ी. नीतीश ने बताया कि लालू प्रसाद को भी समारोह में आना था, लेकिन तेज बुखार के चलते वो नहीं आ सके. नीतीश को ये सफाई इसलिए भी देनी पड़ी क्योंकि दिल्ली में सोनिया के लंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लंच को तरजीह देना खासा चर्चा में रहा. कहा तो यहां तक गया कि लालू के खिलाफ ताजा विवादों के चलते नीतीश कुमार उनसे सार्वजनिक जगहों पर दूरी बना रहे हैं. कहीं लालू के चेन्नई न पहुंचने को लेकर भी ऐसी अटकलें न होने लगे, इसलिए नीतीश को उनके न आने की वजह खास तौर पर बतानी पड़ी.
करीब ढाई दशक बाद चेन्नई एक बार फिर विपक्ष की एकजुटता का सूत्रधार बना. तब भी विपक्ष का ऐसा ही जमावड़ा हुआ था और निशाने पर केंद्र की सत्ता पर काबिज पार्टी रही - और इस बार भी वही है. फर्क बस ये है कि तब सत्ता में कांग्रेस थी, अब बीजेपी केंद्र में शासन की अगुवार्ई कर रही है. तब बीजेपी साथ थी और टारगेट पर कांग्रेस रही, अब कांग्रेस साथ है और बीजेपी निशाने पर.
विपक्ष का चेन्नई सम्मेलन तकरीबन दिल्ली जैसा ही रहा. दिल्ली में सोनिया के भोज में दो नेताओं - नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल की गैरमौजूदगी चर्चा में रही, चेन्नई में भी तकरीबन ऐसा ही रहा. दो नेता ऐसे वहां भी रहे जिनकी तरफ स्वाभाविक तौर पर सभी का ध्यान गया और उसकी कॉमन वजह रही दोनों का सेहत ठीक नहीं होना. एक तो खुद एम करुणानिधि रहे और दूसरे थे लालू प्रसाद. करुणानिधि के बारे में तो पहले ही कह दिया गया था कि अगर डॉक्टरों ने अनुमति नहीं दी तो वो जश्न से दूर ही रहेंगे, लेकिन लालू के बारे में समारोह के ऐन पहले पता चला.
लालू पर नीतीश की सफाई
सोनिया गांधी के भोज में लालू प्रसाद को नीतीश कुमार की गैरमौजूदगी पर सफाई देनी पड़ी थी. अब बारी नीतीश कुमार की थी और चेन्नई पहुंचते ही उन्हें ये रस्म निभानी पड़ी. नीतीश ने बताया कि लालू प्रसाद को भी समारोह में आना था, लेकिन तेज बुखार के चलते वो नहीं आ सके. नीतीश को ये सफाई इसलिए भी देनी पड़ी क्योंकि दिल्ली में सोनिया के लंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लंच को तरजीह देना खासा चर्चा में रहा. कहा तो यहां तक गया कि लालू के खिलाफ ताजा विवादों के चलते नीतीश कुमार उनसे सार्वजनिक जगहों पर दूरी बना रहे हैं. कहीं लालू के चेन्नई न पहुंचने को लेकर भी ऐसी अटकलें न होने लगे, इसलिए नीतीश को उनके न आने की वजह खास तौर पर बतानी पड़ी.
करीब ढाई दशक बाद चेन्नई एक बार फिर विपक्ष की एकजुटता का सूत्रधार बना. तब भी विपक्ष का ऐसा ही जमावड़ा हुआ था और निशाने पर केंद्र की सत्ता पर काबिज पार्टी रही - और इस बार भी वही है. फर्क बस ये है कि तब सत्ता में कांग्रेस थी, अब बीजेपी केंद्र में शासन की अगुवार्ई कर रही है. तब बीजेपी साथ थी और टारगेट पर कांग्रेस रही, अब कांग्रेस साथ है और बीजेपी निशाने पर.
करुणानिधि के बर्थडे को बड़े पॉलिटिकल इवेंट में तब्दील करने में बेटे एमके स्टालिन और बेटी कनिमोझी का बड़ा रोल रहा. नीतीश और लालू को न्योता देने कनीमोझी खुद पटना भी गई थीं. करुणानिधि के लिए ये मौका बेहद खास रहा क्योंकि उनके 94वें बर्थडे के साथ साथ डीएमके तमिलनाडु विधानसभा में करुणानिधि के 60 साल होने पर भी जश्न मना रही है.
करुणानिधि को बर्थडे विश करने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और नीतीश के अलावा सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, तृणमूल कांग्रेस नेता डेरेक-ओ-ब्रायन, सीपीआई लीडर डी राजा भी चेन्नई पहुंचे थे.
चाय पर चर्चा
डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष एमके स्टालिन ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए अपने घर पर चाय पार्टी आयोजन की जहां बंद कमरे में दोनों की करीब आधे घंटे तक मुलाकात हुई. बाद में, राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस आरोप लगाया कि वे देश एक विचारधारा को थोपने की कोशिश कर रहे हैं. स्टालिन ने कहा कि सरकार पूरे विपक्ष को कुचलने पर आमादा है ओर इसीलिए सभी लोग इकट्ठा हुए हैं. हिंदी को लेकर सफाई देते हुए स्टालिन बोले, 'अगर हम हिंदी का विरोध करते तो क्या नीतीश कुमार को न्योता देते? हिंदी भाषी प्रदेशों से कई नेता यहां आए, ये क्या दिखाता है?'
राहुल गांधी ने भी अपनी बात मजबूती के साथ कही, 'मैं आरएसएस और नरेंद्र मोदी को पूरे देश पर एक विचारधारा थोपने नहीं दूंगा, हम एक करोड़ लोगों की आवाज दबने नहीं देंगे. बीजेपी सोचती है कि केवल एक विचारधारा और एक ही संस्कृति ही देश में रहे, लेकिन हम इसका विरोध करते हैं.'
चेन्नई के बाद राहुल का अगला पड़ाव आंध्र प्रदेश है और वहां भी कांग्रेस दर्जन भर विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने में जुटी है.
30 साल बाद
वो साल 1989 था जब करुणानिधि विपक्षी एकता के सूत्रधार बने थे - और अब एक बार फिर वो 2019 के लिए दोबारा वैसे ही किरदार में हैं - फासला 30 साल का है.
चेन्नई सम्मेलन की ही बदौलत राष्ट्रीय मोर्चा अस्तित्व में आया था जिसमें करुणानिधि की पार्टी डीएमके की महती भूमिका रही. मौजूदा हालात भी करीब करीब वैसे ही प्रतीत होते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह उसी चेन्नई सम्मेलन की उपज थे, लेकिन नया राजा कौन होगा अभी तस्वीर साफ नहीं है. उस वक्त 143 सांसदों के साथ वीपी सिंह ने बीजेपी के 85 और सीपीएम के 33 सांसदों के सपोर्ट से सरकार बनाने में कामयाब रहे - और 197 सांसदों के साथ कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गयी.
ये करुणानिधि का ही सियासी हुनर है कि वो बदलते वक्त के साथ नये समीकरण बैठा लेते हैं - तभी तो वो अटल बिहारी वाजपेयी की गठबंधन सरकार का भी हिस्सा रहे और मनमोहन सिंह के शासन में यूपीए सरकार में साझीदार भी रहे.
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