बिहार में फिर सत्ता परिवर्तन हो चुका है. महागठबंधन में गतिरोध लंबे समय से चला आ रहा था. आखिरकार ये गतिरोध नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद ही जाकर खत्म हुआ. लेकिन, चौबीस घंटे भी नहीं बीते कि नीतीश कुमार ने एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. अब उनकी पार्टी ने लालू का साथ छोड़कर बीजेपी का हाथ थाम लिया है. एक बार फिर नीतीश कुमार ने यू-टर्न ले लिया है.
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि नीतीश ने गठबंधन तोड़कर किसी और के साथ फिर सरकार बनाई हो. 1996 से लेकर अब तक वो सबसे दोस्ती भी निभा चुके हैं और दुश्मनी भी. नीतीश कुमार ने महागठबंधन का दामन छोड़ छठी बार बिहार के मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली.
बीजेपी की मदद से तीन बार सीएम बन चुके हैं नीतीश
1995 में लालू के हाथों हार का सामना करने के बाद नीतीश की समता पार्टी ने बीजेपी के साथ 1996 में गठजोड़ किया. लालू कट्टर राजनीतिक दुश्मन बन गए. बाद में समता पार्टी जेडीयू में तब्दील हो गई, लेकिन उसका और बीजेपी का गठबंधन बना रहा. 2000 में बीजेपी की मदद से नीतीश कुमार पहली बार 7 दिन के लिए सीएम बने. इसके बाद, इस्तीफा देकर केंद्र में रेल मंत्री बनने चले गए.
बाद में बीजेपी के समर्थन से दूसरी बार नवंबर 2005 में बिहार के सीएम बने और 2010 तक शासन किया. दोबारा विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी और जेडीयू की अगुआई वाले गठबंधन को करीब तीन चौथाई बहुमत मिला. नीतीश 2010 में तीसरी बार सीएम बने.
मोदी की वजह से छोड़ा साथ तो कांग्रेस ने दिया साथ
2013 में जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार घोषित किया तो नीतीश ने...
बिहार में फिर सत्ता परिवर्तन हो चुका है. महागठबंधन में गतिरोध लंबे समय से चला आ रहा था. आखिरकार ये गतिरोध नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद ही जाकर खत्म हुआ. लेकिन, चौबीस घंटे भी नहीं बीते कि नीतीश कुमार ने एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. अब उनकी पार्टी ने लालू का साथ छोड़कर बीजेपी का हाथ थाम लिया है. एक बार फिर नीतीश कुमार ने यू-टर्न ले लिया है.
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि नीतीश ने गठबंधन तोड़कर किसी और के साथ फिर सरकार बनाई हो. 1996 से लेकर अब तक वो सबसे दोस्ती भी निभा चुके हैं और दुश्मनी भी. नीतीश कुमार ने महागठबंधन का दामन छोड़ छठी बार बिहार के मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली.
बीजेपी की मदद से तीन बार सीएम बन चुके हैं नीतीश
1995 में लालू के हाथों हार का सामना करने के बाद नीतीश की समता पार्टी ने बीजेपी के साथ 1996 में गठजोड़ किया. लालू कट्टर राजनीतिक दुश्मन बन गए. बाद में समता पार्टी जेडीयू में तब्दील हो गई, लेकिन उसका और बीजेपी का गठबंधन बना रहा. 2000 में बीजेपी की मदद से नीतीश कुमार पहली बार 7 दिन के लिए सीएम बने. इसके बाद, इस्तीफा देकर केंद्र में रेल मंत्री बनने चले गए.
बाद में बीजेपी के समर्थन से दूसरी बार नवंबर 2005 में बिहार के सीएम बने और 2010 तक शासन किया. दोबारा विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी और जेडीयू की अगुआई वाले गठबंधन को करीब तीन चौथाई बहुमत मिला. नीतीश 2010 में तीसरी बार सीएम बने.
मोदी की वजह से छोड़ा साथ तो कांग्रेस ने दिया साथ
2013 में जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार घोषित किया तो नीतीश ने बीजेपी का नाता छोड़ दिया. बिहार में जेडीयू का बीजेपी के साथ गठबंधन टूटने के बाद कांग्रेस ने उनका साथ दिया और फिर सरकार बनाई.
मांझी को सीएम बनाकर हटाया फिर बने सीएम
2014 में आम चुनावों में करारी हार के बाद नीतीश कुमार ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. जिसके बाद महादलित समुदाय के जीतनराम मांझी को अपना उत्तराधिकारी बनाया. लेकिन दोनों के बीच ज्यादा नहीं चल सकी और मांझी को सीएम मद से हटाकर वापस सीएम की कुर्सी संभाल ली.
लालू के साथ से फिर बने बिहार के सीएम
नीतीश और लालू यादव एक समय सबसे कट्टर दुश्मन थे. लेकिन 2015 में दोनों के बीच करीबियां आईं और महागठबंधन की नीव रखी गई. जिसमें जेडीयू, आरजेडी के साथ-साथ कांग्रेस को भी शामिल किया गया. फिर महागठबंधन की सरकार बनी और नीतीश कुमार को सीएम बनाया गया.
पांचवी बार सीएम बनने के बाद नीतीश ने लालू के बेटे तेजस्वी पर करप्शन के आरोपों का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया. जिसके बाद अब उन्होंने बीजेपी का हाथ थामा है. उसी बीजेपी का हाथ जिसकी सरकार केंद्र में है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिसका वो पहले विरोध कर रहे थे.
आगे बीजेपी का साथ छोड़ा तो क्या होगा
जेडीयू ने आरजेडी से हाथ जोड़कर बीजेपी का हाथ थामा है. कांग्रेस जिसने 2013 में नीतीश को सीएम बनने की मदद की थी उसका भी साथ छोड़ दिया है. अगर आगे चलकर नीतीश किसी कारणवश बीजेपी का साथ छोड़ देंगे तो आश्चर्य मत कीजिएगा. क्योंकि बीजेपी में वे सारे तत्व मौजूद हैं जिनके कारण उन्होंने 2015 में मोदी के खिलाफ महागठबंधन बनाया था. हो सकता है कि गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा या दलित उत्पीड़न के मुद्दे पर वे मोदी सरकार की खिंचाई कर दें और फिर बीजेपी से अलग हो जाएं. हालांकि, फिलहाल फायदे का दूसरा कोई ओर हाथ दिख नहीं रहा है. ऐसे में नीतीश के अगले यू-टर्न के लिए थोड़ा इंतजार कीजिए.
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